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NCERT Class 12th Polity : लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट नोट्स
आपातकाल की पृष्ठभूमि
· 1967 के बाद से भारतीय राजनीति में जो बदलाव आ रहे थे उनके बारे में हम पहले ही पढ़ चुके हैं।
· इंदिरा गाँधी एक कद्दावर नेता के रूप में उभरी थीं।
आर्थिक संदर्भ
· वर्ष 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया।
· बहरहाल वर्ष 1971-72 के बाद के सालों में भी देश की सामाजिक-आर्थिक दशा में खास सुधार नहीं हुआ।
· बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था।
· लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गए थे। इसके बाद पाकिस्तान से युद्ध भी करना पड़ा।
· युद्ध के बाद अमेरिका ने भारत को हर तरह की सहायता देना बंद कर दिया। इसी अवधि में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में कई गुना बढ़ोतरी हुई। इससे विभिन्न चीजों की कीमतें भी तेज़ी से बढ़ी।
· वर्ष 1973 में वस्तुओं की कीमतों में 23 फीसदी और 1974 से 30 फीसदी का इज़ाफा हुआ। इस तीव्र मूल्यवृद्धि से लोगों को भारी कठिनाई हुई।
· औद्योगिक विकास की दर बहुत कम थी और बेरोजगारी बहुत बढ़ गई थी।
· ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी थी। खर्च को कम करने के लिए सरकार ने अपने कर्मचारियों के वेतन को रोक लिया। इससे सरकारी कर्मचारियों में बहुत असंतोष पनपा।
· वर्ष 1972-73 के वर्ष में मानसून असफल रहा इससे कृषि की पैदावार में भारी गिरावट आई। खाद्यान्न का उत्पादन 8 प्रतिशत कम हो गया। आर्थिक स्थिति की बदहाली को लेकर पूरे देश में असंतोष का माहौल था।
गुजरात और बिहार के आंदोलन
· गुजरात और बिहार दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी।
· यहाँ के छात्र-आंदोलन ने इन दोनों प्रदेशों की राजनीति पर गहरा असर तो डाला ही, राष्ट्रीय स्तर की राजनीति पर भी इसके दूरगामी प्रभाव हुए।
· वर्ष 1974 के जनवरी माह में गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमत तथा उच्च पदों पर जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया।
· वर्ष 1974 के मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी और भ्रष्टाचारी के खिलाफ बिहार में छात्रों ने आंदोलन छेड़ दिया।
· आंदोलन के क्रम में उन्होंने जयप्रकाश नारायण (जेपी) को बुलावा भेजा।
· जेपी तब सक्रिय राजनीति छोड़ चुके थे और सामाजिक कार्य में लगे हुए थे।
· छात्रों ने अपने आंदोलन की अगुवाई के लिए जयप्रकाश नारायण को बुलावा भेजा था, जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा।
· वर्ष 1975 में जेपी ने जनता के ‘संसद-मार्च’ का नेतृत्व किया। देश की राजधनी में अब तक इतनी बड़ी रैली नहीं हुई थी।
1974 की रेल हड़ताल
· वर्ष 1974 में रेलवे कर्मचारियों के संघर्ष से संबंधित राष्ट्रीय समन्वय समिति ने जॉर्ज फर्नान्डिस के नेतृत्व में रेलवे कर्मचारियों की एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया।
· बोनस और सेवा से जुड़ी शर्तों के संबंध में अपनी माँगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए हड़ताल का यह आह्वान किया गया था।
· सरकार ने हड़ताली कर्मचारियों की माँगों को मानने से इनकार कर दिया उसने इसके कई नेताओं को गिरफ्तार किया और रेल लाइनों की सुरक्षा में सेना को तैनात कर दिया। ऐसे में 20 दिन के बाद यह हड़ताल बगैर किसी समझौते के वापस ले ली गई।
· इस क्रम में तीन संवैधानिक मसले उठे थे: क्या संसद मौलिक अधिकारों में कटौती कर सकती है? सर्वोच्च न्यायालय का जवाब था कि संसद ऐसा नहीं कर सकती।
· दूसरा यह कि क्या संसद संविधान में संशोधन करके संपत्ति के अधिकार में काट-छाँट कर सकती है? इस मसले पर भी सर्वोच्च न्यायालय का यही कहना था कि सरकार, संविधान में इस तरह संशोधन नहीं कर सकती कि अधिकारों की कटौती हो जाए।
· तीसरा, संसद ने यह कहते हुए संविधान में संशोधन किया कि वह नीति-निर्देशक सिद्धांतों को प्रभावकारी बनाने के लिए मौलिक अधिकारों में कमी कर सकती है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को भी निरस्त कर दिया।
· दो और बातों ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के संबंधों में तनाव बढ़ाया।
· वर्ष 1973 में केशवानंद भारती के मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फ़ैसला सुनाने के तुरंत बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद खाली हुआ।
· सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाने की परिपाटी चली आ रही थी, लेकिन 1973 में सरकार ने तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी करके न्यायमूर्ति ए.एन.रे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया।
· यह निर्णय राजनीतिक रूप से विवादास्पद बन गया क्योंकि सरकार ने जिन तीन न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी इस मामले में की थी, उन्होंने सरकार के इस कदम के विरुद्ध फैसला दिया।
· ऐसे में संविधान की व्याख्या और राजनीतिक विचारधाराओं का बड़ी तेजी से हुआ जो लोग प्रधानमंत्री के नज़दीकी थे वे एक ऐसी ‘प्रतिबद्ध’ न्यायपालिका तथा नौकरशाही की जरूरत के बारे में बातें करने लगे, जो विधायिका और कार्यपालिका की सोच के अनुकूल आचरण करे।
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अंतिम शब्द –
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