Constitution of India एक ऐसा टॉपिक है जिसे सभी विद्यार्थियों को पढ़ना चाहिए चाहे वह सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रहा हो या किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की | भारतीय संविधान अन्य देशों की तुलना में सबसे बड़ा संविधान है जब भी आप संविधान को पढ़ेंगे तो उसमें भारतीय संविधान ( Indian constitution ) की प्रमुख विशेषताएँ के बारे में आपको पढ़ने के लिए मिलेगा इस पोस्ट में हम इसी से संबंधित शानदार नोट्स लेकर आए हैं
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भारतीय संविधान ( Indian constitution ) की प्रमुख विशेषताएँ
लिखित एवं विशाल संविधान
- भारतीय संविधान एक विशेष संविधान-सभा द्वारा निर्मित एवं लिखित संविधान है।
- इस दृष्टिकोण से भारतीय संविधान अमरीकी संविधान के समतुल्य है।
- भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक व्यापक दस्तावेज है। मूल संविधान में 22 भाग 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं।
- वर्तमान में संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं।
- भारतीय संविधान की विशालता के कारण ही कुछ लोगों ने इसे ‘वकीलों का स्वर्ग’ (Lawyer’s Paradise) कहा है।
संविधान की प्रस्तावना
- भारतीय संविधान में उत्कृष्ट प्रस्तावना है जिसमें जनता की भावनाएँ और आकांक्षाएँ सूक्ष्म रूप में समाविष्ट है।
संप्रभुत्व सम्पन्न राज्य
- प्रभुत्व सम्पन्न राज्य उसे कहते हैं जो बाह्य नियंत्रण से सर्वथा मुक्त हो और अपनी आन्तरिक तथा विदेशी नीतियों को स्वयं निर्धारित करता हो। इस संबंध में भारत पूर्णतः स्वतंत्र है।
- भारत की सम्प्रभुता किसी विदेशी सत्ता में नहीं अपितु भारत की जनता में निहित है।
- यद्यपि भारत आजादी के बाद भी राष्ट्रमंडल (Common wealth) और संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) का एक सदस्य है, लेकिन उसकी यह सदस्यता अपनी इच्छानुसार है।
लोकतंत्रात्मक गणराज्य
- ‘लोकतंत्रात्मक’ शब्द का अर्थ यह है कि भारत में प्रतिनिधिमूलक प्रजातंत्र की स्थापना की गई है। अर्थात् भारत का शासन भारतीय जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि ही संचालित करेंगे।
- ‘गणराज्य’ से आशय यह है कि राज्य के सभी नागरिकों को अपनी योग्यतानुसार सभी छोटे-बड़े पदों पर पहुँचने का अधिकार है। साथ ही, भारतीय राज्य का प्रधान (राष्ट्रपति) एक निर्वाचित व्यक्ति होगा, ब्रिटेन की तरह आनुवांशिक व्यक्ति नहीं।
संसदीय सरकार
- संविधान में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था है, जो वेस्टमिंस्टर (इंग्लैंड) पर आधारित है।
- इस प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों में, जिसे मंत्रिपरिषद कहते हैं, निहित होती है। मंत्रिपरिषद का प्रधान प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होती है।
- यद्यपि संविधान के अनुसार समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति के हाथों में निहित है, किन्तु वह उसका प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है।
मूल अधिकार
- भारतीय संविधान के भाग-3 में नागरिकों के मूल अधिकारों की घोषण की गई है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में मूल अधिकारों की घोषणा संविधान की एक मुख्य विशेषता होती है।
- इन अधिकारों को संविधान में समाविष्ट करने की प्रेरणा अमेरिकी संविधान से मिली है।
राज्य के नीति-निर्देशक तत्व
- संविधान के भाग-4 में कुछ ऐसे निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है, जिनका पालन करना राज्य का पवित्र कर्तव्य है।
- निदेशक तत्वों के माध्यम से देश में कल्याणकारी राज्य की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
- इसकी प्रेरणा मुख्यतः आयरलैण्ड के संविधान से मिली है।
स्वतंत्र न्यायपालिका
- भारतीय संविधान में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग और स्वतंत्र रखा गया है।
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए न्यायधीशों की नियुक्ति, वेतन, भत्ता तथा पद से हटाए जाने के संबंध में संविधान में स्पष्ट प्रावधान किये गए हैं, जिस कारण सरकार उन पर दबाव नहीं डाल सकती।
संसदीय सर्वोच्चता और न्यायिक सर्वोच्चता का समन्वय
- भारतीय संविधान में संसदीय सर्वोच्चता और न्यायपालिका की सर्वोच्चता के बीच एक अद्भुत मिश्रण है।
- भारतीय संसद न तो इंग्लैण्ड की संसद की तरह सर्वोच्च है और न ही यहां की न्यायपालिका को अमेरिका की न्यायपालिका की तरह असीमित शक्ति प्राप्त है।
कठोर एवं लचीला संविधान
( नम्यता एवं अनम्यता का समन्वय )
- भारतीय संविधान एक साथ ही कठोर तथा लचीला दोनों है।
- यह कठोर इसलिए है कि इसके कुछ प्रावधानों में संशोधन करना अत्यंत कठिन है और इसके लिए एक विशेष प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है। जबकि अधिकतर प्रावधानों को संसद द्वारा साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है।
एकल नागरिकता
- संघात्मक संविधान में साधारणतः दोहरी नागरिकता (एक संघ की और दूसरी राज्यों की) होती है, जैसा कि अमेरिकी व्यवस्था में है। किन्तु, भारतीय संविधान केवल एक नागरिकता को मान्यता प्रदान करता है।
- भारत का प्रत्येक नागरिक केवल भारत का नागरिक है न कि किसी प्रांत का, जिसमें वह रहता है।
वयस्क मताधिकार
- भारत में संसदीय प्रणाली की व्यवस्था है, जिसमें देश का प्रशासन जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। अतः संविधान प्रत्येक वयस्क नागरिक को मताधिकार का अधिकार प्रदान करता है।
- संविधान के प्रवर्तन के समय मतदान का अधिकार केवल उन्हें था, जो 21 वर्ष की आयु पूरी कर लेते थे, लेकिन संविधान के 61वें संशोधन (1989) के द्वारा मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
केन्द्रोन्मुख संविधान
- भारतीय संविधान की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि संघात्मक होते हुए भी उसमें केन्द्रीकरण की सबल प्रवृत्ति है।
- आपातकालीन परिस्थितियों में संविधान पूर्णतया एक एकात्मक संविधान का रूप धारण कर लेता है।
पंथनिरपेक्ष राज्य
- पंथनिरपेक्ष राज्य का आधारभूत सिद्धान्त यह होता है कि राज्य की ओर से धार्मिक मामलों में तटस्थता की नीति का पालन किया जाए।
- भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को धर्म, विश्वास और उपासना की स्वतंत्रता दी गई है। किन्तु, अन्य स्वतंत्रताओं की तरह राज्य स्वतंत्रता पर भी सार्वजनिक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए युक्तियुक्त रोक लगायी जा सकती है।
समाजवादी राज्य
- समाजवादी राज्य की स्थापना संविधान का मुख्य उद्देश्य हे, जिसका संकेत प्रस्तावना में वर्णित सभी नागरिकों को आर्थिक न्याय, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता दिलाने के संकल्प में मिलता है।
- ‘समाजवादी’ शब्द संविधान में 42वें संशोधन द्वारा 1976 में जोड़ा गया।
- उल्लेखनीय है कि भारतीय समाजवाद लोकतांत्रिक विचारधारा पर आधारित समाजवाद है जिसका उद्देश्य विभिन्न वर्ग़ों में असमानता समाप्त करके आर्थिक एवं सामाजिक शोषण को समाप्त करना है।
मूल कर्त्तव्य
- 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग (4-क) जोड़कर नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों को शामिल किया गया।
अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा
- भारतीय संविधान इस अर्थ में भी विशिष्ट है कि इसमें अल्पसंख्यक समुदाय के हितों को सुरक्षा प्रदान की गई है।
- इसके लिए मूल अधिकारों की सूची में धार्मिक स्वतंत्रता, संस्कृति तथा शिक्षा संबंधी अधिकार दिए गए हैं।
विधि का शासन
- भारतीय संविधान विधि के शासन की स्थापना करता है। इसके तहत विधि के समक्ष सभी नागरिक समान हैं तथा राज्य का प्रत्येक अंग विधि द्वारा नियमित एवं नियंत्रित हैं।
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अंतिम शब्द –
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I’m Sanjeev Kumar Singh
Aspirant of UPSC and UPPCS
Thanks