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इस पोस्ट में हम आपको History of india ( भारत का इतिहास ) Notes उपलब्ध करवा रहे हैं Indian history ( भारत का इतिहास ) notes for upsc : यूरोपियों का आगमन का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जिससे आप जब भी अपना पाठ्यक्रम देखेंगे तो उसमें आपको यूरोपीय कंपनियों का आगमन पढ़ने को मिलेगा हम आपको इस टॉपिक के नोट्स एक PDF के रूप में उपलब्ध करवा रहे हैं

 Indian history सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण विषय है और हम आपको इस विषय के सभी लोग ऐसे ही टॉपिक अनुसार उपलब्ध करवाएंगे ताकि इतिहास के बारे में आप अच्छे से पढ़ सके

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Indian history ( भारत का इतिहास ) notes for upsc : यूरोपियों का आगमन

– अट्‌ठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में मुगल साम्राज्य के शीघ्र विघटन के कारण विविध भारतीय शक्तियों में राजनीतिक शून्यता को भरने के लिए तीव्र प्रतिद्वंद्विता दृष्टिगोचर हुई। कुछ समय के लिए ऐसा प्रतीत हुआ, कि मराठे मुगलों के स्थान पर भारत में सर्वाधिक शक्तिशाली हैं। लेकिन उनकी शक्ति के हृास ने भी यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों को भारतीय राजनीति में सक्रिय होने का अवसर प्रदान किया।

– आरंभ में यूरोपीय कंपनियों ने स्थानीय शासकों के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू किया। इस चरण में सर्वोच्चता के लिए पारस्परिक द्वद्वों में भी उलझ गए। अंतत: अंग्रेज़ उप-महाद्वीपीय राजनीतिक शक्ति की प्रतिस्पर्धा में सक्रिय हो गए और अंतिम विजयी के रूप में सफल हुए।

– उनकी इस सफलता के पीछे भारतीय शक्तियों की सामान्य दुर्बलताएँ थीं। भारतीय व्यापार से अर्जित धन को युद्ध की श्रेष्ठ विधियों के साथ प्रयोग करते हुए, अंग्रेज़ों ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य स्थापित किया।

यूरोप से भारत पहुँचने हेतु दो मार्ग थे:-

1. स्थल मार्ग:- बाल्कन प्रदेशों से टर्की, फारस ईरान से अफगान तक पहुँचता था फिर खैबर, कुर्रम, बोलन, तथा गोमल आदि दर्रों से होते हुए भारत पहुँचता था।

2. जलमार्ग:- भूमध्यसागर अथवा कालासागर द्वारा लालसागर, फारस की खाड़ी और अरब सागर होते हुए भारत पहुँचता था। 15वीं सदी में इन दोनों मार्गों पर अरबों का प्रसार बढ़ता गया।

– 1453 ई. में उस्मानिया तुर्कों ने कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया और धीरे-धीरे सम्पूर्ण दक्षिण-पश्चिम व दक्षिण-पूर्वी यूरोपीय क्षेत्रों व व्यापार पर अधिकार हो गया।

इस अधिकार के साथ ही स्थल मार्ग व्यापार हेतु बंद हो गया, अत: यूरोपीयों को नए जल मार्ग की आवश्यकता पड़ी।

– भारत में यूरोपियों के आगमन का क्रम:-

पुर्तगाल   –     डच    –      अंग्रेज    –    डेनिस    –   फ्रांसिस

(1498 ई.)    (1595 ई.)   (1600 ई.)    (1616 ई.)    (1664 ई.)

भारत में स्थापना-

1. पुर्तगाल – 1503 ई. – कोचीन

2. अंग्रेज – 1608 ई. – सूरत

3. डच – 1610 ई. – पुलीकट

4. डेनमार्क – 1620 ई. (तंजौर)

5. फ्रासिंसी – 1668 ई. (सूरत)

भारत में पुर्तगालियों का आगमन:-

– आधुनिक युग में भारत आने वाले यूरोपीय व्यापारियों के रूप में पुर्तगाली सर्वप्रथम रहे। पोप अलेक्जेण्डर ने एक आज्ञा पत्र द्वारा पूर्वी समुद्रों में पुर्तगालियों को व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान किया। प्रथम यूरोपीय यात्री वास्को-डि गामा 90 दिन की समुद्री यात्रा के बाद अब्दुल मनीक नामक गुजराती पथ प्रदर्शक की सहायता से 1498 ई. में कालीकट (भारत) के समुद्री तट पर उतरा।

– वास्को-डि-गामा के भारत आगमन से पुर्तगालियों एवं भारत के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नये युग का शुभारम्भ हुआ। वास्को-डि-गामा ने भारत आने और पुर्तगाल जाने पर हुए यात्रा व्यय के बदले में लगभग 60 गुना अधिक कमाई की। धीरे-धीरे पुर्तगालियों का भारत आने का क्रम जारी हो गया। पुर्तगालियों के दो प्रमुख उद्देश्य –

– अरबों और वेनिस के व्यापारियों का भारत से प्रभाव समाप्त करना।

– ईसाई धर्म का प्रचार करना।

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अंतिम शब्द

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