Rajasthan ka itihas एक ऐसा विषय है जो अगर आप RAS, RAJASTHAN POLICE, S.I. LDC, HIGH COURT एवं अन्य परीक्षा की तैयारी करेंगे तो आपको पढ़ने को मिलेगा इसलिए इस पोस्ट में हम आपको Rajasthan history notes pdf : राजस्थान के प्रमुख राजवंशों का इतिहास बिल्कुल सरल एवं आसान भाषा में उपलब्ध करवा रहे हैं
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राजस्थान के प्रमुख राजवंशों का इतिहास : Rajasthan history notes pdf
गुर्जर-प्रतिहार वंश
- गुर्जर जाति का सर्वप्रथम उल्लेख ‘एहोल अभिलेख’ में किया गया है।
- गुर्जर-प्रतिहार शब्द का उल्लेख चंदेल वंश के शिलालेख में मिलता है।
- इसकी स्थापना छठी शताब्दी के द्वितीय चरण में उत्तर-पश्चिम भारत में हुई थी।
- नीलकुंड, राधनपुर, देवली तथा करडाह शिलालेख में प्रतिहारों को गुर्जर कहा गया है।
- स्कन्द पुराण के पंच द्रविड़ों में गुर्जरों का उल्लेख मिलता है।
- अरब यात्रियों ने इन्हें ‘जुर्ज’ कहा है। अलमसूदी ने गुर्जर-प्रतिहार को ‘अल गुर्जर’ और राजा को ‘बोरा’ कहा है।
- मिहिरभोज के ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट को राम का प्रतिहार एवं विशुद्ध क्षत्रिय कहा है।
- स्मिथ, ब्यूलर, हर्नले आदि विद्वानों ने प्रतिहारों को हूणों की संतान बताया है।
- मुहणोत नैणसी ने गुर्जर-प्रतिहारों की ‘26 शाखाओं’ का वर्णन किया, जिनमें – मंडोर, जालोर, राजोगढ़, कन्नौज, उज्जैन और भड़ौच के गुर्जर-प्रतिहार प्रसिद्ध रहे थे।
- मारवाड़ गुर्जर-प्रतिहार वंश की स्थापना – ‘हरिश्चन्द्र’ (रोहिलद्धि)
- समय – छठी शताब्दी ईस्वी
- राजधानी – मंडोर
- गुर्जर-प्रतिहार वंश का आदिपुरुष – हरिश्चन्द्र
- गुर्जर-प्रतिहारों को भारत का ‘द्वारपाल’ कहा जाता है।
(i) मण्डोर के प्रतिहार
घटियाला शिलालेख में मण्डोर के प्रतिहार वंश की प्रारम्भिक स्थिति व वंशावली मिलती है।
– घटियाला शिलालेख के अनुसार हरिश्चन्द्र नामक ब्राह्मण की पत्नी भद्रा से चार पुत्र भोगभट्ट, कदक, रज्जिल और दह उत्पन्न हुए।
– हरिश्चन्द्र के चारों पुत्रों ने माण्डव्यपुर (मण्डोर) को जीता तथा इसके चारों ओर परकोटा बनवाया।
– मण्डोर के प्रतिहार वंश की वंशावली हरिश्चन्द्र के तीसरे पुत्र रज्जिल से शुरू होती है।
रज्जिल
– रज्जिल ने मंडोर के आसपास के क्षेत्रों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया।
नरभट्ट
– यह रज्जिल का पुत्र था जो रज्जिल का उत्तराधिकारी बना।
– उपाधि – ‘पिल्लापल्ली’
नागभट्ट-प्रथम
– यह नरभट्ट का पुत्र व रज्जिल का पौत्र था जो एक प्रतापी शासक था।
– उपाधि – नाहड़
– घटियाला शिलालेख के अनुसार नागभट्ट-प्रथम ने मण्डोर राज्य की पूर्वी सीमा का विस्तार कर अपनी राजधानी ‘मेड़ान्तक (मेड़ता)’ बनाई।
– नागभट्ट-प्रथम की पत्नी जज्जिका देवी से दो पुत्र तात व भोज उत्पन्न हुए।
यशोवर्धन
– यह नागभट्ट-प्रथम के पुत्र तात का पुत्र था।
– राजोली ताम्रपत्र के अनुसार इसके समय पृथुवर्धन ने गुर्जर-प्रतिहार राज्य पर असफल आक्रमण किया था।
शिलूक
– यह गुर्जर-प्रतिहार के राजा यशोवर्धन के पुत्र चन्दुक का पुत्र था।
– घटियाला शिलालेख के अनुसार शिलूक ने देवराज भाटी से युद्ध किया तथा उसे मारकर उसके राज्य चिह्न व छत्र को छीन लिया
कक्कुक
बाउक के बाद उसका भाई कक्कुक राजा बना।
– इनके समय घटियाला के दो शिलालेख उत्कीर्ण किए गए थे।
– घटियाला के शिलालेखों में कक्कुक को मरु, वल्ल, गुर्जरात्रा, मांड (जैसलमेर), अज्ज (मध्य प्रदेश) व तृवणी आदि राज्यों में ख्याति फैलाने वाला राजा कहा गया है।
– वट्टनानक (नाणा-बेड़ा) नामक नगर बसाया।
– इसने आभीरों का आक्रमण विफल कर इसकी विजय के उपलक्ष्य में रोहिंसकूप व मण्डोर में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया था।
– मण्डोर की ईन्दा प्रतिहार शाखा ने हम्मीर परिहार से परेशान होकर चूंडा राठौड़ को 1395 ई. में मण्डोर को दहेज में दे दिया।
– नागभट्ट-प्रथम से जालोर प्रतिहार वंश का आरम्भ होता है।
– यहाँ के गुर्जर प्रतिहार रघुवंशी प्रतिहार कहलाते हैं।
– इस प्रतिहार वंश का उद्भव भी मण्डोर प्रतिहार शाखा से माना जाता है।
(ii) जालोर, कन्नौज व उज्जैन के गुर्जर प्रतिहार वंश
– नागभट्ट–प्रथम से जालोर प्रतिहार वंश का आरम्भ होता है।
– यहाँ के गुर्जर प्रतिहार रघुवंशी प्रतिहार कहलाते हैं।
– इस प्रतिहार वंश का उद्भव भी मण्डोर प्रतिहार शाखा से माना जाता है।
नागभट्ट प्रथम
– शासनकाल – 730-760 ई.
– नागभट्ट प्रथम के समय मण्डोर के प्रतिहार इनके सामन्तों के रूप में शासन करते थे।
– इनके समय इनका राज्य उत्तर में मारवाड़ से दक्षिण में भड़ौच तक फैला था जिसमें लाट, जालोर, आबू व मालवा के कुछ भाग शामिल थे।
– नागभट्ट-प्रथम का दरबार “नागावलोक का दरबार” कहलाता था।
– जालोर, अवन्ति, कन्नौज प्रतिहारों की नामावली नागभट्ट से प्रारंभ होती है।
– नागभट्ट-प्रथम के प्रमुख सामन्त – गुहिल, चौहान, राठौड़, कलचूरि, चंदेल, चालुक्य, परमार
– नागभट्ट-प्रथम गुर्जर-प्रतिहारों का प्रथम शक्तिशाली शासक था, जिसने अरबों तथा ब्लुचों के आक्रमण को रोके रखा। इसलिए इसे प्रतिहारों में से ‘प्रथम द्वारपाल’ माना जाता है।
– नागभट्ट को क्षत्रिय ब्राह्मण कहा गया है, इसलिए इस शाखा को ‘रघुवंशी प्रतिहार’ भी कहते हैं।
उपाधियाँ –
1. नारायण का अवतार (अरबों पर विजय प्राप्त करने के कारण)
2. राम का द्वारपाल
3. मेघनाद के युद्ध का अवरोधक
4. इन्द्र के दंभ का नाशक
5. नारायण की मूर्ति का प्रतीक
6. म्लेच्छों का नाशक (ग्वालियर प्रशस्ति)
7. नारायण (ग्वालियर प्रशस्ति)
– इसके शासनकाल में चीनी यात्री ‘ह्वेनसांग’ ने कुल 72 देशों की यात्रा की थी। उसने भीनमाल को ‘पिलोमोलो/भीलामाला’ तथा गुर्जर राज्य को ‘कु-चे-लो’ कहा।
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अंतिम शब्द –
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