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जब भी आप Indian Polity विषय को पढ़ेंगे तो उसमें आपको उच्चतम न्यायालय ( Supreme court ) के बारे में भी पढ़ने को मिलेगा और इस पोस्ट में भी हम आपको Indian polity m laxmikanth book notes PDF – उच्चतम न्यायालय के नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं ताकि आप इस टॉपिक को यहीं से अच्छे से क्लियर कर सकें यह Indian polity notes for upsc आपको सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में काम आएंगे

 उच्चतम न्यायालय ( Supreme court ) के ऐसे नोट्स आपको शायद और कहीं नहीं देखने को मिलेंगे हमने एक ही पीडीएफ में इस टॉपिक को कवर कर दिया है जिसे आप डाउनलोड भी कर सकते

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Indian polity m laxmikanth book notes PDF – उच्चतम न्यायालय

  • भारतीय संविधान के भाग – 5 में अनु. 124 से 147 तक उच्चतम न्यायालय की शक्तियाँ, न्यायक्षेत्र, कार्यक्षेत्र, गठन प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।
  • भारत में उच्चतम न्यायालय का शुभारम्भ 28 जनवरी, 1950 को हुआ था जो भारत शासन अधिनियम, 1935 के तहत लागू संघीय न्यायालय का प्रतिरूप था।

गठन –

  • उच्चतम न्यायालय के गठन के बारे में प्रावधान अनुच्छेद-124 में किया गया है।
  • अनुच्छेद-124(1) के तहत मूल संविधान में उच्चतम न्यायालय के लिए मुख्य न्यायाधीश तथा 7 अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई थी।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या, क्षेत्राधिकार, सेवा शर्तें निर्धारित करने का अधिकार संसद को दिया गया था। वर्तमान भारत में 33 न्यायाधीश एवं 1 मुख्य न्यायाधीश है।
  • उच्चतम न्यायालय संशोधन अधिनियम, 2019 के द्वारा केन्द्र सरकार ने अगस्त, 2019 में न्यायाधीशों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 कर दी है।

नियुक्ति –

  • उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद करता है।
  • न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है कॉलेजियम व्यवस्था से तात्पर्य यह है कि इसमें वरिष्ठ न्यायाधीशों का एक पैनल होता है जो न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण की प्रक्रिया को संपन्न करता है।

योग्यतााएँ –

  • संविधान के अनुच्छेद-124(3) के अनुसार –

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए निम्न योग्यताओं का होना अनिवार्य है –

(i) वह भारत का नागरिक होना चाहिए।

(ii) उच्च न्यायालय में कम से कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश रहा हो तथा किसी उच्च न्यायालय में कम से कम 10 साल अधिवक्ता के रूप में रहा हो।

(iii) राष्ट्रपति के मत में वह सम्मानित न्यायविद् हो। 

कार्यकाल –

  • भारतीय संविधान में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कोई न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं है।
  • संविधान के अनुच्छेद- 124(2) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अधिकतम 65 वर्ष तक अपने पद पर बने रह सकते हैं।
  • 15वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1963 के द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु से संबंधित किसी भी प्रश्न का निर्णय संसद द्वारा किया जायेगा।

पद से हटाना –

  • अनुच्छेद– 124(4) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने का आधार दुर्व्यवहार, सिद्ध कदाचार है जिसके लिए महाभियोग प्रक्रिया से संसद के दोनों सदनों में सदन की कुल सदस्यता का बहुमत एवं उपस्थित तथा मत देने वाले 2/3 सदस्यों को बहुमत से हटाया जा सकता है।
  • अनुच्छेद-124(5) के अनुसार ऐसे किसी भी प्रस्ताव को संसद में रखने तथा न्यायाधीशों के कदाचार या असमर्थता की जाँच करने के लिए संसद में न्यायाधीश जाँच अधिनियम, 1968 बनाया गया जिसके अनुसार किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए एक प्रस्ताव राष्ट्रपति को संबोधित करके लाया जाएगा।
  • रोचक तथ्य यह है कि अभी तक किसी भी न्यायाधीश पर महाभियोग का प्रस्ताव सिद्ध नहीं हुआ है।
  • भारत में पहली बार महाभियोग उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामा स्वामी (1991-93) के विरुद्ध लाया गया था परन्तु यह लोकसभा में पारित नहीं हो सका था।

शपथ –

  • अनुच्छेद-124(6) के अनुसार मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों को शपथ राष्ट्रपति द्वारा या उनके द्वारा नियुक्त अन्य व्यक्ति द्वारा दिलवाई जाती है।

वेतन तथा भत्ते –

  • अनुच्छेद-125 के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को वेतन संसद द्वारा निर्धारित विधि के आधार पर दिए जाएंगे। संसद द्वारा पारित संशोधन अधिनियम2017 के अनुसार उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को वेतन 2,80,000 रुपये तथा अन्य न्यायाधीशों को वेतन 2,50,000 रुपये प्रति माह दिया जाता है।

कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश –

  • अनुच्छेद 126 के तहत उच्चतम न्यायालय में अगर मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित हो या कर्त्तव्य पालन में असमर्थ हो तो राष्ट्रपति कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकता है।

तदर्थ न्यायाधीश –

  • अनुच्छेद-127(1) के अनुसार तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश की सहमति तथा राष्ट्रपति की पूर्ण मंजूरी के बाद न्यायालय के कोरम पूर्ति करने के लिए की जाती है।

सेवानिवृत्त न्यायाधीश –

  • संविधान के अनुच्छेद-128 के अनुसार मुख्य न्यायाधीश को यह अधिकार दिया गया है कि आवश्यकता पड़ने पर वह राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश से भी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकता है।

कार्यस्थान –

  • अनुच्छेद-130 के अनुसार उच्चतम न्यायालय का कार्यक्षेत्र दिल्ली रहेगा। वैकल्पिक रूप में चाहे तो मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के बाद अन्यत्र जगह स्थापित कर सकते हैं।

उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार एवं शक्तियाँ-

1.  आरंभिक अधिकारिता शक्ति –

  • उच्चतम न्यायालय के मूल क्षेत्राधिकार या आरंभिक अधिकारिता से आशय है कि कुछ ऐसे क्षेत्र जिनकी सुनवाई करने का अधिकार सिर्फ उच्चतम न्यायालय को प्राप्त है।
  • अनुच्छेद-131 में उल्लेख किया गया है कि यदि कोई विवाद जो भारत सरकार और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच उत्पन्न हुआ हो पर सुनवाई करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय को होता है।
  • उच्चतम न्यायालय के न्याय क्षेत्र में संविधान से पूर्व की संधिसमझौता तथा अंतर्राज्यीय जल विवाद को शामिल नहीं किया जाता है।

2.  मूल अधिकारों का संरक्षक –

  • संविधान में उच्चतम न्यायालय को नागरिकों के मूल अधिकारों के रक्षक के रूप में भी स्थापित किया गया है।
  • रिट जारी करने की शक्ति सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद-32 के अन्तर्गत जबकि उच्च न्यायालय को अनुच्छेद-226 के अन्तर्गत प्राप्त है। प्रमुख रिट या प्रलेख निम्न हैं-
  • अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय मूल अधिकारों की रक्षा के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, प्रतिषेध एवं अधिकार पृच्छा की रिट जारी कर सकता है। 

3. सलाहकारी क्षेत्राधिकार –

  • संविधान के अनुच्छेद 143 में राष्ट्रपति को दो श्रेणियों में उच्चतम न्यायालय से राय लेने का अधिकार देता है। जिनमें सार्वजनिक महत्व के किसी मसले पर विधिक प्रश्नन उठने पर उच्चतम न्यायालय सलाह दे भी सकता है तथा इन्कार भी कर सकता है तथा पूर्व संवैधानिक संधि, समझौते पर विवाद उत्पन्न होने पर उच्चतम न्यायालय सलाह देने के लिए बाध्य है लेकिन राष्ट्रपति सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है।

4. अभिलेख न्यायालय –

  • अनु.129 के तहत उच्चतम न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है क्योंकि इनकी कार्यवाही एवं फैसले अभिलेख व साक्ष्य के रूप में रखे जाते हैं। अन्य न्यायालय इसे विधिक संदर्भों की तरह स्वीकार करेंगे।

5. पुनरावलोकन की शक्तियाँ –

  • अनुच्छेद-137 के अनुसार उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा दिये गये निर्णय या आदेशों के पुनरावलोकन या पुनर्विचार की शक्ति प्रदान की गई है। उच्चतम न्यायालय ने न्यायिक समीक्षा शक्ति का प्रयोग विभिन्न मामलों में किया है। जैसे- गोलकनाथ मामला-1967, केशवानंद भारती मामला-1973

6. अपीलीय क्षेत्राधिकार –

  • उच्चतम न्यायालय के अनुच्छेद-132 के तहत अपीलीय अधिकारिता प्राप्त है। उच्चतम न्यायालय अंतिम अपीलीय न्यायालय है जिसमें संवैधानिक मामले की अपील, दीवानी मामलों की अपील, आपराधिक मामलों की अपील व विशेष अनुमति की अपील की जाती है।

7.  संविधान का संरक्षक –

  • उच्चतम न्यायालय भारतीय संविधान के संरक्षक के रूप में कार्य करता है। यदि विधायिका द्वारा बनाया गया कोई भी कानून संविधान के प्रावधानों पर उल्लंघन करता है तो न्यायालय उसे अवैध घोषित कर सकता है।
  • न्यायिक सक्रियता की अवधारणा अमेरिका से ली गई थी। इसका तात्पर्य यह है कि न्यायपालिका द्वारा सरकार के दो अन्य अंगों (विधायिका व कार्यपालिका) को अपने संवैधानिक दायित्वों के पालन के लिए बाध्य करना।

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