भारतीय इतिहास एक ऐसा विषय है जहां से लगभग सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते हैं और Indian History Of India को जब तक आप कहानी के रूप में नहीं पढ़ते हैं तो यह आपको समझ में नहीं आएगा इसमें हम आपके लिए इस पोस्ट में Indian History Notes For Upsc : मुगल काल एवं विजयनगर साम्राज्य के ऐसे नोट्स लेकर आए हैं जिन्हें अगर आप एक बार पढ़ लेते हैं तो कभी नहीं भूल पाएंगे
इतिहास के शार्ट नोट्स हम आपके लिए आपके लिए टॉपिक अनुसार लेकर आते हैं जिन्हें आप पीडीएफ के रूप में भी डाउनलोड कर सकते हैं ऐसे नोट्स आपको पुरे गूगल पर ढूंढने से भी नहीं मिलेंगे
Indian History Notes For Upsc : मुगल काल एवं विजयनगर साम्राज्य
बाबर (1526-30) :
- 1494 में ट्रंस आक्सियाना की छोटी सी रियासत फरगना का बाबर उत्तराधिकारी बना।
- मध्य एशिया में कई अन्य आक्रमणकारियों की भांति बाबर भी अपार धनराशि के कारण भारत की ओर आकर्षित हुआ।
- बाबर अपनी पिता की ओर से तैमूर का तथा अपनी माता की ओर से चंगेज खां का वंशज था।
- बाबर के पिता का नाम उमर शेख मिर्जा था। वह चगताई तुर्क था।
- मध्य एशिया में अपने अनिश्चित स्थिति के कारण उसने सिन्धु नदी को पार कर भारत पर आक्रमण किया था।
- 1518-1519 में बाबर ने भेरा के शक्तिशाली किले पर आक्रमण किया जो उसका प्रथम भारतीय अभियान था।
- अप्रैल, 1526 को बाबर तथा इब्राहिम लोदी के बीच पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ।
- इस युद्ध में बाबर ने अपने 12,000 सैनिकों के साथ 1 लाख सैनिक तथा एक हजार हाथी से युक्त इब्राहिम लोदी की सेना को पराजित कर दिया।
- इस युद्ध में बाबर ने उस्मानी विधि का प्रयोग किया।
- इस युद्ध में इब्राहिम लोदी पराजित हुए तथा दिल्ली एवं आगरा तक के प्रदेश बाबर के अधीन हो गये।
- बाबर अपनी उदारता के कारण ‘कलंदर’ नाम से भी जाना जाता है।
- 27 अप्रैल, 1526 को बाबर ने दिल्ली में मुगल वंश के संस्थापक के रूप में राज्याभिषेक किया।
- दिसम्बर, 1530 में आगरा में बाबर की मृत्यु व उसे आगरा के नूर अफगान बाग (वर्तमान आराम बाग) में दफनाया गया। बाद में इसे काबुल में दफनाया गया।
खानवा युद्ध :
- आगरा से 40 किमी. दूर खानवा की लड़ाई 1527 में बाबर तथा राणा सांगा के बीच लड़ी गयी जिसमें सांगा पराजित हुए।
- युद्ध में विजयी होने के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की।
- खानवा की लड़ाई से दिल्ली – आगरा में बाबर की स्थिति मजबूत हुई और ग्वालियर तथा धौलपुर के किले पर भी अधिकार हो गया।
चंदेरी युद्ध :
- खानवा के बाद बाबर ने चंदेरी के युद्ध में राजपूत सरदार मेदिनी राय को पराजित कर चंदेरी पर अधिकार कर लिया।
- 1529 में बाबर ने बनारस के निकट गंगा पार करके घाघरा नदी के निकट अफगानों और बंगाल के नुसरतशाह की सेनाओं का सामना किया।
- बाबर की मातृभाषा तूर्की थी।
- उसकी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ का विश्व साहित्य के क्लासिक ग्रन्थों में स्थान है। बाबरनामा (तुर्की भाषा में) का फारसी भाषा में अनुवाद रहीम खान खाना ने किया।
हुमायूं (1530-1556) :
- हुमायूं 1530 में 23 वर्ष की आयु में आगरा में गद्दी पर बैठा।
- उसके सामने अनेक समस्याएं थीं-प्रशासन को सुगठित करना, आर्थिक स्थिति ठीक करना, अफगानों को पूरी तरह दबाना तथा पुत्रों में राज्य बांटने की तैमूरी प्रथा।
- हुमायूं का छोटा भाई कामरान काबुल और कंधार का प्रशासक था।
- कामरान ने लाहौर तथा मुल्तान पर आधिपत्य जमा लिया।
- 1531 में कालिंजर अभियान के अंतर्गत हुमायूं ने बुंदेलखंड के कालिंजर दुर्ग पर घेरा डाला।
- हुमायूं तथा महमूद लोदी के बीच दोहरिसा का युद्ध हुआ जिसमें महमूद लोदी पराजित हुआ।
- हुमायूं दिल्ली के निकट दीनपनाह नामक नया शहर बनवाने में व्यस्त रहा जो बहादुरशाह की ओर से आगरे पर खतरा पैदा होने की स्थिति में यह नया शहर इसकी राजधानी के रूप में काम आता।
- इसी बीच बहादुरशाह ने अजमेर, पूर्वी राजस्थान को रौंद डाला। चित्तौड़ पर आक्रमण किया तथा इब्राहिम लोदी के चचेरे भाई तातारा खां को सैनिक तथा हथियारों से सहायता दी।
- लेकिन हुमायूं ने जल्द ही तातार खां की चुनौती समाप्त कर दी तथा बहादुरशाह के अंत के लिए मालवा पर आक्रमण कर दिया।
- मांडू किले को पार करने वाला हुमायूं 41वां व्यक्ति था।
- मालवा और गुजरात का समृद्ध क्षेत्र हुमायूं के अधीन आ गया।
- मांडू तथा चम्पानेर के किले पर भी हुमायूं का अधिकार हो गया।
- आगरा से हुमायूं की अनुपस्थिति के दौरान शेर खां ने 1535-37 तक अपनी स्थिति मजबूत बना ली तथा वह बिहार का निर्विरोध स्वामी बन गया।
- शेर खां ने बंगाल के सुल्तान को पराजित किया।
- 1539 में चौसा की लड़ाई में हुमायूं शेर खां से पराजित हुआ।
- मई 1540 में कन्नौज की लड़ाई में अस्करी तथा हिन्दाल कुशलतापूर्वक लड़े लेकिन मुगल पराजित हुए।
- हुमायूं अब राज्यविहीन राजकुमार था क्योंकि काबुल और कंधार कामरान के अधीन था।
- अगले ढ़ाई वर्ष तक हुमायूं सिंध तथा पड़ोसी राज्यों में घूमता रहा लेकिन न तो सिंध के शासक और न ही मारवाड़ के शासक मालदेव ही उसकी सहायता के लिए तैयार था।
- अंततः हुमायूं ने ईरानी शासक के दरबार में शरण ली तथा 1545 में उसी की सहायता से काबुल तथा कंधार को प्राप्त किया।
- हुमायूं 1555 में सूर साम्राज्य के पतन के बाद दिल्ली पर पुनः अधिकार करने में सफल हुआ।
- दिल्ली में अपने पुस्तकालय (दीनपनाह भवन) की इमारत की पहली मंजिल से गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
- हुमायूं सप्ताह के सात दिन, अलग-अलग रंग के कपड़े पहनता था। हुमायूं का मकबरा दिल्ली में हाजी बेगम द्वारा बनवाया इसे ताजमहल का पूर्वगामी भी कहा जाता है।
शेर खां (1540-45) :
- शेर खां का वास्तविक नाम फरीद था। उसके पिता जौनपुर में जमींदार थे।
- 1544 में अजमेर तथा जोधपुर के बीच सूमेल नामक स्थान पर राजपूत और अफगान सरदारों के बीच संघर्ष हुआ जिसमें राजपूत सेना पराजित हुई।
- शेरशाह/शेर खां का अंतिम अभियान कालिंजर (बुंदेलखण्ड) के किले के विरुद्ध हुआ।
- शेरशाह का उत्तराधिकारी उसका दूसरा पुत्र इस्लामशाह हुआ।
- लेकिन हुमायूं ने 1555 में जबरदस्त लड़ाइयों में अफगानों को पराजित कर दिल्ली और आगरा पुनः जीत लिया।
- शेरशाह के शासनकाल में आय का सबसे बड़ा स्रोत भू-राजस्व था।
- रोहतासगढ़ दुर्ग का निर्माण शेरशाह ने करवाया। सड़क-ए-आजम (ग्रांड ट्रंक रोड़) बंगाल में सोनार गाँव से दिल्ली लाहौर होती हुई पंजाब में अटक तक जाती थी।
- भू-राजस्व का निर्धारण भूमि की पैमाइश पर आधारित था।
- राज्य कर का भुगतान नकदी में चाहता था लेकिन यह काश्तकारों पर निर्भर था कि वे कर नकद में दें या अनाज के रूप में।
- शेरशाह ने भूमि की पैमाइश हेतु 32 अंक वाले सिकंदरी गज तथा सन की डंडी का प्रयोग किया।
- मुद्रा सुधार के क्षेत्र में शेरशाह ने 178 ग्रेन का चांदी का रुपया तथा 380 ग्रेन का ताम्बे का दाम चलाया।
- इस्लामशाह ने इस्लामी कानून को लिखित रूप दिया।
- इस्लामशाह ने सैनिकों को नकद वेतन देने की प्रथा चलाई।
- सहसाराम (बिहार) स्थित शेरशाह का मकबरा, जो उसने अपने जीवनकाल में निर्मित करवाया था, स्थापत्य कला की पराकाष्ठा है।
- शेरशाह ने दिल्ली के निकट यमुना के किनारे एक नया शहर बनाया। जिसमें अब केवल पुराना किला तथा उसके अंदर एक मस्जिद सुरक्षित है।
- मलिक मुहम्मद जायसी की श्रेष्ठ रचना पद्मावत शेरशाह के शासनकाल में ही रची गयी।
- हिन्दुओं से जजिया लिया जाता रहा तथा सभी सरदार लगभग अफगान थे।
- घोड़ों को दागने की प्रथा पुनः चलाई गयी।
- मारवाड़ के बारे में शेरशाह का कथन-मैंने मुट्ठीभर बाजरे के लिए दिल्ली के साम्राज्य को लगभग खो दिया था।
- मच्छीवाड़ा (मई 1555) तथा सरहिन्द युद्ध (जून 1555) के बाद हुमायूं ने अपने प्रदेशों को पुनः प्राप्त किया।
अकबर (1556-1605) :
- हुमायूं जब बीकानेर से लौट रहा था तो अमरकोट के राणा ने उसे सहारा दिया।
- अमरकोट में ही 1542 में अकबर का जन्म हुआ।
- 1556 में कलानौर में अकबर की ताजपोशी 13 वर्ष 4 महीने की अवस्था में हुई।
- बैरम खां को खान-ए-खाना की उपाधि प्रदान की गयी तथा राज्य का वकील बनाया गया।
- 5 नवम्बर, 1556 में हेमू के नेतृत्व में अफगान फौज तथा मुगलों के बीच पानीपत की दूसरी लड़ाई हुई जिसमें अफगान सेना पराजित हुई।
- बैरम खां लगभग 4 वर्ष तक (1556-1560) साम्राज्य का सरगना रहा।
प्रान्तीय स्थापत्य कला
1.अटाला मस्जिद | इब्राहिम शाह शर्की (जौनपुर) |
2.अदीना मस्जिद (पांडुआ) | सिकन्दरशाह (बंगाल) |
3.मांडू का किला | हुशंगशाह (मालवा) |
4.बाज बहादुर एवं रूपमती महल | नासिद्दीन शाह (मालवा) |
5.हुशंगशाह का मकबरा | महमूद I (मालवा) |
6.हिंडोला महल | हुशंगशाह (मालवा) |
7.अहमदशाह का मकबरा | मुहम्मद शाह (गुजरात) |
8.जामा मस्जिद | सिकन्दर (कश्मीर) |
- अकबर की धाय माय माहम अनगा थी।
- बैरम खां की मृत्यु के बाद अकबर को पहली विजय मालवा (1561) थी।
- मालवा का शासक बाज बहादुर संगीत प्रेमी था।
- 1564 ई. में अकबर ने गढकटंगा (गोंडवाना) को विजित किया।
- गढ कटगा की स्थापना अमन दास ने की थी।
- यहाँ का राजा वीर नारायण अल्पायु था, अतः उसकी मां रानी दुर्गावती जो महोबा की चंदेल राजकुमारी थी, गढ़कटंगा की वास्तविक शासिका थी।
- आमेर के राजपूत शासक भारमल अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाले प्रथम राजपूत शासक थे।
- अकबर द्वारा 1567-1568 में मेवाड़ अभियान किया गया।
- मेवाड़ का तत्कालीन शासक राणा उदयसिंह ने मालवा के शासक बाज बहादुर को अपने यहाँ शरण देकर अकबर को क्रोधित कर दिया। साथ ही मेवाड़ काफी शक्तिशाली राजपूत राज्य भी था।
- राणा उदयसिंह के छिपने के बाद राजपूत सेना का नेतृत्व जयमल तथा फतेह सिंह (फत्ता) ने संभाला।
- इन दोनों वीरों के मरने के बाद स्त्रियों ने जौहर कर लिया।
- अकबर ने आगरा के मुख्य द्वार पर जयमल तथा फत्ता की प्रतिमाएं लगाने का आदेश दिया।
- आसफ खां को मेवाड़ का सूबेदार नियुक्त किया गया।
- 1569 में अकबर ने रणथम्भौर के राय सुरजन हाड़ा को अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया।
- 1570 में बीकानेर के शासक राय कल्याण मल, जैसलमेर के शासक रावल हरराय ने अकबर की अधीनता स्वीकार की।
- अकबर द्वारा 1572-73 में गुजरात अभियान किया गया।
- गुजरात का तत्कालीन शासक मुजफरशाह III था।
- गुजरात में ही अकबर सर्वप्रथम पुर्तगालियों से मिला और यही पर उसने पहली बार समुद्र को देखा। अकबर ने लड़के व लड़कियों की विवाह की आयु 16 व 14 वर्ष तय की।
- 1574-76 में अकबर ने बिहार तथा बंगाल को मुगल साम्राज्य में शामिल किया।
- उदयसिंह की मृत्यु के बाद राणा प्रताप मेवाड़ का शासक बना।
- राणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ।
- 18 जून, 1576 को मुगल सेना तथा राणा प्रताप की सेना के बीच हल्दीघाटी का युद्ध हुआ जिसमें राणा पराजित हुआ।
- बीदा झाला ने राणा प्रताप को बचा लिया।
- राणा प्रताप की मृत्यु के बाद अमर सिंह मेवाड़ का शासक बना।
- 1599 में मानसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना ने अमर सिंह को पराजित कर दिया। लेकिन मेवाड़ को पूर्ण रूपेण जीता नहीं जा सका।
- 1585-86 में अकबर द्वारा कश्मीर को जीतने तथा काबुल को मुगल साम्राज्य का अंग बनाने के लिए अभियान किया। युसूफजाई कबीले के विद्रोह को दबाने के क्रम में राजा बीरबल मारे गये। बाद में टोडरमल ने इस विद्रोह को दबाया।
- कश्मीर के तत्कालीन शासक युसूफ खां पराजित हुए।
- 1590 में अकबर ने सिंध विजय किया। इस अभियान का नेतृत्व अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना द्वारा किया गया।
- अकबर प्रथम मुगल शासक था जिसने दक्षिणी राज्यों को अधीन करने के लिए अभियान किया।
- खानदेश अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाला प्रथम दक्कनी राज्य था। यहाँ का शासक अली खां था।
- 1601 में असीरगढ़ के किले को विजित किया गया जो कि अकबर का अंतिम सैनिक अभियान था।
- 1602 में सलीम (जहाँगीर) के निर्देश पर ओरछा के बुंदेला सरदार वीरसिंह ने अबुल फजल की हत्या कर दी।
- 1605 में अतिसार रोग से अकबर की मृत्यु हो गयी।
- अकबर का मकबरा आगरा के समीप सिकन्दरा में है।
- 1575 में अकबर ने अपनी नयी राजधानी फतेहपुर सीकरी (आगरा) में इबादतखाना यानी प्रार्थना भवन बनाया।
- इबादतखाना में धार्मिक विषयों पर वाद – विवाद होता था।
- 1578 में इबादतखाना को सभी धर्मों के लिए खोल दिया गया।
- 1579 में अकबर ने मुल्लाओं से निपटने के लिए और अपनी स्थिति को और मजबूत बनाने के लिए महजर की घोषणा की।
- महजर की घोषणा के बाद अकबर ने सुल्तान-ए-आदिल की उपाधि धारण की।
- 1582 में इबादतखाना को बंद कर दिया गया।
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