जीव विज्ञान ( Biology ) : पाचन तंत्र ( Digestive System ) क्लासरूम नोट्स

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जब भी आप Biology अर्थात जीव विज्ञान विषय को पढ़ते हैं तो उसमें आपको पाचन तंत्र ( ( Digestive System ) ) टॉपिक पढ़ने के लिए मिलता है आज हम इस पोस्ट में आपको जीव विज्ञान ( Biology ) : पाचन तंत्र ( Digestive System ) क्लासरूम नोट्स लेकर आए हैं ताकि आपका यह टॉपिक इन नोट्स को पढ़कर अच्छे से क्लियर हो जाए | हमने आपको सम्पूर्ण नोट्स बिल्कुल सरल एवं आसान भाषा में उपलब्ध करवाने का प्रयास किया है

अगर आप जीव विज्ञान नोट्स पाचन तंत्र नोट्स ढूंढ रहे हैं तो आप एक बार हमारे द्वारा उपलब्ध करवाये गये नोट्स को जरूर पढ़ें हम उम्मीद करते हैं आपको अन्य कहीं से इस टॉपिक के बारे में पढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी

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Biology Classroom Notes – Digestive System

• भोजन में उपस्थित जटिल पोषक पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट, वसा व प्रोटीन) का विभिन्न एन्जाइमों की सहायता से तथा रासायनिक क्रियाओं से छोटे-छोटे घुलनशील अणुओं में निम्नीकरण (degradation) को पाचन (Digestion) कहते हैं ।  

मनुष्य के पाचन तंत्र को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

 A. आहारनाल (Alimentary Canal)

B. पाचन ग्रन्थियाँ (Digestive Glands)

  यह एक लम्बी, कुण्डलित नलिका होती है, जो मुख (Mouth) से प्रारंभ होकर पश्च भाग में स्थित गुदा द्वारा बाहर की ओर खुलती है।  

• यह 8-10 मीटर तक लम्बी होती है।

• आहारनाल के विभिन्न अंग निम्नलिखित हैं–

 1. मुखगुहा   2. ग्रासनली   

 3. आमाशय  4. आँत

•  आहारनाल का अग्र भाग मुख से प्रारम्भ होकर दोनों जबड़ों के बीच एक गुहा में खुलता है, जिसे मुखगुहा कहते हैं।

• इसके ऊपर कठोर तथा नीचे कोमल तालु पाए जाते हैं।

• इसमें पेशी निर्मित जिह्वा तथा दाँत होते हैं।

• जिह्वा का अगला सिरा स्वतंत्र तथा पिछला सिरा फ्रेनुलम द्वारा जुड़ा रहता है।

• जिह्वा के ऊपरी सतह पर छोटे-छोटे उभार के रूप में पिप्पल (पेपिला) होते हैं, जिसे स्वादकलियाँ (Taste buds) कहते हैं।

• इन स्वाद कलियों द्वारा मनुष्य को भोजन के विभिन्न स्वाद का ज्ञान होता है; जैसे- खट्‌टा, मीठा आदि।  

• मुखगुहा के ऊपरी तथा निचले दोनों जबड़ों में 16-16 दाँत एक साँचे में स्थित होते हैं। यह साँचा मसूड़े कहलाता है।

• मसूड़ों तथा दाँतों की इस स्थिति को गर्तदंती (Thecodont) कहते हैं।

• मनुष्य में द्विबारदंती दंत (Diphyodont) व्यवस्था पाई जाती है, जिसमें जीवनकाल में दो प्रकार के दाँत- अस्थायी (दूध के दाँत) तथा स्थायी दाँत पाए जाते हैं। 

• यह विषमदन्ती (Heterodont) अर्थात् एक से अधिक प्रकार के दाँत पाए जाते हैं।

दाँत चार प्रकार के होते हैं

(A)  कृंतक (Incisors) – ये सबसे आगे के दाँत होते हैं, जो भोजन को कुतरने तथा काटने का कार्य करते हैं।

(B)  रदनक (Canines) – ये दाँत भोजन को चीरने-फाड़ने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में 2-2 होते हैं।

(C)  अग्रचवर्णक (Premolars) – ये दाँत भोजन को चबाने का कार्य करते हैं तथा ये प्रत्येक जबड़े में 4-4 पाए जाते हैं। 

(D)  चवर्णक (Molars) – ये दाँत भी भोजन को चबाने का व पीसने का कार्य करते हैं तथा ये प्रत्येक जबड़े में 6-6 पाए जाते हैं। दंत सूत्र –

• दाँत का अधिकतम भाग डेटांइन (दतांस्थि) से बना होता है जो हड्डी से अधिक कठोर व पीले रंग का होता है।

• दाँत के ऊपरी स्तर पर इनैमल (Enamel) का स्तर पाया जाता है जो दाँत को सुरक्षा प्रदान करता है।

• मानव शरीर का कठोरतम भाग इनैमल है।

• ग्रसनी [Pharynx] – मुखगुहा का पिछला भाग है। इसमें दो छिद्र होते हैं निगल द्वार जो ग्रासनली में तथा कण्डद्वार श्वासनली में खुलता है।

• कण्ठद्वार से आगे एक छोटी पत्ती जैसी रचना होती है जो भोजन के दौरान कण्ठद्वार को ढक देती है जिससे भोजन श्वासनली में नहीं जाता है। इसे एपिग्लोटिस (Epiglottis) कहा जाता है।

 यह एक लम्बी नली होती है जो भोजन को आमाशय में पहुँचाती है।

• इसमें किसी प्रकार की पाचन क्रिया नहीं होती है।

• ग्रासनली या ग्रसिका का आमाशय में खुलना एक पेशीय

 अवरोधिनी द्वारा नियंत्रित होता है।

• इसकी दीवार पेशीय व सकुंचनशील होती है जो भोजन के पहुँचते ही तुरंग की तरह सकुंचन शुरू करती है जिसे क्रमाकुंचन (Peristolsis) कहते है। जिसकी गति के कारण भोजन आसानी से आमाशय की ओर खिसकता है।

 यह उदरगुहा में बायीं ओर स्थित द्विपालिका थैली जैसी रचना होती है जिसकी लम्बाई 30cm होती है।

• इसका अग्र भाग कार्डिएक (Cardiac) – व पिछला भाग पाइलोरिक (Pyloric) कहलाता है तथा इनके मध्य का भाग फुण्डिक (Fundic) कहलाता है।

• इसकी भीतरी दीवार पर कोशिकाओं का स्तर होता है जिसे स्तंभाकार एपिथिलियम (Columnar Epithelium) कहते हैं। यह कोशिकाएँ जठर ग्रंथि का निर्माण करती है जो जठर रस के स्रवण में सहायक है।

जठर ग्रंथि की कोशिकाएँ है

 (a) श्लेष्मा कोशिकाएँ [Mucous Cells]

 (b) अम्लजन कोशिकाएँ [Oxyntic cells]

 (c) जाइमोजिन कोशिकाएँ [Zymogen cells]

• यह कोशिकाओं के स्राव का संयोजित रूप जठर रस (Gastric Juice) है।

• जठर रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCL) जिसका स्रवण अम्लजन कोशिकाओं से होता है, श्लेष्मा जिसका स्रवण श्लेष्मा कोशिकाओं से होता है तथा निष्क्रिय पेप्सिनोजेन होता है।

• हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन के साथ आने वाले जीवाणुओं को नष्ट करता है तथा निष्क्रिय पेप्सिनोजन को सक्रिय पेप्सिन में परिवर्तित करता है यह सक्रिय पेप्सिन भोजन में उपस्थित प्रोटीन को पेप्टॉन में परिवर्तित करता है।

• आमाशय  में भोजन के पाचन के पश्चात् यह भोजन ‘काइम’ कहलाता है।

• ‘काइम’ आमाशय  के पाइलोरिक छिद्र द्वारा छोटी आँत में पहुँचाता है।

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अंतिम शब्द

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