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जब भी आप Biology अर्थात जीव विज्ञान विषय को पढ़ते हैं तो उसमें आपको पाचन तंत्र ( ( Digestive System ) ) टॉपिक पढ़ने के लिए मिलता है आज हम इस पोस्ट में आपको जीव विज्ञान ( Biology ) : पाचन तंत्र नोट्स लेकर आए हैं ताकि आपका यह टॉपिक इन नोट्स को पढ़कर अच्छे से क्लियर हो जाए | हमने आपको सम्पूर्ण नोट्स बिल्कुल सरल एवं आसान भाषा में उपलब्ध करवाने का प्रयास किया है

अगर आप जीव विज्ञान नोट्स पाचन तंत्र नोट्स ढूंढ रहे हैं तो आप एक बार हमारे द्वारा उपलब्ध करवाये गये नोट्स को जरूर पढ़ें हम उम्मीद करते हैं आपको अन्य कहीं से इस टॉपिक के बारे में पढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी

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Biology Classroom Notes – Digestive System

ध्यान दें अगर आपने पाचन तंत्र नोट्स का पार्ट 1 नहीं पढ़ा है तो नीचे हमने लिंक दिया है यहां से आप पढ़ सकते हैं

 मनुष्य की आँत को दो भागों में विभक्त किया गया है–

 (A) छोटी आँत (B) बड़ी आँत

 (A) छोटी आँत (small Intestine)

• यह आहारनाल का सबसे लम्बा भाग है जिसकी लम्बाई लगभग 6 मीटर तथा चौड़ाई 2.5 मीटर होती है।

• पित्त वाहिनी (Bile duct) तथा अग्न्याशय वाहिनी (Pancreatic duct) संयोजित होकर एक सामान्य वाहिनी (Common duct) बनाती है। यह सामान्य वाहिनी ग्रहणी से छोटी आँत के पीछे की ओर बड़ी आँत में खुलती है।

• इसका अग्र भाग ‘U’ आकार की तरह मुड़ा होता है जिसे ग्रहणी कहते हैं। इसकी लम्बाई 25cm होती है तथा शेष भाग 30cm लम्बा होता जिसे इलियम कहते हैं।

• इलियम की दीवार के भीतर आंत्र रंसाकुर पाए जाते हैं जो आँत की अवशोषण सतह को बढ़ाते हैं।

• छोटी आँत भोजन का पाचन पूर्ण करती है तथा पचे हुए भोजन का अवशोषण करती है।

(B) बड़ी आँत (large Intestine)

 बड़ी आँत को दो भाग में विभक्त किया है –

 (i) कोलोन (Colon)

 (ii) मलाशय (Rectum)

– छोटी आँत व बड़ी आँत के मध्य एक छोटी-सी नली होती है जिसे सीकम (Cecum) कहते हैं।

– ऐपेन्डिक्स – सीकम के शीर्ष पर अंगुली जैसे रचना होती है। इसका आहारनाल में कोई कार्य नहीं होता है यह एक अवशेषी अंग है।

– कोलोन तीन भागों में विभक्त है – उपरिगामी कोलोन (Ascending colon), अनुप्रस्थ कोलोन (Transverse colon) तथा अधोगामी कोलोन (Descending colon)।

– इलियम व कोलोन के जोड़ पर इलियोसीकल वॉल्व पाया जाता है जो भोजन को फिर से छोटी आँत में जाने से रोकता है।

– अधोगामी कोलोन मलाशय (Rectum) से होते हुए अंत में मलद्वार (Anus) के द्वारा शरीर के बाहर खुलता है।

मानव पाचन तंत्र

B. पाचक ग्रंथियाँ [Digestive Glands]

•  वे ग्रन्थियाँ  जो आहरनाल में भोजन के पाचन में सहायक हो पाचक ग्रंथियाँ कहलाती है। यह दो प्रकार की होती है-

(1) आन्तरिक पाचक ग्रन्थियाँ

 [Internal Digestive Glands]

• यह आहारनाल की दीवार में उपस्थित ग्रंथियाँ होती है।

 जैसे – श्लेष्म ग्रन्थियाँ, जठर ग्रंथियाँ, आँत दीवार में उपस्थित ब्रूनर्स ग्रंथियाँ आती है।

(2) बाह्य पाचक ग्रन्थियाँ

 [External Digestive Glands]

 यह  आहार नाल के अलावा शरीर के अन्य भागों में पाई जाने वाली ग्रन्थियाँ है।

• मानव में यह तीन बाह्य पाचक ग्रन्थियाँ पाई जाती है–

 (A) लार ग्रन्थियाँ [Salivary Glands] – इसमें तीन जोड़ी लार ग्रंथियाँ पाई जाती है-

– अधोजिह्वा ग्रन्थि (sublingual Gland) – जिह्वा के दोनों ओर एक -एक संख्या में उपस्थित होती है।

– अधोजंभ ग्रन्थि (Submaxillary Gland) – यह निचले जबड़े के मध्य में मैक्सिला अस्थि के दोनों ओर एक-एक की संख्या में उपस्थित होती है।

– कर्णपूर्व ग्रन्थि (Parotid Gland) – यह कानों के नीचे एक-एक की संख्या में उपस्थित होती है।

– इन ग्रन्थियों से लार मुखगुहा में पहुँचती है।

– लार में लगभग 99% जल तथा शेष 1% एंजाइम होता है। लार में दो एंजाइम पाए जाते है- टायलिन व लाइसोजाइम यह पाचन में सहायता करते है।

 (B) यकृत [ Liver ]

 यह उदरगुहा के ऊपरी भाग में दायींओर स्थित होता है जिसका वजन 1.2 से 1.5 किग्रा के बीच होता है। यह गहरे धुसर रंग का होता है।

– यह मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है।

– यकृत के निचले भाग में नाशपत्ती के आकार की छोटी-सी थैली होती है जिसे पित्ताशय कहते है।

– यकृत में पित्त का स्रावण होता है जो पित्ताशय में संचित हो जाता है।

यकृत के कार्य –

1.  कार्बोहाइड्रेट उपापचय में ग्लाइकोजन का निर्माण व संचय करना।

2.  भोजन में वसा की कमी होने पर कार्बोहाइड्रेड को वसा में परिवर्तित करना।

3.  यह प्रोटीन उपापचय (Protein Metabolism) में सहायक होता है तथा शरीर में प्रोटीन विघटन (Protein Decomposition) द्वारा अन्य वस्तुओं के साथ जल, Co2 और अन्य नाइट्रोजनीय पदार्थ जैसे अमोनिया, यूरिक अम्ल, यूरिया आदि उत्पन्न होता है।

4.  यह विषैले पदार्थों को अविषैले पदार्थों में परिवर्तित कर प्रभावहीन कर देता है जो मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है।

पित्त [ Bile ]  

–  यह पीले रंग का क्षारीय द्रव है जिसका pH मान 7.7 होता है।

– पित्त में 85% जल, 12% पित्त वर्णक, 0.7% पित्त लवण, 0.28% कोलेस्ट्रॉल, 0.3% मध्यम वसाएँ तथा 0.15% लेसिथिन होता है तथा  इसमें एंजाइम पाया जाता है।

– मनुष्य में प्रतिदिन 700-1000 मिली लीटर पित्त बनता है।

पित्त के कार्य –

1. काइम की वसा को जल द्वारा इमल्शन बनाने में सहायक।

2. भोजन के साथ आए हानिकारक जीवाणु को नष्ट करना।

3. यह विटामिन-K तथा वसाओं में अन्य विटामिनों के अवशोषण (Absorption) में सहायक है।

4. अनेक उत्सर्जी व विषैले पदार्थों तथा धातुओं का उत्सर्जन करना।

 5. वसा के अवशोषण में सहायक।

• यह मानव शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि है जो अंत:स्रावी और बहि:स्रावी दोनों प्रकार की ग्रंथि है।

• यह छोटी आँत के ग्रहणी भाग में उपस्थित होती है।

• अनेक नलिकाएँ संयोजित होकर अग्न्याशय वाहिनी बनाती है यह मूल पित्तवाहिनी से मिलकर एक बड़ी नलिका बनाते हैं। यह नलिका एक छिद्र से ग्रहणी में खुलती है।

• अग्न्याशय के एक भाग लैगंरहैन्स की द्विपिकाएँ के β – कोशिका से इन्सुलिन, α – कोशिका से ग्लूकेगॉन, तथा γ – कोशिका से सोमेटोस्टेटिन हार्मोन स्रावित होता है।

1. इन्सुलिन (Insuline)

–  यह अग्न्याशय के एक भाग लैगंरहैंस की द्वीपिका के β कोशिका द्वारा स्रावित होता है।

–  सन् 1921 में फ्रैडेरिक बैटिंग एवं चार्ल्स बेस्ट ने इंसुलिन की खोज की। इंसुलिन का इंजेक्शन सर्वप्रथम लियोनाड थॉम्प्सन को दिया गया था।

–  इंसुलिन ग्लूकोज से ग्लाइकोजन बनने की क्रिया का नियंत्रण करता है। यदि इंसुलिन का अल्प स्रवण हो तो मधुमेह नामक रोग हो जाता है तथा इंसुलिन के अतिस्रवण से हाइपोग्लाइसीमिया नामक रोग हो जाता है जिसके कारण जनन क्षमता तथा दृष्टि ज्ञान कम हो जाता है।

2. ग्लेकेगॉन [Glucagon]

– यह ग्लाइकोजन को पुन: ग्लूकोज में परिवर्तित करता है।

3. सोमेटोस्टेटिन [Somatostatin]

–  यह एक पॉलीपेप्टाइड हार्मोन है जो भोजन के स्वांगीकरण (Assimitation) की अवधि को बढ़ाता है। 

– अग्न्याशयी रस (Pancreatic Juice) – यह अग्न्याशयी कोशिकाओं से स्रावित होता है इसमें तीनों प्रकार के भोज्य पदार्थों को पचाने के एन्जाइम होते हैं इसीलिए इसे पूर्ण पाचक रस कहते हैं।

– इसमें पाँच एंजाइम – ट्रिप्सिन (प्रोटीन का पाचन), माल्टोज व एमाइलेज (कार्बोहाइड्रेट का पाचन), लाइपेज (वसा का पाचन) व कार्बोक्सिपेप्टिडेस पाए जाते हैं।

– यह क्षारिय द्रव होता है जिसमें 98% जल तथा शेष 2% भाग में लवण व एंजाइम होते हैं। इसका pH मान 7.5 – 8.3 होता है।

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अंतिम शब्द

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