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अगर आप IAS बनने का सपना देख चुके हैं और तैयारी में जुट गए हैं तो सबसे पहले आपको NCERT कक्षा 6 से 12 पढ़ना चाहिए क्योंकि इसमें आपका बेसिक अच्छे से क्लियर हो जाता है और इसलिए इस पोस्ट में हम आपको भारतीय भूगोल के एक महत्वपूर्ण टॉपिक Ncert Geography Class 11 Notes : भारत की जलवायु की संपूर्ण जानकारी आपको शार्ट तरीके से आसान भाषा में उपलब्ध करवा रहे हैं

 जब भी आप Ncert पढ़ेंगे तो उसमें आपको भारत की जलवायु एवं भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक के बारे में पढ़ने को मिलेगा उसी से संबंधित हम आपको नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं साथ ही आप इसे PDF के रूप में निशुल्क डाउनलोड भी कर सकते हैं

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Ncert Geography Class 11 Notes : भारत की जलवायु

· जलवायु का तात्पर्य अपेक्षाकृत लम्बे समय की मौसमी दशाओं के औसत से होता है।

मौसम:-

·  किसी क्षेत्र विशेष में वायुमण्डल की क्षणिक अवस्था को मौसम कहते है।

मानसून:-

· मानसून शब्द अरबी भाषा के ‘मोसिम’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ ऋतु के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन होना होता है।

· भारत की जलवायु उष्ण मानसूनी जलवायु है जो दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया में पाई जाती है।

नोट:- मानसून की खोज अरबी यात्रियों ने की। मौसम और जलवायु के तत्त्व- तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवन, आर्द्रता, वर्षण

मानसून जलवायु में एकरूपता एवं विविधता

तापमान में विविधता

वर्ष में विविधता

पवनों के प्रति रूप में विविधता

मानसून जलवायु में एकरूपता एवं विविधता:-

·सम्पूर्ण भारत में मानसूनी जलवायु है जो भारत को जलवायुविक एकता का स्वरूप प्रदान करती है। जलवायविक एकता के बावजूद भी भारत में तापमान, वर्षा, शुष्कता, आर्द्रता आदि में प्रादेशिक विविधताएँ देखने को मिलती है। जैसे-

1. तापमान में विविधता:-

· गर्मियों में पश्चिमी मरुस्थल में तापक्रम कई बार 55° सेल्सियस को स्पर्श कर लेता है जबकि सर्दियों में लेह के आस-पास तापमान -45° सेल्सियस तक गिर जाता है।

· राजस्थान के चूरू जिले में जून के महीने में किसी एक दिन का तापमान 50° सेल्सियस अथवा इससे भी अधिक हो जाता है जबकि उसी दिन अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में तापमान मुश्किल से 19° सेल्सियस तक पहुँचता है।

· केरल और अण्डमान द्वीप समूह में दिन और रात के तापमान में मुश्किल से 7 या 8° सेल्सियस का अंतर पाया जाता है किंतु थार मरुस्थल में दिन का तापमान 50° सेल्सियस हो जाता है और रात का तापमान 15-20° सेल्सियस के बीच पहुँच जाता है।

2. वर्षा में विविधता:-

·हिमालय में वर्षा हिमपात के रूप में होती है जबकि देश के अन्य भागों में जल की बूँदों के रूप में होती है।

· मेघालय के खासी पहाड़ियों में स्थित चेरापूंजी और मॉसिनराम में औसत वार्षिक वर्षा 1080 सेमी. से ज्यादा होती है इसके विपरीत राजस्थान के जैसलमेर में औसत वार्षिक वर्षा शायद ही 9 सेमी. से अधिक होती हो।

· मेघालय की गारो पहाड़ियों में स्थित तुरा में एक ही दिन में उतनी वर्षा होती है जितनी जैसलमेर में 10 वर्षों में नहीं होती।

·उत्तरी-पश्चिमी हिमालय तथा पश्चिमी मरुस्थल में वार्षिक वर्षा 10 सेमी. से भी कम होती है जबकि उत्तरी-पूर्वी हिमालय में वार्षिक वर्षा 400 सेमी. से ज्यादा होती है।

3. पवनों के प्रतिरूप में विविधता:-

·जुलाई-अगस्त में, गंगा के डेल्टा तथा ओडिशा के तटीय भागों में हर तीसरे या पाँचवें दिन प्रचण्ड तूफान मूसलाधार वर्षा करते हैं जबकि इन्हीं महीनों में 1 हजार किमी. दूर दक्षिण में स्थित तमिलनाडु का कोरोमण्डल तट शांत एवं शुष्क रहता है।

·देश के अधिकांश भागों में वर्षा जून और सितंबर के बीच होती है किंतु तमिलनाडु के तटीय प्रदेशों में वर्षा शरद ऋतु के आरंभ में होती है।

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

स्थिति एवं उच्चावच संबंधी कारक 

वायुदाब एवं पवन संबंधी कारक

स्थिति व उच्चावच संबंधी कारक:-

1. अक्षांश

2. हिमालय पर्वत

3. जल और स्थल का वितरण

4. समुद्र तट से दूरी

5. समुद्र तल से ऊँचाई

6. उच्चावच

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक:-

· इन्हें दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-

1. स्थिति व उच्चावच संबंधी कारक

2. वायुदाब एंव पवन संबंधी कारक

स्थिति व उच्चावच संबंधी कारक:-

1. अक्षांश:-

· कर्क रेखा पूर्व-पश्चिम दिशा में भारत के मध्य भाग से गुजरती है। भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबंध में और कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भाग उष्ण कटिबंध में पड़ता है।

· उष्ण कटिबंध भू-मध्य रेखा के निकट होने के कारण वर्ष भर ऊँचा तापमान तथा कम दैनिक और वार्षिक तापांतर का अनुभव करता है जबकि कर्क के रेखा के उत्तर में स्थित भाग भू-मध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक तथा वार्षिक तापांतर का अनुभव करता है।

2. हिमालय पर्वत:-

· हिमालय पर्वत शृंखला भारतीय उप-महाद्वीप को उत्तरी ध्रुव से चलने वाले ठण्डी पवनों से सुरक्षा करती है।

· हिमालय पर्वत मानसूनी पवनों को रोककर भारतीय उप-महाद्वीप में वर्षा का कारण बनती है।

3. जल और स्थल का वितरण:-

· स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है और देर से ठण्डा होता है, जल और स्थल के इस विभेदी तापन के कारण भारतीय उप-महाद्वीप में विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न वायुदाब प्रदेश विकसित हो जाते हैं। वायुदाब में भिन्नता मानसूनी पवनों के उत्क्रमण का कारण बनती है।

4. समुद्र तट से दूरी:-

·  लम्बी तटीय रेखा के कारण भारत के विस्तृत तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु पाई जाती है जबकि भारत के आंतरिक भाग समुद्र के समकारी प्रभाव से वंचित रह जाते हैं। ऐसे वंचित क्षेत्रों में विषम जलवायु पाई जाती है यही कारण है कि मुंबई तथा कोंकण तट के निवासी तापमान की विषमता और ऋतु परिवर्तन का अनुभव नहीं कर पाते जबकि दूसरी ओर भारत के आंतरिक भागों में स्थित दिल्ली, कानपुर व अमृतसर में मौसमी परिवर्तन पूरे जीवन को प्रभावित करता है।

5. समुद्र तल से ऊँचाई:-

· ऊँचाई के साथ तापमान घटता है इस कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की तुलना में ठण्डे होते हैं, जैसे- आगरा और दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित है किंतु जनवरी में आगरा का तापमान 16° सेल्सियस जबकि दार्जिलिंग में 4° सेल्सियस होता है।

6. उच्चावच:-

· भारत का भौतिक स्वरूप तापमान, वायुदाब, पवनों की गति एवं दिशा तथा वर्षा की मात्रा और वितरण को प्रभावित करता है, जैसे- जून-जुलाई के बीच पश्चिमी घाट तथा असम के पवनाभिमुखी ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं जबकि पवनाविमुखी ढाल कम वर्षा प्राप्त करते है।

वायुदाब एंव पवन संबंधी कारक:-

· भारत की स्थानीय जलवायु में पाई जाने वाली विविधता को समझने के लिए 3 तीन कारकों की क्रियाविधि को जानना आवश्यक है-

1. वायुदाब एवं पवनों का धरातल पर वितरण।

2. जेट प्रवाह और ऊपरी वायु परिसंचरण।

3. पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ तथा उष्ण कटिबंधीय चक्रवात।

शीतऋतु में मौसम की क्रियाविधि:-

1. वायुदाब एवं पवनों का धरातल पर वितरण:-

· शीत ऋतु में भारत का मौसम मध्य व पश्चिमी एशिया के वायुदाब वितरण को प्रभावित करता है क्योंकि इस समय हिमालय के उत्तर में तिब्बत व उच्च वायुदाब केंद्र स्थापित हो जाता है।

· इस उच्च वायुदाब केंद्र से दक्षिण में भारतीय उप-महाद्वीप की ओर निम्न स्तर पर धरातल के साथ-साथ पवनों का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है यह पवनें भारत में शुष्क महाद्वीपीय पवनों के रूप में पहुँचती है।

· ये शुष्क महाद्वीपीय पवनें उत्तरी-पश्चिमी भारत में व्यापारिक पवनों के सम्पर्क में आती है लेकिन इनका सम्पर्क क्षेत्र स्थायी नहीं है कई बार यह सम्पर्क क्षेत्र खिसक कर मध्य गंगा घाटी के ऊपर पहुँच जाता है इस कारण मध्य गंगा घाटी तक सम्पूर्ण उत्तरी-पश्चिमी तथा उत्तरी-भारत इन शुष्क उत्तरी पवनों के प्रभाव में आ जाता है।

2. जेट प्रवाह और ऊपरी वायु परिसंचरण:-

·मध्य व पश्चिमी एशिया के उच्च वायुदाब से भारत की ओर चलने वाली पवनें धरातल के निकट या वायुमण्डल के नीचली सतहों में चलती है।

· धरातल से 3 किमी. की ऊँचाई पर क्षोभमण्डल में बिल्कुल भिन्न प्रकार का वायु संचरण होता है इस वायु संचरण के निर्माण में धरातल के निकट वायुमण्डलीय दाब की भिन्नताओं की कोई भूमिका नहीं होती।

· धरातल से 9-13 किमी. की ऊँचाई पर समस्त मध्य व पश्चिमी एशिया से पश्चिमी से पूर्व की ओर बहने वाली पछुआ पवनों के प्रभाव के अधीन हो जाता है। ये पछुआ पवनें तिब्बत के पठार के समानांतर हिमालय के उत्तर में एशिया महाद्वीप में चलती है इन्हीं हवाओं को जेट प्रवाह कहा जाता है।

· तिब्बत उच्च भूमि इन जेट प्रवाहों के मार्ग में अवरोधक का काम करती है जिसके कारण जेट प्रवाह 2 भागों में बँट जाता है। इसकी एक शाखा तिब्बत के पठार के उत्तर में बहती है जबकि दूसरी शाखा हिमालय के दक्षिण में पूर्व की ओर बहती है।

·यह दक्षिणी शाखा फरवरी में 25° उत्तरी अक्षांश रेखा पर प्रवाहित होती है जिसका दाब स्तर 200-300 मिलीबार होता है। यही दक्षिणी शाखा भारत में सर्दियों के मौसम में महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

3. पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ तथा उष्ण कटिबंधीय चक्रवात:-

· भूमध्य सागर पर उत्पन्न होने वाला पश्चिमी विक्षोभ सर्दियों के मौसम में पश्चिमी जेट प्रवाह द्वारा भारतीय उप-महाद्वीप में पश्चिमी और उत्तरी-पश्चिमी भाग से प्रवेश करता है। शीतकाल की रात्रि के तापमान में वृद्धि पश्चिमी विक्षोभ के आने का पूर्व संकेत माना जाता है।

· बंगाल खाड़ी तथा हिन्द महासागर में उत्पन्न होने वाले उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तेज गति की हवाओं के साथ तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के तटीय भागों पर टकराते हैं जिससे भारी बारिश होती है, ऐसे अधिकतर चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी होते हैं।

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अंतिम शब्द

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