Share With Friends

मौलिक अधिकार – संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनुच्छेद 32 ) नोट्स : भारतीय संविधान में भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्तियों के कुछ मौलिक अधिकार हैं जिसे आपको जानना बहुत जरूरी है भारतीय राजव्यवस्था में मूल अधिकार ( Fundamental Rights ) टॉपिक आपको पढ़ने को मिलेगा और यहां से काफी बार प्रश्न भी पेपर में पूछे जाते हैं यह टॉपिक सभी परीक्षाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है इसलिए हम आपको सभी मौलिक अधिकारों के बारे में एक-एक करके जानकारी देने वाले हैं

हमने नीचे आपको धसंवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनुच्छेद 32 ) के बारे में संपूर्ण जानकारी देने की कोशिश की है आपको इसके बारे में अच्छे से जरूर पढ़ना चाहिए एवं इससे बनने वाले प्रश्नों के साथ प्रैक्टिस भी करनी चाहिए

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

Join whatsapp Group

मौलिक अधिकार – संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनुच्छेद 32 ) नोट्स

अनु. 32   संवैधानिक उपचारों के अधिकार को डॉ. अम्बेडकर ने ‘भारतीय संविधान की आत्मा’ और ‘संविधान की प्राचीर’ कहा है।

  • अनुच्छेद-32 के तहत संवैधानिक उपचार केवल उसी व्यक्ति को उपलब्ध होगा जिसके मूल अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो। इसके अनुसार सर्वोच्च न्यायालय-5 प्रकार की रिट जारी करने की शक्ति रखता है। सम्पूर्ण भारतीय क्षेत्र से कोई भी व्यक्ति अपने मूल अधिकारों की रक्षा के लिये सीधे सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

  • रिट जारी करने की शक्ति सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद-32 के अन्तर्गत जबकि उच्च न्यायालय को अनुच्छेद-226 के अन्तर्गत प्राप्त है। प्रमुख रिट या प्रलेख निम्न हैं-

(i)   बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas carpus) – इसका शाब्दिक अर्थ है ‘को प्रस्तुत किया जाए’ यह रिट ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी के विरुद्ध जारी की जाती है, जिसने किसी व्यक्ति को अवैध रूप से निरुद्ध किया है। इसके अनुसार न्यायालय निरुद्ध या कारावासित व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित कराता है।

(ii)  परमादेश (Mandamus) – इसका शाब्दिक अर्थ है- ‘हम आदेश देते हैं।’ इस रिट का प्रयोग ऐसे अधिकारी को आदेश देने के लिए किया जाता है जो सार्वजनिक कर्त्तव्यों को करने से इंकार या उपेक्षा करता है।

यह रिट राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के विरुद्ध जारी नहीं की जा सकती है।

(iii)  प्रतिषेध (Prohibition) – इसका अर्थ है- ‘मना करना या रोकना।’ इसके अनुसार ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने से निषिद्ध किया जाता है, जो उसमें निहित नहीं है। यह रिट सिर्फ न्यायिक या अर्द्धन्यायिक कृत्यों के विरुद्ध जारी की जाती है। जिस तरह परमादेश सीधे सक्रिय रहता, प्रतिषेध सीधे सक्रिय नहीं रहता है।

(iv)  उत्प्रेषण (Certiorari) – इसका शाब्दिक अर्थ है- ‘सूचना देना या प्रमाणित होना।’ उत्प्रेषण प्रलेख प्रतिषेध प्रलेख के समान ही है, क्योंकि दोनों अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती हैं किन्तु दोनों प्रलेखों में मुख्य अन्तर यह है कि प्रतिषेध रिट कार्यवाही के दौरान, कार्यवाही को रोकने के लिए जारी की जाती है जबकि उत्प्रेषण रिट कार्यवाही की समाप्ति पर निर्णय को रद्द करने हेतु जारी की जाती है।

(v)  अधिकार पृच्छा (Quowarranto) – इसका शाब्दिक अर्थ ‘किसी प्राधिकृत या वारंट के द्वारा है।’ यदि किसी व्यक्ति के द्वारा गैर वैधानिक तरीके से किसी भी पद को धारण किया गया हो तो न्यायालय इस रिट के माध्यम से उसके पद का आधार पूछती है। अन्य चार रिटों से हटकर इसे किसी भी इच्छुक व्यक्ति द्वारा जारी किया जा सकता है, न कि पीड़ित द्वारा। इसे मंत्रित्व और निजी कार्यालय के लिए जारी नहीं किया जा सकता।

  • अनु.32क राज्य कानूनों की संवैधानिक वैधता पर विचार नहीं (निरस्त)
  • अनु. 33 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का सशस्त्र बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति
  • अनु. 34 जबकि किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्राप्त अधिकारों पर निर्बंधन
  • अनु. 35 इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान।

अगर आपकी जिद है सरकारी नौकरी पाने की तो हमारे व्हाट्सएप ग्रुप एवं टेलीग्राम चैनल को अभी जॉइन कर ले

Join Whatsapp GroupClick Here
Join TelegramClick Here

अंतिम शब्द

General Science Notes ( सामान्य विज्ञान )Click Here
Ncert Notes Click Here
Upsc Study MaterialClick Here

उम्मीद करता हूं इस मौलिक अधिकार – संवैधानिक उपचारों का अधिकार ( अनुच्छेद 32 ) नोट्स पोस्ट में उपलब्ध करवाए गए नोट्स  आपके आगामी परीक्षाओं में काम आएंगे ऐसे ही नोट्स हम आपके लिए टोपी के अनुसार बिल्कुल आसान एवं सरल भाषा में उपलब्ध करवाते हैं ताकि आप प्रत्येक टॉपिक को अच्छे से याद कर सके