जब भी आप जीव विज्ञान विषय को पढ़ते हैं तो उसमें आप रक्त से संबंधित एक टॉपिक पढ़ते हैं जिसमें आपको ब्लड ग्रुप के बारे में भी पढ़ने के लिए मिलता है आज हम इस पोस्ट के माध्यम से आपको Blood Group Types बताने वाले हैं जिन्हें आप शॉर्ट एवं सरल भाषा में आसानी से पढ़कर याद कर सकते हैं
यह जीव विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण टॉपिक है और आगामी परीक्षा के लिए आप इसे जरूर याद कर ले ऐसे नोट्स फ्री में आपको कहीं भी नहीं मिलेंगे
Blood Group Types in Hindi – रक्त समूह नोट्स
रक्त समूह [ Blood Group ]
• रक्त समूह (Blood Group) A, B व O की खोज कार्ल लैण्डस्टीनर नामक वैज्ञानिक ने की थी।
• AB रक्त समूह की खोज डी-कॉस्टेलो व स्टर्ली ने की थी।
• रक्त समूह O- सार्वत्रिक दाता (Universal donor) कहलाता है क्योंकि यह रक्त समूह A, B, AB व O सभी से रक्त ले सकता है।
• रक्त समूह AB+ सार्वत्रिकग्राही (Universal Receiver) होता है क्योंकि यह रक्त समूह A, B, AB व O सभी से रक्त ले सकता है।
• रक्त समूह का निर्धारण RBC की सतह पर उपस्थित एंटीजन के द्वारा होता है। यह एंटीजन A और B है जो प्रतिरक्ष (Antibody) अनुक्रिया को प्रेरित करते है। इसी प्रकार विभिन्न व्यक्तियों में दो प्रकार के प्राकृतिक प्रतिरक्षी [Natural Antibody] मिलते है। प्रतिरक्षी एक प्रोटीन पदार्थ है जो प्रतिजन (Antigen) के विरुद्ध पैदा होते हैं।
• रक्त समूह A, B, AB व O में प्रतिजन तथा प्रतिरक्षी निम्नलिखित प्रकार से होते है–
रक्त समूह | लाल रुधिर कणिकाओं पर प्रतिजन (Antigen) | प्लाज्मा में प्रतिरक्षी (Antigen) | रक्तदाता समूह |
A | A | एंटी B | A,O |
B | B | एंटी A | B,O |
AB | AB | अनुपस्थित | AB,A,B,O |
O | अनुपस्थित | एंटी A,B | O |
Rh कारक [ Rh-Factor ]
Rh एक प्रतिजन (Antigen) है जो लगभग 80% मनुष्यों में पाया जाता है यह रीसेस बंदर में पाए जाने वाले एंटीजन के समान है। वह व्यक्ति जिसमें Rh उपस्थित हो उसे Rh सहित (Rh + Ve) कहते है तथा वह व्यक्ति जिसमें Rh अनुपस्थित हो उसे Rh हीन (Rh–Ve) कहते हैं।
• इसकी खोज लैण्डस्टीनर एवं वीनर ने रीसस मकाका बंदर में की थी।
• रक्तदान के दौरान सामान्यत: रक्त देने वाले (दाता) का एंटीजन तथा रक्त ग्राही की एंटीबॉडी की जाँच करना आवश्यक होता है, क्योंकि यदि एंटीजन (A) व एंटीबॉडी (a) समान नहीं होने चाहिए।
• यदि Rh-कारक (Rh-Factor) में Rh-एंटीजन उपस्थित हो तो रक्त समूह धनात्मक होता है तथा Rh-एंटीजन अनुपस्थित हो तो रक्त समूह ऋणात्मक होता है।
एरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटैलिस [ Erythroblastosis Fetalis ]
यह एक विशेष प्रकार की Rh अयोग्यता है। जिसमें एक गर्भवती माता (Rh-ve) एवं उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण (Rh+ve) के बीच होती है। भ्रूण का अपरा से अलग रहने के कारण सगर्भता में माता के Rh-ve को प्रभावित नहीं करता, परन्तु पहले प्रसव के समय माता के Rh-ve रक्त से शिशु के Rh + ve रक्त के संपर्क में आने की संभावना रहती है। इस कारण माता के रक्त में Rh प्रतिरक्षी (Antibody) बनना शुरू होती है। यदि परवर्ती गर्भावस्था हो तो रक्त से (Rh – ve) भ्रूण के रक्त (Rh + ve) में Rh प्रतिरक्षी का रिसाव हो सकता है जिसके कारण भ्रूण की लाल रक्त कणिकाएँ नष्ट हो जाती है जिससे रक्ताल्पता (खून की कमी) और पीलिया हो सकता है इसे एरिथ्रोब्लास्टोसिस फिटैलिस (गर्भ रक्ताणु कोरकता) कहते है। इसीलिए इस स्थिति में बचने के लिए माता को प्रसव के तुरंत बाद Rh प्रतिरक्षी (Antibody) का उपयोग करना चाहिए।
रक्त स्कंदन
रक्त के किसी चोट की प्रतिक्रिया स्वरूप रक्त स्कदंन (रक्त का जमाव) होता है। यह रक्त का स्कदंन जो मुख्यत: फाइब्रिन धागे के जाल से बनता है यह फाइब्रिन, रक्त प्लाज्मा में उपस्थित एंजाइम थ्रोम्बिन की सहायता से फाइब्रिनोजन द्वारा बनती है। इस प्रतिक्रिया में कैल्सियम, आयन महत्त्वपूर्ण कारक है। यह क्रिया शरीर से बाहर अत्यधिक रक्त को बहने से रोकती है।
लसीका [ Lymph ]
यह एक रंगहीन द्रव है जिसमें विशिष्ट लिंफोसाइट मिलते है यह लिंफोसाइट शरीर की प्रतिरक्षा अनुक्रिया में सहायक है।
• क्त जब ऊतक की कोशिकाओं से प्रवाहित होता है, तब बड़े प्रोटीन अणु एवं संगठित पदार्थों को छोड़कर रक्त से जल एवं जल में घुलनशील पदार्थ तरल के रूप में बाहर निकल आते हैं जिसे लसीका या ऊतक द्रव कहते है।
लसीका के कार्य
• लिंफोसाइट रोगाणुओं का भक्षण करता है जिससे संक्रमण नहीं होता है।
• पोषक पदार्थों का परिवहन
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अंतिम शब्द –
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