NCERT प्राचीन इतिहास : भारत पर विदेशी आक्रमण – अगर आपके सिलेबस में प्राचीन इतिहास है तो यह पोस्ट आपके लिए है जिसमें हम प्राचीन भारतीय इतिहास ( Ancient History of India ) में पढ़े जाने वाले टॉपिक भारत पर विदेशी आक्रमण के क्लास रूम में तैयार किए गए नोट्स आपके लिए लेकर आए हैं जिसमें आप इस टॉपिक को क्लियर कर सकते हैं प्राचीन इतिहास के नोट्स हम आपको ऐसे ही टॉपिक अनुसार उपलब्ध करवाते हैं
भारत पर विदेशी आक्रमण से संबंधित संपूर्ण नोट्स हमने सरल एवं आसान भाषा में नीचे उपलब्ध करवा दिए हैं जिसे आप केवल पढ़ सकते हैं प्राचीन इतिहास का यह एक महत्वपूर्ण टॉपिक है
प्राचीन भारत का इतिहास : विदेशी आक्रमण
पूर्व मौर्य युग में मगध सम्राटों का अधिकार क्षेत्र भारत के पश्चिमी प्रदेशों तक विस्तृत नहीं हो पाया था। इसी कारण पश्चिमी प्रदेशों में घोर अराजकता तथा अव्यवस्था का वातावरण व्याप्त था।
ऐसी स्थिति में विदेशी आक्रान्ताओं का ध्यान भारत के इस भू-भाग की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही था। परिणाम स्वरूप देश का यह प्रदेश दो विदेशी आक्रमणों का शिकार हुआ।
इनमें पहले आने वाले पर्शिया के हखामनी नरेश थे।
ईरानी आक्रमण ( हखामनी/पारसीक )
छठीं शताब्दी ई.पू. के मध्य साइरस द्वितीय नामक एक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति ने ईरान में हखामनी साम्राज्य की स्थापना की।
उसके साम्राज्य की पूर्वी सीमा भारत को स्पर्श करने लगी।
भारत पर प्रथम विदेशी आक्रमण ईरान (पर्शिया) के हखामनी वंश के राजाओं ने छठीं शताब्दी ई.पू. में किया।
भारत पर प्रथम सफल ईरानी आक्रमण साइरस के उत्तराधिकारी दारा प्रथम (522-486 ई.पू.) ने किया।
दारा प्रथम के तीन अभिलेखों क्रमश: बेहिस्तून, पर्सिपोलिस एवं नक्शेरुस्तम से यह सिद्ध होता है कि दारा ने ही सर्वप्रथम सिंधु नदी के पश्चिम में पंजाब एवं सिंध के भू-भागों पर अधिकार किया।
ईरानी आक्रमण का भारत पर प्रभाव
समुद्री मार्ग की खोज से विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन मिला।
पश्चिमोत्तर भारत में खरोष्ठी लिपि का प्रचार, जो दाएँ से बाएँ तरफ लिखी जाती है।
ईरानियों की आरमेइक लिपि का प्रचार-प्रसार।
अभिलेख उत्कीर्ण करने की प्रथा प्रारम्भ।
यूनानी आक्रमण
ईरानी आक्रमण के बाद भारत को यूनानी आक्रमण अर्थात् मकदूनियाई शासक सिकन्दर के आक्रमण का सामना करना पड़ा।
मेसेडोनिया (मकदूनिया) के शासक फिलिप द्वितीय के पुत्र सिकन्दर ने 326 ई.पू. में बैक्ट्रिया एवं काबुल जीतते हुए हिन्दूकुश पर्वत को पार कर भारत पर आक्रमण किया।
सिकन्दर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् 20 वर्ष की अल्प आयु में राजा बना।
तक्षशिला शासक आम्भी ने आत्म समर्पण के साथ सिकन्दर का स्वागत करते हुए उसे सहयोग का वचन दिया।
326 ई.पू. में सिकन्दर ने सिन्धु नदी पार करके भारत की धरती पर कदम रखा। उसका सबसे प्रसिद्ध युद्ध झेलम नदी के तट पर राजा पोरस के साथ हुआ, जो वितस्ता के युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में पोरस की हार हुई।
सिकन्दर ने दो नगरों की स्थापना की। पहला नगर ‘निकैया’(विजयनगर) और दूसरा अपने प्रिय घोड़े के नाम पर ‘बुकाफेला’ रखा।
सिकन्दर ने जीते हुए भारतीय प्रान्तों को अपने सेनापति फिलिप को सौंपकर विश्व विजय का सपना त्याग कर 325 ई. पू. में सिकन्दर ने वापस अपनी जन्म भूमि की ओर प्रस्थान किया क्योंकि सिकन्दर की सेना ने व्यास नदी को पार करने से मना कर दिया।
यूनान पहुँचने से पहले ही 323 ई.पू. में बेबिलोनिया में सिकन्दर की मृत्यु हो गई।
प्रभाव
भारत में सिकन्दर लगभग डेढ़ वर्ष रहा लेकिन यहाँ उसका विशेष सम्पर्क नहीं रहा।
भारत के हृदय भाग तक पहुँचने में वह सफल नहीं हो पाया।
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अंतिम शब्द –
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