अगर आप राजस्थान से संबंधित किसी भी परीक्षा RAS , LDC, S.I. , REET की तैयारी कर रहे हैं तो इस पोस्ट में हम आपके लिए Art and culture of rajasthan Notes pdf से संबंधित एक महत्वपूर्ण अध्याय राजस्थान के लोक देवता ( Rajasthan ke lok Devta Notes in Hindi Pdf ) के बारे में विस्तृत नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं यह नोट्स हाथ से लिखकर सरल एवं आसान भाषा में तैयार किए गए हैं
राजस्थान की कला एवं संस्कृति – लोक देवता यह नोट्स कलाम एकेडमी द्वारा तैयार की गई है जिन्हें आप पीडीएफ के रूप में भी निशुल्क डाउनलोड कर सकते हैं
Rajasthan ke Lok Devta Notes in Hindi
राजस्थान के प्रमुख लोक देवता
– समाज सुधार कार्य, मानव सेवा, वन संरक्षक, पशु धन की रक्षा, गुरुभक्ति, वचन पालन जैसे मूल्यों के लिए, जीवन देने वाले अनेक महापुरुष राजस्थान में लोक देवता एवं संत के रूप में पूजनीय है। सामाजिक एवं धार्मिक कारणों से राजस्थान में लोकदेवताओं का उदय हुआ। ये लोकदेवता साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रणेता थे।
पीर –वह लोकदेवता जो सभी धर्मों में समान रूप से पूजनीय हो।
पाबू, हरभू, रामदे, मांगलिया, मेहा।
पांचू पीर पधारज्यो, गोगाजी जेहा।
पंच पीर
1.गोगाजी
2.पाबूजी
3.हड़बूजी
4.रामदेवजी
5.मेहाजी मांगलिया
गोगाजी चौहान –
– जन्म – वि. सं. 1003 में।
– जन्म स्थान – ददरेवा (चूरू)
– पिता – जेवरजी चौहान।
– माता – बाछल दे।
– पत्नी – केलमदे (मेनलदे)
कोलूमण्ड (फलोदी, जोधपुर) की राजकुमारी ।
– प्रतीक चिह्न – गोगाजी की अश्वारोही भाला लिए योद्धा के प्रतीक रूप में अथवा सर्प के रूप में पूजा की जाती है।
– सवारी- नीली घोड़ी।
– वाद्य यंत्र – डेरू।
– सांकल नृत्य – गोगाजी की आराधना में श्रद्धालु नृत्य करते हैं। इस नृत्य में भक्त लोहे की साँकलों के गुच्छे अपनी पीठ पर उठा-उठाकर मारते हैं जिसे छाया चढ़ाना कहते हैं।
– गोगा राखड़ी – किसान वर्षा के बाद खेत जोतने से पहले हल व बैल को गोगाजी के नाम की राखी गोगा राखड़ी बाँधते हैं।
– केलमदे की मृत्यु साँप के काटने से हुई, जिससे क्रोधित होकर गोगाजी ने अग्नि अनुष्ठान किया, जिसमें कई साँप जलकर भस्म हो गए फिर साँपों के मुखिया ने उनके अनुष्ठान को रोककर केलमदे को जीवित किया। तभी से गोगाजी ‘नागों के देवता’ के रूप में पूजे जाते हैं।
– गोगाजी का अपने मौसेरे भाइयों अर्जन व सुर्जन के साथ जमीन जायदाद को लेकर झगड़ा था। अर्जन-सुर्जन ने मुस्लिम आक्रान्ता महमूद गजनवी की मदद से गोगाजी पर आक्रमण कर दिया। गोगाजी वीरतापूर्वक लड़ते हुए शहीद हुए।
– बिना सिर के ही गोगाजी को युद्ध करते हुए देखकर महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहरपीर (साक्षात पीर) कहा।
– युद्ध करते समय गोगाजी का सिर ददरेवा (चूरू) में गिरा इसलिए इसे शीर्षमेड़ी (शीषमेड़ी) कहते हैं ।
– धड़ नोहर (हनुमानगढ़) में गिरा इसलिए इसे धड़मेड़ी या धुरमेड़ी या गोगामेड़ी भी कहते हैं ।
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अंतिम शब्द
मैं उम्मीद करता हूं कि इस Art and culture of rajasthan Notes pdf – राजस्थान के लोक देवतापोस्ट में उपलब्ध करवाया गया स्टडी मैटेरियल आपको भविष्य में किसी ना किसी परीक्षा में जरूर काम आएगा एवं अगर आपको यह अच्छा लगे तो इस वेबसाइट के बारे में अपने दोस्तों को जरूर बताएं