Indian History Notes For Upsc ( 4 ) भक्ति आंदोलन Part 2 : अगर आप UPSC परीक्षा की तैयारी शुरू कर चुके हैं तो आपको पता होना चाहिए कि IAS / IPS के लिए सबसे महत्वपूर्ण NCERT Indian History कक्षा 6 से 12 तक होता है और अपना बेसिक क्लियर करने के लिए आपको एनसीईआरटी पढ़ना होगा इसलिए इस पोस्ट में हम आपको Indian History Notes : भक्ति आंदोलन Part 2 के नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं जो आपको आगे बहुत ज्यादा काम आने वाले हैं
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Indian History Notes For Upsc ( 4 ) भक्ति आंदोलन Part 2
भाषा और संपर्क
· चिश्तियों ने सभा में स्थानीय भाषा को अपनाया। इसके साथ दिल्ली में चिश्ती सिलसिले के लोग हिंदवी में बातचीत करते थे। बाबा फरीद ने भी क्षेत्रीय भाषा में काव्य रचना की जो गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। कुछ और सूफियों ने लंबी कविताएँ मसनवी लिखी जहाँ ईश्वर के प्रति प्रेम को मानवीय प्रेम के रूपक द्वारा अभिव्यक्त किया गया। सूफी कविता की एक भिन्न विधा की रचना बीजापुर कर्नाटक के आसपास हुई। यह दक्कनी (उर्दू का रूप) में लिखी छोटी कविताएँ थी जो सत्रहवीं – अठारहवीं शताब्दियों में इस क्षेत्र में बसने वाले चिश्ती संतों द्वारा रची गई थे। ये रचनाएँ संभवतः औरतों द्वारा घर का काम जैसे चक्की पीसने और चरखा कातते हुए गायी जाती थी। यह संभव है कि इस क्षेत्र के सूफी यहाँ पहले से चलती आई भक्ति परंपरा से प्रभावित हुए।
सूफी और राज्य
· चिश्ती संप्रदाय की एक और विशेषता संयम और सादगी का जीवन था जिसमें सत्ता से दूर रहने पर बल दिया जाता था किंतु इसका मतलब यह नहीं था कि राजनीतिक सत्ता से अलगाव का भाव रखा जाए। सत्ताधारी विशिष्ट वर्ग अगर बिना माँगे अनुदान या भेंट देता था तो सूफी संत उसे स्वीकार करते और अपने खानकाहों में पूरी तरह खर्च कर देते थे।
· सूफी संतों की धर्म-निष्ठा, विद्वता और लोगों द्वारा उनकी चमत्कारी शक्ति में विश्वास उनकी लोकप्रियता का कारण था। शासन न केवल सूफी संतों से संपर्क रखना चाहते थे बल्कि उनका समर्थन भी प्राप्त करना चाहते थे। सुल्तानों और सूफियों के बीच तनाव के उदाहरण भी मौजूद हैं।
नवीन भक्ति पंथ
उत्तरी भारत में संवाद और असहमति
· अनेक संत कवियों ने नवीन सामाजिक परिस्थितियों, विचारों और संस्थाओं के साथ स्पष्ट और सांकेतिक दोनों प्रकार के संवाद कायम किए।
· इस काल के तीन प्रमुख और प्रभावकारी व्यक्तियों पर दृष्टिपात कर हम देखेंगे कि इन संवादों को किस भाँति अभिव्यक्ति मिली।
दैवीय वस्त्र की बुनाई : कबीर
· कबीर संत कवियों में अप्रतिम थे। इतिहासकारों ने उनके जीवन और काल का अध्ययन उनके काव्य और बाद में लिखी गई जीवनियों के आधार पर किया है। यह प्रक्रिया कई वजहों से चुनौतीपूर्ण रही है। कबीर की बानी तीन विशिष्ट किंतु परस्पर व्याप्त परिपाटियों में संकलित है।
कबीर बीजक
·कबीर पंथियों द्वारा वाराणसी तथा उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर संरक्षित है। कबीर ग्रंथावली का सम्बन्ध राजस्थान के दादू पंथियों से है। इसके अतिरिक्त कबीर के कई पद आदि ग्रंथ साहिब में संकलित हैं।
· कबीर की रचनाएँ अनेक भाषाओं और बोलियों में मिलती हैं। इनमें से कुछ निर्गुण कवियों की खास बोली संत भाषा में है। कुछ रचनाएँ जिन्हें उलटबाँसी (उल्टी कहीं उक्तियाँ) के नाम से जाना जाता है, इस प्रकार से लिखी गई कि उनके रोजमर्रा के अर्थ को उलट दिया गया। कबीर बानी की एक और विशिष्टता यह है कि उन्होंने परम सत्य को वर्णित करने के लिए अनेक परिपाटियों का सहारा लिया।
· इस्लामी दर्शन, वेदांत दर्शन और योगी परंपराएँ इसमें शामिल है। विविध और कभी-कभी तो विरोधात्मक विचार इन पदों में व्यंजित होते हैं। कबीर की समृद्ध परंपरा इस तथ्य की द्योतक है कि कबीर पहले और आज भी उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो सत्य की खोज में रुढ़िवादी, धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं, विचारों और व्यवहारों को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते हैं।
बाबा गुरु नानक और पवित्र शब्द
· बाबा गुरु नानक (1469-1539) का जन्म एक हिन्दू व्यापारी परिवार में हुआ। उनका जन्म स्थान पंजाब का ननकाना गाँव था जो रावी नदी के पास था। उन्होंने फारसी पढ़ी और लेखाकार के कार्य का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वह अपना अधिक समय सूफी और भक्त संतों के बीच गुजारते थे। उन्होंने दूर-दराज की यात्राएँ भी की।
· बाबा गुरु नानक का संदेश उनके भजनों और उपदेशों में निहित है। इनसे पता चलता है कि उन्होंने निर्गुण भक्ति का प्रचार किया। धर्म के सभी बाहरी आडंबरों को उन्होंने अस्वीकार किया जैसे- यज्ञ, आनुष्ठानिक स्नान, मूर्ति पूजा व कठोर तप । हिन्दू-मुसलमानों के धर्म ग्रंथों को भी उन्होंने नकार दिया।
· उनके लिए परम पूर्ण रब का कोई लिंग या आकार नहीं था। उन्होंने इस रब की उपासना के लिए एक सरल उपाय बताया और वह था उनका निरंतर स्मरण व नाम का जाप । बाबा गुरु नानक ने अपने अनुयायियों को एक समुदाय में संगठित किया। सामुदायिक उपासना (संगत) के नियम निर्धारित किए जहाँ सामूहिक रूप से पाठ होता था। उन्होंने अपने अनुयायी अंगद को अपने बाद गुरु पद पर आसीन किया और इस परिपाटी का पालन 200 वर्षों तक होता रहा।
आदि ग्रंथ साहिब
· पाँचवें गुरु अर्जुन देव जी ने बाबा गुरु नानक तथा उनके चार उत्तराधिकारियों, बाबा फरीद रविदास और कबीर की बानी को आदि ग्रंथ साहिब में संकलित किया। इनको ‘गुरबानी’ कहा जाता है और ये अनेक भाषाओं में रचे गए।
मीराबाई, भक्तिमय राजकुमारी
· मीराबाई (लगभग 15-16वीं शताब्दी) संभवतः भक्ति परंपरा की सबसे प्रसिद्ध कवयित्री है। उनकी जीवनी उनके लिखे भजनों के आधार पर संकलित की गई है जो शताब्दियों तक मौखिक रूप से संप्रेषित होते रहे। मीराबाई मारवाड़ के मेड़ता जिले की एक राजपूत राजकुमारी थी जिनका विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध मेवाड़ के सिसोदिया कुल में कर दिया गया।
· उन्होंने अपने पति की आज्ञा के विरुद्ध पत्नी और माँ के परंपरागत उत्तरदायित्वों को निभाने से इंकार किया और विष्णु के अवतार कृष्ण को अपना एकमात्र पति स्वीकार किया। उन्होंने अंतर्मन की भाव प्रवणता को व्यक्त करने वाले अनेक गीतों की रचना की। कुछ परंपराओं के ‘अनुसार मीरा के गुरु रैदास थे जो एक चर्मकार थे। इससे पता चलता है कि मीरा ने जातिवादी समाज की रुढ़ियों का उल्लंघन किया। उनके आसपास अनुयायियों का जमघट नहीं रहा, ना ही किसी निजी मंडली की नींव उन्होंने डाली किंतु फिर भी वह शताब्दियों से प्रेरणा का स्रोत रही हैं।
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अंतिम शब्द –
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