सिविल सर्विस परीक्षा एवं अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में World geography notes in hindi से संबंधित अनेक प्रश्न पूछे जाते हैं ऐसे में अगर आप टॉपिक अनुसार नोट्स पढ़ते हैं तो आप इस विषय को मजबूत कर सकते हैं इसलिए हम आपको इस पोस्ट में Environment and Ecology Upsc Notes PDF Free Download के बारे में संपूर्ण नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं ऐसे पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी नोट्स शायद आपने कभी नहीं पढ़े होंगे आपको इस टॉपिक को क्लियर करने के लिए कहीं और से पढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी
विश्व का भूगोल जब भी आप पढ़ेंगे तो पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी ( Environment and Ecology ) के बारे में शार्ट नोट्स आप यहां से पढ़ सकते हैं हमने एक ही पीडीएफ में इन नोट्स को कवर किया है जिसे आप डाउनलोड भी कर सकते हैं
Environment and Ecology Upsc Notes PDF Free Download
– पर्यावरण अंग्रेजी भाषा के शब्द Environment का हिन्दी अर्थ है। जो फ्रेंच शब्द Environ से बना है।
– Environ का अर्थ होता है- आसपास का आवरण।
– हिन्दी शब्द पर्यावरण (परि+आवरण) का अर्थ ओता है। परि= चारों तरफ, आवरण= घेरा, अर्थात् प्रकृति में जो भी चारों तरफ परिलक्षित है जैसे वायु, जल, मिट्टी, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु सभी पर्यावरण के अंग है।
प्रकृति में पाए जाने वाले-
(i) निर्जीव भौतिक घटकों – वायु, जल, मृदा आदि।
(ii) जैविक घटकों – पेड़-पौधे, जीव-जंतु, सूक्ष्म जीवाणु आदि के आधार पर पर्यावरण को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया गया है-
(a) भौतिक पर्यावरण (अजैविक पर्यावरण)
(b) जैविक पर्यावरण
पर्यावरण ( Environment ) के प्रकार
पर्यावरण की प्रकृति गतिशील है। भौतिक तथा जैविक पर्यावरण के तत्त्वों में सदैव कुछ न कुछ परिवर्तन होता रहता है। पर्यावरण के परिवर्तन का प्रभाव पेड़-पौधों और जीव जन्तुओं पर होता है।
आज से 10 लाख वर्ष पूर्व पर्यावरण में आए परिवर्तन के कारण मनुष्य का विकास हुआ था।
पर्यावरणीय समस्याऐं
समस्याओं का वर्गीकरण :-
इन्हें तीन वर्ग़ों में बाँटा जा सकता है।
(A) स्थलीय वातावरण से संबंधित समस्याएं
(B) वायुमण्डलीय वातावरण से संबंधित समस्याएं
(C) जैविक वातावरण से संबंधित समस्याएं
(A) स्थलीय वातावरण से संबंधित समस्याएं –
1. मृदा प्रदूषण
2. जल प्रदूषण
3. वनों का विनाश
1.मृदा प्रदूषण –
जब भूमि में प्रदूषित जल, रसायनयुक्त कीचड़, कूड़ा, कीटनाशक दवा और उर्वरक अत्यधिक मात्रा में प्रवेश कर जाते हैं तो उससे भूमि की गुणवत्ता घट जाती है। इसे मृदा-प्रदूषण कहा जाता है। मृदा-प्रदूषण की घटना भी आधुनिकता की देन है।
2.जल प्रदूषण –
- जल में किसी ऐसे बाहरी पदार्थ की उपस्थिति, जो जल के स्वाभाविक गुणों को इस प्रकार परिवर्तित कर दे कि जल स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो जाय या उसकी उपयोगिता कम हो जाय, जल प्रदूषण कहलाता है।
- जल प्रदूषण निवारण तथा नियन्त्रण अधिनियम, 1974 की धारा 2 (ड) के अनुसार जल प्रदूषण का अर्थ है- जल का इस प्रकार का संक्रमण या जल के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में इस प्रकार का परिवर्तन या किसी (व्यापारिक) औद्योगिक बहिःस्राव का या किसी तरल वायु (गैसीय) या ठोस वस्तु का जल में विसर्जन जिससे उपताप हो रहा हो या होने की सम्भावना हो।
- या ऐसे जल को नुकसानदेह तथा लोक स्वास्थ्य को या लोक सुरक्षा को या घरेलू, व्यापारिक, औद्योगिक, कृषीय या अन्य वैधपूर्ण उपयोग को या पशु या पौधों के स्वास्थ्य तथा जीव-जन्तु को या जलीय जीवन को क्षतिग्रस्त करें।
- वे वस्तुएं एवं पदार्थ जो जल की शुद्धता एवं गुणों को नष्ट करते हों, प्रदूषक कहलाते हैं।
3. वनों का विनाश –
- वनों के विनाश से जैविक वातावरण प्रभावित होता है।
- मनुष्य ने अपने तात्कालिक लाभ के लिये वनों का विनाश किया।
- हर वर्ष जंगलों में खेती के लिये, इऔधन के लिए या इमारती लकड़ी के लिये वनों को काटा।
- जिससे प्रकृति का असंतुलन बढ़ता जा रहा है।
- क्योंकि ये कार्बनडाई ऑक्साइड गैस को अवशोषित कर ऑक्सीजन छोड़ते हैं और धरती का तापमान बनाये रखने में सहयोग करते हैं।
- ये मृदा के अपरदन को भी रोकते हैं।
- लेकिन वनों के विनाश से वातावरण में CO2 की मात्रा बढ़ती जा रही है तथा वर्षा की मात्रा कम हो रही है।
- जिससे पर्यावरणीय समस्या उत्पन्न हो रही है।
- बढ़ता मरूस्थलीकरण भी इसी का एक परिणाम है।
जैव विविधता का स्व-स्थानिक (या मूल-स्थानिक) संरक्षण – ( Environment and Ecology Upsc Notes PDF )
- In-Situ संरक्षण से अभिप्राय जीवों को उनकी वास्तविक परिस्थितियों जैसे-जंगलों या प्राकृतिक आश्रयस्थलों में संरक्षित करने से हैं। जीवों को प्राकृतिक स्थलों में संरक्षित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि बहुत-से वन्य जीवों की प्रजातियां अपने प्राकृतिक जैवीय समुदायों में ही जीवित रह सकती हैं। In-Situ संरक्षण में विविध जीवों को राष्ट्रीय उद्यान (National Park), वन्य जीव विहार (Wild Life Sanctuary) अथवा जीवमण्डल रिजर्व (Biosphere Reserves) में संरक्षित किया जाता है।
- वन्य-जीवों के वास-स्थानों को नष्ट करना और उनकी चोरी-छिपे हत्या करना जैव-विविधता के लिए दो प्रमुख संकट हैं। उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों (देशों) में यह समस्या अत्यधिक गंभीर है। क्योंकि ये क्षेत्र जैव-विविधता की दृष्टि से अत्यधिक समृद्ध है। इस स्थिति के लिए मुख्य दोष स्वयं मानव ही है।
- जैव-विविधता के संरक्षण हेतु सर्वोत्तम उपाय जीवों के प्राकृतिक वास स्थानों को फिर से उनके रहने के उपयुक्त बनाना (पुनरूद्धार) और संरक्षण प्रदान करना है। ऐसा उनके वास-स्थानों को जैव आरक्षित और संरक्षित क्षेत्र घोषित करके ऐसा किया जा सकता है। राष्ट्रीय प्राणी उद्यान और वन्य जीव अभयारण्य जैव-विविधता हेतु जीवों को स्व-स्थानिक (या मूल-स्थानिक) संरक्षण प्रदान करते हैं।
- इसमें मनुष्य की गतिविधियों द्वारा प्रभावित जीव-जन्तुओं को उनके पारितंत्र सहित संरक्षित किया जाता है। In-situ संरक्षण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1.प्राकृतिक विरासत की विविधता तथा पूर्णता को इसके पूरे स्वरूप में अर्थात् प्राकृतिक वातावरण, वनस्पति एवं जीवों के रूप में बनाए रखना एवं संरक्षित रखना;
2.पारिस्थितिक संरक्षण तथा पर्यावरण संरक्षण के विभिनन पक्षों पर शोध कार्य को बढ़ावा देना;
3.शिक्षा, जागरूकता तथा प्रशिक्षण के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराना।
- यह संरक्षण राष्ट्रीय उद्यान, वन्य जीव विहार एवं जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र में किया जाता है।
- राष्ट्रीय उद्यान से अभिप्राय ऐसे क्षेत्र से हैं जो पर्यावरण, प्राकृतिक और ऐतिहासिक वस्तुओं तथा उस पर्यावरण में रहने वाले वन्य जीवों को संरक्षित करने के लिए समर्पित है। राष्ट्रीय उद्यान में किसी का कोई निजी अधिकार नहीं होता। इनमें सभी वन सम्बन्धी कार्य ओर दूसरे उपयोग जैसे घरेलू पशुओं की चराई, लकड़ी काटना आदि नहीं किए जा सकते। राष्ट्रीय उद्यान में ऐसे ढंग और ऐसे साधनों से आनन्द उठाने की व्यवस्था की जाती है जिससे इनमें उपस्थित जैव-विविधता को काई भी क्षति न पहुंचे। भारत में इनका क्षेत्र आयाम 0.04 से 3162 वर्ग कि.मी. तक होता है। इनमें शोध व वैज्ञानिक प्रबन्धीकरण नहीं होता।
- वन्य जीव विहार अथवा अभयारण्य से अभिप्राय ऐसे क्षेत्र से है जो राज्य सरकार द्वारा विशिष्ट प्रकृति के संरक्षण के लिए निर्धारित किया जाता है। इनमें पक्षियों और स्तनधारियों की किसी भी प्रजाति को मारना, उसका शिकार करना या कैद करना मना होता है। केवल बिहार के प्रबन्ध के लिए उत्तरदायी उच्चतम अधिकारी के नियंत्रण में ऐसा किया जा सकता है। वन्य जीवन बिहार में निजी अधिकारों और अन्य उपयोगों की एक सीमा तक स्वीकृति दी जा सकती है जिससे इसके वन्य जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। इनका क्षेत्र राष्ट्रीय उद्यान की अपेक्षा अधिक व्यापक 0.61 से 7818 वर्ग कि.मी. तक होता है।
- जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र से अभिप्राय कम-से-कम व्यवधान वाली, मनुष्य द्वारा कम-से-कम रूपान्तरित व कम-से-कम अवतरान्तित भूमि क्षेत्र से है जो वन्य जीवन की रक्षा के लिए विशेष रूप से सीमांकित किए जाते हैं। इनका क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक व्यापक 5670 वर्ग कि.मी. से अधिक होता है। एक जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र को निम्नलिखित पांच भागों में बाँटा जाता है-
1.कोर क्षेत्र – प्राकृतिक व सबसे कम व्यावधान वाला क्षेत्र।
2.मैनीपुलेशन वानिकी क्षेत्र – मानव निर्मित जंगल वाला क्षेत्र।
3.मैनीपुलेशन पर्यटन क्षेत्र – पर्यटन, शिक्षा व प्रशिक्षण के लिए सुरक्षित क्षेत्र।
4.मैनीपुलेशन कृषीय क्षेत्र – वन्य जनजातियों व कृषि जन्य भूमि के लिए सुरक्षित क्षेत्र।
5.पुर्नकरण क्षेत्र – वह भूमि क्षेत्र जिसका मानव द्वारा विनाश कर दिया गया है और उसे धीरे-धीरे पुनः सुरक्षित करने की आवश्यकता है।
इस समय भारत में निम्न 18 जीव मण्डल आरक्षित क्षेत्र हैं-
- नीलगिरि (कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के मिलन क्षेत्र में)
- कच्छ (गुजरात)
- नंदा देवी (उत्तरांचल)
- अमरकंटक (मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़)
- नोकरेक (मेघालय)
- कोल्ड डेजर्ट (हिमाचल प्रदेश)
- ग्रेट निकोबार (अण्डमान निकोबार)
- शेषाचलम (आंध्रप्रदेश)
- मनार की खाड़ी (तमिलनाडु)
- पन्ना (मध्यप्रदेश) वर्ष 2011 में निर्मित
- मानस (असम)
- सुन्दरवन (पश्चिम बंगाल)
- सिमलीपाल (उड़ीसा)
- डिब्रू-सैखोवा
- देहांग-देबांग (अरूणाचल प्रदेश)
- पंचमढ़ी (मध्यप्रदेश)
- कंचनजंगा (सिक्किम)
- अगस्तयमलाई (तमिलनाडू)
– इनमें से सुन्दर वन एवं मन्नार की खाड़ी विश्व जीवमण्डल रिजर्व के नेटवर्क हेतु प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त भारत में 6 अंतर्राष्ट्रीय तराई क्षेत्र तथा 5 विश्व सम्पदा स्थल भी हैं।
– इस प्रकार के नेटवर्क से वन्य जीव अभयारण्यों को संरक्षण प्रदान करने में अत्यधिक सहायता मिलेगी।
– गुजरात के पाटन में स्थित ‘रानी की वाव’, कुल्लू स्थित ‘ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क’ को विश्व विरासत सूची (World Heritae List) में जून 2014 में शामिल किया गया है। 11वीं सदी में सरस्वती नदी के तट पर निर्मित ‘रानी की वाव’ को सास्कृतिक परिसम्पत्तियों की श्रेणी में विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया है। यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की दोहा (कतर) में 15-25 जून, 2014 को सम्पन्न 10 दिवसीय बैठक में किया गया। इन्हें मिलाकर विश्व विरासत सूची में परिसम्पत्तियों की कुल संख्या 1007 हो गई है, जो 161 देशों में स्थित हैं। उनमें 779 सांस्कृतिक परिसम्पत्तियाँ, 197 प्राकृतिक स्थल व 31 मिश्रित परिसम्पत्तियाँ शामिल हैं। भारत की कुल 32 भारतीय परिसम्पत्तियाँ (25 सांस्कृतिक स्थल/परिसम्पत्तियों की श्रेणी में तथा 7 प्राकृतिक स्थलों की श्रेणी में) इस सूची में शामिल हैं-
प्राकृतिक स्थल –
1. काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क (असम) | 1985 |
2. मानस वन्यजीव अभयारण्य (असम) | 1985 |
3. केवलादेव राष्ट्रीय पार्क, भरतपुर (राजस्थान) | 1985 |
4. सुन्दरबन राष्ट्रीय पार्क (प. बंगाल) | 1987 |
5. नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क चमोली (उत्तराखण्ड) | 1988 |
6. पश्चिमी घाट (सहयाद्री पर्वत) (मुख्यतः केरल में) | 2012 |
7. ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क | 2014 |
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