सामाजिक सुधार आंदोलन क्या है क्लासरूम नोट्स के माध्यम से पढ़ें

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आज की यह पोस्ट भारतीय इतिहास के एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक के बारे में है आपने भारतीय सामाजिक सुधार आंदोलन के बारे में इतिहास विषय को पढ़ते समय जरूर पढ़ा होगा आज हम इसी से संबंधित शॉर्ट नोट्स आपके लिए लेकर आए हैं ताकि आप इस टॉपिक को सरल एवं आसान भाषा में याद कर सके

सामाजिक सुधार आंदोलन भारतीय इतिहास का एक टॉपिक है जहां से अपने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्नों को भी जरूर देखा होगा इस टॉपिक को आप हमारे इन नोटिस के माध्यम से क्लियर कर सकते हैं जो हमने नीचे उपलब्ध करवा दिए हैं

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भारतीय सामाजिक सुधार आंदोलन 

ब्रह्म समाज

– ब्रह्म समाज की स्थापना अगस्त, 1828 को कलकत्ता में राजा राममोहन राय द्वारा की गई थी।

– राय को भारत में “पत्रकारिता का अग्रदूत/भाषायी प्रेस का प्रवर्तक” माना जाता है।

– मुगल बादशाह अकबर द्वितीय ने राममोहन राय को ‘राजा’ की उपाधि प्रदान की थी।

– केशवचन्द्र सेन ने ‘भारतीय ब्रह्म समाज’ का गठन किया तथा टैगोर का ब्रह्म समाज ‘आदि ब्रह्म समाज’ कहलाया।

– नोट- राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का पिता, अतीत व भविष्य के बीच का सेतु तथा भारत में पुनर्जागरण का जनक कहा जाता है।

वेद समाज

– केशवचन्द्र सेन के कहने पर श्री धरलू नायडू ने मद्रास में वेद समाज की स्थापना 1864 ई. में की थी।

– इसे ‘दक्षिण भारत का ब्रह्म समाज’ कहते हैं।

प्रार्थना समाज

– 1867 ई. में बंबई में केशवचन्द्र सेन के सहयोग से आत्माराम पाण्डुरंग ने महाराष्ट्र में प्रार्थना समाज की स्थापना की।

– संस्थापक – महादेव गोविन्द रानाडे, आत्माराम पाण्डुरंग

– नोट – महादेव गोविन्द रानाडे को पश्चिमी भारत में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अग्रदूत माना जाता है। इन्होंने महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह तथा जातिवाद का समर्थन किया।

आर्य समाज

– दयानन्द सरस्वती ने 1875 ई. को बंबई में आर्य समाज की स्थापना की।

– लाहौर में 1877 ई. में आर्य समाज के सिद्धांत पुनः सम्पादित किए गए।

– आर्य समाज मूर्तिपूजा, अवतारवाद, तीर्थयात्रा, पशुबलि, सामाजिक असमानता, जातिवाद, अस्पृश्यता, सतीप्रथा, बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा आदि का विरोध करता है।

रामकृष्ण मिशन

– रामकृष्ण मिशन की स्थापना 5 मई, 1897 को कलकत्ता के समीप वैल्लूर में रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानन्द द्वारा की गई थी। ‘विवेकानन्द’ नाम खेतड़ी महाराजा अजीतसिंह ने दिया तथा वित्तीय

– सहायता देकर शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन (सितंबर, 1893) में भेजा था।

– नोट – सुभाषचन्द्र बोस ने विवेकानंद को आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का आध्यात्मिक पिता कहा है।

थियोसोफिकल सोसायटी

– थियोसोफिकल समाज की स्थापना 1875 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क में रूसी महिला हेलन पेट्रोवना ब्लावत्सकी एवं अमेरिकन

– सैनिक अधिकारी एच. एस. अल्कॉट ने की।

– 1882 ई. में भारत में मद्रास के समीप अड्यार में इसका मुख्यालय स्थापित किया गया।

– एनी बेसेन्ट वर्ष 1907 में थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्षा बनी थी।

यंग बंगाल आंदोलन

– यंग बंगाल आंदोलन के प्रवर्तक हेनरी विवियन डेरोजिओ थे।

– डेरोजिओ को ‘आधुनिक भारत का प्रथम राष्ट्रवादी कवि’ कहा जाता है।

– ये फ्रांसीसी क्रान्ति से प्रभावित थे तथा स्वतंत्र चिन्तन व वैज्ञानिक तर्कशक्ति को बल देते थे।

अलीगढ़ आंदोलन

– अलीगढ़ आंदोलन के प्रवर्तक सर सैय्यद अहमद खाँ थे।

– इन्होंने 1857 ई. के बाद अंग्रेजों के मन में मुसलमानों के प्रति उत्पन्न अविश्वास को कम करने का प्रयास किया था।

– इन्होंने कुरान की वैज्ञानिक दृष्टि से व्याख्या की तथा बाइबिल पर टीका लिखी थी।

सर सैय्यद अहमद खाँ की संस्थाएँ-

1. साइन्टिफिक सोसायटी (1864 ई.)

2. मुस्लिम एंग्लो-ओरिएण्टल स्कूल अलीगढ़ (1875 ई.)

अहमदिया आंदोलन

1889 ई. को गुरुदासपुर (पंजाब) के कादिया नामक स्थान पर मिर्जा गुलाम अहमद द्वारा इसकी शुरुआत की गई थी।

मिर्जा गुलाम अहमद ने स्वयं को मुहम्मद साहब एवं कृष्ण का अवतार घोषित कर दिया। इनकी पुस्तक ‘बहरीन-ए-अहमदिया’ थी।

सत्य शोधक समाज

इसकी स्थापना निम्न जातियों के कल्याण के लिए 1873 ई. में ज्योतिबा फुले ने महाराष्ट्र में की थी।

उन्होंने दलित जाति के लड़के-लड़कियों के लिए स्कूल खोले थे।

सिख धर्म सुधार आंदोलन

पश्चिमी तर्कसंगत विचारों का प्रभाव सिख अनुयायियों पर भी पड़ा।

इससे पूर्व में सिख धर्म में सुधार हेतु बाबा दयाल दास द्वारा ‘निरंकारी आंदोलन’ चलाया गया।

बाबा राम सिंह द्वारा ‘नामधारी आंदोलन’ चलाया गया।

वायकोम सत्याग्रह

वायकोम सत्याग्रह एक प्रकार का गाँधीवादी आंदोलन था।

यह आंदोलन ब्राह्मणवाद के विरुद्ध तथा मंदिर प्रवेश को लेकर चलाया गया था।

श्री नारायण धर्म परिपालन योगम संगठन ने श्री नारायण गुरु के नेतृत्व में मंदिर में निम्न वर्ग के प्रवेश का समर्थन किया।

मार्च, 1925 में गाँधीजी की मध्यस्थता से त्रावणकोर की महारानी से मंदिर में प्रवेश के बारे में आंदोलनकारियों से समझौता हुआ।

विधवा पुनर्विवाह

ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रयासों से लॉर्ड कैनिंग के समय पारित हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 की धारा-15 के तहत विधवा

विवाह को कानूनी मान्यता मिली थी।

दिसम्बर, 1856 को कलकत्ता में पहला कानूनी हिन्दू पुनर्विवाह अधिनियम सम्पन्न हुआ था।

डी. के. कर्वे ने 1899 ई. में पूना में विधवा आश्रम की स्थापना की थी।

बाल विवाह

1872 ई. में केशवचन्द्र सेन के प्रयासों से सिविल मैरिज एक्ट पारित किया गया।

वर्ष 1930 में हरविलास शारदा के प्रयासों से शारदा एक्ट लागू किया गया जिसके तहत लड़के एवं लड़की के विवाह की आयु क्रमश: 18 एवं 14 वर्ष तय की गई।

सती प्रथा

लॉर्ड विलियम बैंटिक के समय में 1829 ई. में सती प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया गया।

प्रारंभ में इसे बंगाल में लागू किया गया। इस अधिनियम को पारित कराने में राजा राममोहन राय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

दास प्रथा

गवर्नर जनरल लॉर्ड एलनबरो ने 1843 ई. में भारत में दास प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया।

1833 के अधिनियम में निर्देश था कि दास प्रथा को समाप्त कर दिया जाएगा।

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