इस पोस्ट में हम आपको केंद्रीय निर्वाचन आयोग ( Central Election Commission ) से संबंधित नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं जिसमें आप निर्वाचन आयोग के बारे में विस्तृत रूप से पढ़ सकते हैं यह टॉपिक आपको भारतीय राजव्यवस्था में पढ़ने के लिए मिलता है एवं सिविल सर्विस परीक्षा एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है अगर आप इस टॉपिक से संबंधित नोट्स तलाश कर रहे हैं तो इस पोस्ट को अच्छे से जरूर पढ़ें
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केंद्रीय निर्वाचन आयोग के बारे में जानें
भारतीय संविधान के भाग-15 में अनुच्छेद-324 से 329 तक निर्वाचन से संबंधित उपबंधों का प्रावधान किया गया है।
चुनाव लोकतांत्रिक व्यवस्था का सार होता है तथा लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का सफलतापूर्वक संचालन चुनावों के माध्यम से ही किया जाता है। जनता चुनाव के माध्यम से ही अपने प्रतिनिधियों का चयन करती है तथा शासन की अंतिम शक्ति का प्रयोग करती है।
भारत की समस्त चुनाव प्रणाली वयस्क मताधिकार पर आधारित है तथा चुनावों को लेकर विधि निर्माण की शक्ति संसद में निहित है। संसद के द्वारा इस संबंध में 1950 तथा 1951 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का निर्माण किया गया है तथा इसी के अंतर्गत नागरिकों को मत देने का अधिकार प्रदान किया गया है। इसीलिए मत देने का अधिकार एक विधिक अधिकार माना जाता है।
– संविधान का अनुच्छेद-324 देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की व्यवस्था करता है।
– भारत की निर्वाचन प्रणाली ब्रिटेन में प्रचलित निर्वाचन प्रणाली पर आधारित है।
– निर्वाचन से सम्बंधित सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति संसद को प्राप्त है।
⇒ यह भारत में होने वाले विभिन्न चुनावों को सम्पन्न कराने संबंधी कार्य करता है।
गठन
– भारत में निर्वाचन आयोग का गठन एक स्वतंत्र निकाय के रूप में 25 जनवरी, 1950 को किया गया था।
– अक्टूबर, 1993 तक यह एक सदस्यीय था लेकिन 1993 के बाद यह बहुसदस्यीय है जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा दो अन्य चुनाव आयुक्तों का प्रावधान किया गया।
– राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की सहायता के लिए यदि आवश्यक समझे तो प्रादेशिक आयुक्तों की नियुक्ति कर सकता है। निर्वाचन आयुक्त व प्रादेशिक आयुक्तों की सेवा शर्तें राष्ट्रपति विधि द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
नियुक्ति
– मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर की जाती है। अर्थात् निर्वाचन आयोग के सदस्यों में से वरिष्ठतम् सदस्य को मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया जाता है।
कार्यकाल
– मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल पद ग्रहण करने की तारीख से 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक जो भी पहले हो, तक होता है।
वेतन व भत्ते
– संविधान में निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्तों का उल्लेख नहीं किया गया। राष्ट्रपति के द्वारा निर्वाचन आयुक्तों की सेवा शर्तों का निर्धारण किया जाता है।
– 1991 के संसदीय अधिनियम के अनुसार निर्वाचन आयुक्त की सेवा, शर्तें एवं कार्य संचालन उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की भाँति होंगे। वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त का वेतन 2,50,000 रुपये तथा अन्य का वेतन 2,25,000 रुपये प्रतिमाह है।
पद से हटाना
– मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से कार्यकाल पूर्ण होने से पहले उसी रीति व उन्हीं आधारों पर हटाया जा सकता है जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जा सकता है।
– सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है।
निर्वाचन आयुक्त का स्वरूप
– निर्वाचन आयोग स्थापना के समय एक सदस्यीय था। 16 अक्टूबर, 1989 को राष्ट्रपति द्वारा इसमें दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त किया गया था। 1 जनवरी, 1990 को दो निर्वाचन आयुक्तों के पद को समाप्त कर इसे पुन: एक सदस्यीय बना दिया गया, परन्तु 1 अक्टूबर, 1993 को इसमें दो अतिरिक्त सदस्यों की वृद्धि की गई थी इस प्रकार यह वर्तमान में तीन सदस्यीय है।
निर्वाचन आयोग के कार्य – संविधान के अनुच्छेद-324(1) में निर्वाचन आयोग के कार्यों का उल्लेख किया गया है –
- निर्वाचन नामावली अर्थात मतदाता सूचियाँ तैयार करना तथा इसमें सभी योग्य मतदाताओं को पंजीकृत करना।
- निर्वाचन की तिथि तथा समय सारणी निश्चित करना तथा नामांकन पत्रों का परीक्षण करना।
- संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर समस्त चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन या सीमांकन करना।
- राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न आवंटित करना। चुनाव चिह्न आवंटन के किसी विवाद में न्यायालय की तरह कार्य करना।
- निर्वाचन के समय दलों तथा उम्मीदवारों के लिए आचार संहिता का निर्माण करना।
- अनुच्छेद-103 के अंतर्गत संसद सदस्यों की निरर्हता के प्रश्न पर राष्ट्रपति को परामर्श देना।
- अनुच्छेद-192 के अंतर्गत विधानमण्डल के सदस्यों की निरर्हता के प्रश्न पर राज्यपाल को परामर्श देना।
- राजनीतिक दलों को आकाशवाणी तथा टेलीविजन पर प्रचार की अनुमति प्रदान करना।
- उम्मीदवारों द्वारा किए गए कुल व्यय की राशि निश्चित करना।
- मतदान केन्द्रों पर लूट, हिंसा तथा अन्य अनियमितताओं के आधार पर निर्वाचन को रद्द करना।
- आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण।
– राजनीतिक दलों को मान्यता देना-निर्वाचन आयोग जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा-19A के तहत राजनीतिक दलों को राज्य स्तरीय (क्षेत्रीय) या राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्रदान करता है।
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अंतिम शब्द
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