अगर आप IAS बनने का सपना देख चुके हैं और तैयारी में जुट गए हैं तो सबसे पहले आपको NCERT कक्षा 6 से 12 पढ़ना चाहिए क्योंकि इसमें आपका बेसिक अच्छे से क्लियर हो जाता है और इसलिए इस पोस्ट में हम आपको भारतीय राजव्यवस्था के एक महत्वपूर्ण टॉपिक Ncert Indian Polity Notes Pdf ( 3 ) लोकतंत्र और विविधता की संपूर्ण जानकारी आपको शार्ट तरीके से आसान भाषा में उपलब्ध करवा रहे हैं
जब भी आप Ncert पढ़ेंगे तो उसमें आपको Indian democracy and diversity के बारे में पढ़ने को मिलेगा उसी से संबंधित हम आपको नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं साथ ही आप इसे PDF के रूप में निशुल्क डाउनलोड भी कर सकते हैं
Ncert Indian Polity Notes Pdf ( 3 ) लोकतंत्र और विविधता
परिचय
· लोकतंत्र सारी सामाजिक विभिन्नताओं, अंतरों और असमानताओं के बीच सामंजस्य बैठाकर उनका सर्वमान्य समाधान देने की कोशिश करता है। यहाँ हम सामाजिक विभाजनों की सार्वजनिक अभिव्यक्ति के एक उदाहरण के जरिए अपनी बात स्पष्ट करने की कोशिश करेंगे।
· इसके बाद हम यह चर्चा करेंगे कि सामाजिक विभिन्नता कैसे अलग-अलग रूप धारण करती है। फिर हम यह देखेंगे कि सामाजिक विभिन्नता और लोकतांत्रिक राजनीति किस तरह एक दूसरे को प्रभावित करते हैं।
मैक्सिको ओलंपिक की कहानी
· वर्ष 1968 में मैक्सिको सिटी में हुए ओलंपिक मुकाबलों की 200 मीटर दौड़ के पदक समारोह में अमेरिका का राष्ट्रगान बज रहा है और सिर झुकाए तथा मुट्ठी ताने हुए जो दो खिलाड़ी खड़े हैं, वे हैं अमेरिकी धावक टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस। ये एफ्रो-अमेरिकी है। इन्होंने क्रमश: स्वर्ण और काँस्य पदक जीता था।
· उन्होंने जूते नहीं पहने थे। सिर्फ मोजे चढ़ाए पुरस्कार लेकर दोनों ने यह जताने की कोशिश की कि अमेरिकी अश्वेत लोग गरीब हैं।
· समिथ ने अपने गले में एक काला मफलर जैसा परिधान भी पहना था जो अश्वेत लोगों के आत्मगौरव का प्रतीक है।
· कार्लोस ने मारे गए अश्वेत लोगों की याद में काले मनकों की एक माला पहनी थी।
· अपने इन प्रतीकों और तरीकों से उन्होंने अमेरिका में होने वाले रंगभेद के प्रति अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी का ध्यान खींचने की कोशिश की।
· काले दस्ताने और बँधी हुई मुट्ठियाँ अश्वेत शक्ति का प्रतीक थी।
· रजत पदक जीतने वाले ऑस्ट्रेलियाई धावक पीटर नार्मन ने पुरस्कार समारोह में अपनी जर्सी पर मानवाधिकार का बिल्ला लगाकर इन दोनों अमेरिकी खिलाड़ियों के प्रति अपना समर्थन जताया।
· बाद में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने कार्लोस और स्मिथ द्वारा राजनीतिक बयान देने की इस युक्ति को ओलंपिक भावना के विरुद्ध बताते हुए उन्हें दोषी करार दिया और उनके पदक वापस ले लिए गए।
· नार्मन को भी अपने फैसले की कीमत चुकानी पड़ी और अगले ओलंपिक में उन्हें ऑस्ट्रेलिया की टीम में जगह नहीं दी गई पर इनके फैसलों ने अमेरिका में बढ़ते नागरिक अधिकार आंदोलन के प्रति दुनिया का ध्यान खींचने में सफलता पाई।
· हाल में ही सैन होजृ स्टेट यूनिवर्सिटी ने, जहाँ इन दोनों ने पढ़ाई की थी, इन दोनों का अभिनंदन किया और विश्वविद्यालय के भीतर उनकी मूर्ति लगवाई।
· जब 2006 में नार्मन की मौत हुई तो उनकी अर्थी को कंधा देने वालो में स्मिथ और कार्लोस भी थे।
अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन (1954-1968)
· घटनाओं और सुधार आंदोलनों का एक सिलसिला जिसका उद्देश्य एफ्रो-अमेरिकी लोगों के विरुद्ध होने वलो नस्ल आधारित भेदभाव को मिटाना था।
अश्वेत शक्ति आंदोलन
· यह आंदोलन 1966 में उभरा और 1975 तक चलता रहा। नस्लवाद को लेकर इस आंदोलन का रवैया ज्यादा उग्र था। इसका मानना था कि अमेरिका से नस्लवाद मिटाने के लिए हिंसा का सहारा लेने में भी हर्ज नहीं है।
सामाजिक भेदभाव की उत्पत्ति
· सामाजिक विभाजन अधिकांशत: जन्म पर आधारित होता है।
· सामान्य तौर पर अपना समुदाय चुनना हमारे वश में नहीं होता।
· हम सिर्फ इस आधार पर किसी खास समुदाय के सदस्य हो जाते हैं कि हमारा जन्म उस समुदाय के एक परिवार में हुआ होता है।
विभिन्नताओं में सामंजस्य और टकराव
· सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े जो जाते हैं।
· अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाजन भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर है, भेदभाव का शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन है, उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है।
· अगर एक-सी सामाजिक असमानताएँ कई समूहों में मौजूद हों तो फिर एक समूह के लोगों के लिए दूसरे समूहों से अलग पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है।
· इसका मतलब यह है कि किसी एक मुद्दे पर कई समूहों के हित एक जैसे हो जाते हैं जबकि किसी दूसरे मुद्दे पर उनके नजरिए में अंतर हो सकता है।
· उत्तरी आयरलैंड और नीदरलैंड का उदाहरण लें दोनों ही ईसाई बहुल देश हैं लेकिन यहाँ के लोग प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक खेमे में बँटे हैँ।
· उत्तरी आयरलैंड में वर्ग और धर्म के बीच गहरी समानता है, वहाँ का कैथोलिक समुदाय गरीब है। लंबे समय से उसके साथ भेदभाव होता आया है।
· नीदरलैंड में वर्ग और धर्म के बीच ऐसा मेल दिखाई नहीं देता। वहाँ कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट, दोनों में अमीर और गरीब हैं।
· परिणाम यह है कि उत्तरी आयरलैंड में कैथोलिकों और प्रोटेस्टेंटों के बीच भारी मारकाट चलती रही है पर नीदरलैंड में ऐसा नहीं होता।
· जब सामाजिक विभिन्नताएँ एक-दूसरे से गुँथ जाती है तो एक गहरे सामाजिक विभाजन की जमीन तैयार होने लगती है जहाँ ये सामाजिक विभिन्नताएँ एक साथ कई समूहों में विद्यमान होती हैं वहाँ उन्हें सँभालना अपेक्षाकृत आसान होता है।
· जर्मनी और स्वीडन जैसे समरूप समाज में भी, जहाँ मोटे तौर पर अधिकतर लोग एक ही नस्ल और संस्कृति के हैं, दुनिया के दूसरे हिस्सों से पहुँचने वाले लोगों के कारण तेजी से बदलाव हो रहा है।
· ऐसे लोग अपने साथ अपनी संस्कृति लेकर पहुँचते हैं।
· उनमें अपना अलग समुदाय बनाने की प्रवृत्ति होती है। इस हिसाब से आज दुनिया के अधिकतर देश बहु-सांस्कृतिक हो गए हैं।
परिणामों का दायरा
· उत्तरी आयरलैंड का ही उदाहरण लें जिसका जिक्र हम ऊपर कर चुके हैं।
· ग्रेट ब्रिटेन का यह हिस्सा काफी लंबे समय से हिंसा, जातीय कटुता और राजनीतिक टकराव की गिरफ्त में रहा है।
· यहाँ की आबादी मुख्यत: ईसाई ही है पर वह इस धर्म के दो प्रमुख पंथों में बुरी तरह बँटी है। 53 फीसदी आबादी प्रोटेस्टेंट है जबकि 44 फीसदी रोमन कैथोलिक।
· कैथोलिक का प्रतिनिधित्व नेशनलिस्ट पार्टियाँ करती हैं।
· उनकी माँग है कि उत्तरी आयरलैंड को आयरलैंड गणराज्य के साथ मिलाया जाए तो कि मुख्यत: कैथोलिक बहुल है।
· प्रोटेस्टेंट लोगों का प्रतिनिधित्व यूनियनिष्ट पार्टियाँ करती हैं जो ग्रेट ब्रिटेन के साथ ही रहने के पक्ष में हैं क्योंकि ब्रिटेन मुख्यत: प्रोटेस्टेंट देश है।
· यूनियनिस्टों और नेशनलिस्टों के बीच चलने वाले हिंसक टकराव में ब्रिटेन के सुरक्षा बलों सहित सैकड़ों लोग और सेना के जवान मारे जा चुके हैं।
· वर्ष 1998 में ब्रिटेन की सरकार और नेशनलिस्टों के बीच शांति समझौता हुआ जिसमें दोनों पक्षों ने हिंसक आंदोलन बंद करने की बात स्वीकार की।
· यूगोस्लाविया में कहानी का ऐसा सुखद अंत नहीं हुआ। वहाँ धार्मिक और जातीय विभाजन के आधार पर शुरू हुई राजनीतिक होड़ में यूगोस्लाविया कई टुकड़ों में बँट गया।
तीन आयाम
· सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम तीन चीजों पर निर्भर करता है।
· पहली चीज है लोगों में अपनी पहचान के प्रति आग्रह की भावना। अगर लोग खुद को सबसे विशिष्ट और अलग मानने लगते हैं तो उनके लिए दूसरों के साथ तालमेल बैठाना बहुत मुश्किल हो जाता है।
· जब तक उत्तरी आयरलैंड के लोग खुद को सिर्फ़ प्रोटेस्टेंट या कैथोलिक के तौर पर देखते रहेंगे तब तक उनका शांत हो पाना संभव नहीं है।
· अगर लोग अपनी बहु-स्तरीय पहचान के प्रति सचेत हैं और उन्हें राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा या सहयोगी मानते हैं तब कोई समस्या नहीं होती। जैसे, बेल्जियम के अधिकतर लोग खुद को बेल्जियाई ही मानते हैं भले ही वे डच या जर्मन बोलते हों।
· इस नज़रिए से उन्हें साथ-साथ रहने में मदद मिलती है। हमारे देश में भी ज़्यादातर लोग अपनी पहचान को लेकर ऐसा ही नज़रिया रखते हैं।
· दूसरी महत्त्वपूर्ण चीज़ है कि किसी समुदाय की माँगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं। संविधान के दायरे में आने वाली और दूसरे समुदाय को नुकसान न पहुँचाने वाली माँगों को मान लेना आसान है।
श्रीलंका में ‘श्रीलंका केवल सिंहलियों के लिए’ की माँग तमिल समुदाय की पहचान और हितों के खिलाफ़ थी।
· यूगोस्लाविया में विभिन्न समुदायों के नेताओं ने अपने जातीय समूहों की तरफ़ से ऐसी माँगें रख दीं जिन्हें एक देश की सीमा के भीतर पूरा करना असंभव था।
· तीसरी चीज है सरकार का रुख। सरकार इन माँगों पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त करती है, यह भी महत्त्वपूर्ण है।
· जैसा कि हमने बेल्जियम और श्रीलंका के उदाहरणों में देखा, अगर शासन सत्ता में साझेदारी करने को तैयार हो और अल्पसंख्यक समुदाय की उचित माँगों को पूरा करने का प्रयास ईमानदारी से किया जाए तो सामाजिक विभाजन मुल्क के लिए खतरा नहीं बनते।
· अगर शासन राष्ट्रीय एकता के नाम पर किसी ऐसी माँग को दबाना शुरू कर देता है तो अक्सर उलटे और नुकसानदेह परिणाम ही निकलते हैं। ताकत के दम पर एकता बनाए रखने की कोशिश अक्सर विभाजन की ओर ले जाती है।
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