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जब भी आप Indian Polity विषय को पढ़ेंगे तो उसमें आपको मूल अधिकार के बारे में भी पढ़ने को मिलेगा और इस पोस्ट में भी हम आपको Indian polity m laxmikant book notes PDF – President ( राष्ट्रपति ) of India उपलब्ध करवा रहे हैं ताकि आप इस टॉपिक को यहीं से अच्छे से क्लियर कर सकें यह Indian polity notes for upsc आपको सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में काम आएंगे

 President ( राष्ट्रपति ) of India के ऐसे नोट्स आपको शायद और कहीं नहीं देखने को मिलेंगे हमने एक ही पीडीएफ में इस टॉपिक को कवर कर दिया है जिसे आप डाउनलोड भी कर सकते

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Indian polity m laxmikant book notes PDF – President ( राष्ट्रपति ) of India

  • राष्ट्रपति, भारत का पहला नागरिक होता है। राष्ट्रपति, भारतीय गणराज्य का सर्वोच्च पद है। संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति संघ का शासन चलाने वाला व्यक्ति है।
  • संघ की कार्यपालिकीय शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।

राष्ट्रपति पद के लिए योग्यताएँ

  • राष्ट्रपति पद के लिए योग्यताएँ-

(i) वह भारत का नागरिक हो।
(ii) वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
(iii) वह लोक सभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
(iv) वह किसी लाभ के पद पर न हो।

राष्ट्रपति के निर्वाचन का तरीका

  • राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के द्वारा परोक्ष निर्वाचन द्वारा होता है।
  • राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा संपन्न होता है। राष्ट्रपति के चुनावों में प्रत्येक सदस्य वरीयता के आधार पर मतदान करता है।
  • निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा राज्यों के विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं|(70वें संविधान संशोधन, 1992 के तहत केन्द्र शासित राज्य दिल्ली तथा पांडिचेरी की विधान सभाएँ राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लेती हैं।)

कार्यकाल

  • राष्ट्रपति पद ग्रहण करने की तिथि से 5 वर्ष तक अपने पद पर रहता है।

त्यागपत्र

  • वह अपने कार्यकाल की समाप्ति से पूर्व उपराष्ट्रपति को संबोधित त्यागपत्र द्वारा पद छोड़ सकता है।

पदमुक्ति

  • संविधान के उल्लंघन के आधार पर राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाकर उसे पद से हटाया जा सकता है। महाभियोग, संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। महाभियोग हेतु अभियोग चलाने वाले सदन की समस्त संख्या के 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षर होने आवश्यक हैं।
  • अभियोग चलाने के 14 दिन बाद अभियोग चलाने वाले सदन में उस पर विचार किया जाएगा, यदि अभियोग का प्रस्ताव सदन की कुल सदस्य संख्या के 2/3 सदस्यों द्वारा स्वीकृत हो जाय, तो उसके उपरांत प्रस्ताव द्वितीय सदन को भेज दिया जाता है। दूसरा सदन, इन अभियोगों की या तो स्वयं जाँच करेगा या इस कार्य के लिए एक विशेष समिति नियुक्त करेगा। राष्ट्रपति स्वयं उपस्थित होकर या अपने प्रतिनिधि द्वारा अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकता है। यदि इस सदन में राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाए गए आरोप सिद्ध हो जाते हैं और सदन भी अपने कुल सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से महाभियोग के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है, तो प्रस्ताव स्वीकृत होने की तिथि से राष्ट्रपति पदमुक्त समझा जाएगा।

पद की शपथ

  • राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश अथवा उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलाता है।

कार्यवाहक राष्ट्रपति

  • परिस्थितिगत उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है|
  • राष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर अधिक से अधिक छ: (6) महीने के भीतर राष्ट्रपति का चुनाव हो जाना चाहिए।

वेतन

  • वर्तमान समय में राष्ट्रपति का वेतन 5 लाख रुपये मासिक निर्धारित किया गया है।

राष्ट्रपति को प्राप्त विशेषाधिकार-

  • राष्ट्रपति को विधि के समक्ष समानता से छूट दी गयी है।
  • राष्ट्रपति, अपनी शक्तियों और कार्यालय के कर्त्तव्यों का निष्पादन करते रहने के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होंगे।
  • राष्ट्रपति को अपने पद के दौरान किसी भी न्यायपालिका के दौरान हिरासत में रखने अथवा जेल में रखने का आदेश नहीं दिया जाएगा।

राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित विवाद-

  • राष्ट्रपति का निर्वाचन चुनाव आयोग द्वारा संपन्न कराया जाता है तथा इससे संबंधित सभी विवाद केवल सर्वोच्च न्यायालय के अधीन हैं।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ


कार्यपालिका की शक्तियाँ

  • संविधान के अनुच्छेद-53 के अनुसार संघीय कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है। इसके कारण राष्ट्रपति संघीय कार्यपालिका का प्रमुख होता है।
  • अनुच्छेद-77 के अनुसार संघ सरकार का समस्त प्रशासन कार्य राष्ट्रपति के नाम से होता है। अनुच्छेद-78 के अनुसार राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री से प्रशासन के सन्दर्भ में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
  • नियुक्त करने की शक्तियाँ- वह प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है और प्रधानमंत्री की मंत्रणा के अनुसार अन्य मंत्रियों, उच्चतम और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, महान्यायवादी, नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक, अल्पसंख्यक आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली और पांडिचेरी के मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • पदच्युत करने की शक्तियाँ- वह उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों, संघ तथा राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को भी कुछ अवस्थाओं में एक निश्चित प्रक्रिया द्वारा पदच्युत कर सकता है।

विधायी शक्तियाँ

  • अनुच्छेद-80(3) के अनुसार राष्ट्रपति राज्य सभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करता है, जिनका संबंध साहित्य, कला, विज्ञान, समाजसेवा जैसे विषयों में विशेष ज्ञान से है।
  • अनुच्छेद-85 के अनुसार- राष्ट्रपति संसद के सत्र आहूत करता है, वह किसी सदन का सत्रावसान कर सकता है तथा लोकसभा को विघटित करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित है।
  • सदन में अभिभाषण- अनुच्छेद-86 के अनुसार राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों में या एक सदन में अभिभाषण कर सकता है।
  • अनुच्छेद-108 के अनुसार साधारण विधेयक पर संसद के दोनों सदनों में 6 माह से अधिक का गतिरोध होने की स्थिति में संयुक्त बैठक आहूत कराता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।संयुक्त बैठक-

अध्यादेश जारी करने की शक्ति

  • अनुच्छेद-123 के अनुसार राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है। अध्यादेश की अधिकतम अवधि 6 माह तथा सदन की पुनर्बैठक के बाद 6 सप्ताह तक बनी रहती है। राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश को किसी भी समय वापिस लिया जा सकता है। अध्यादेश का प्रभाव वैसा ही होता है जैसा कि संसद के किसी अधिनियम का होता है। 38वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 के माध्यम से अध्यादेश को न्यायिक समीक्षा से बाहर कर दिया गया है परन्तु 44वें संविधान संशोधन अधिनियम,1978 के माध्यम से इसे फिर से न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत कर दिया गया है।

न्यायिक शक्तियाँ
क्षमादान की शक्ति– संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत राष्ट्रपति को क्षमादान तथा कुछ मामलों में दण्डादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण की शक्ति प्रदान की गई है। अनुच्छेद-72 में उल्लेखित कुछ शब्दों का विशेष अभिप्राय है, जो निम्निखित है-
क्षमा- क्षमादान केवल दण्ड को समाप्त नहीं करता अपितु दण्डित व्यक्ति को उस स्थिति में ला देता है जैसे कि उसने अपराध किया ही न हो अर्थात् वह निर्दोष हो जाता है।
लघुकरण- एक प्रकार के दण्ड के स्थान पर दूसरा हल्का दण्ड देना, जैसे कठोर कारावास को साधारण कारावास में बदलना।
परिहार- दण्डादेश की मात्रा को उसकी प्रकृति में परिवर्तन किए बिना कम करना, जैसे 1 वर्ष के कारावास को घटाकर 6 माह कर देना।
विराम- दण्ड पाए हुए व्यक्ति की विशिष्ट अवस्था के कारण उसके दण्ड की कठोरता को कम करना। जैसे मृत्युदण्ड के स्थान पर आजीवन कारावास देना।
निलम्बन- दण्डादेश के निष्पादन को रोक दिया जाना। दूसरे शब्दों में मृत्यु दण्ड का अस्थायी निलम्बन करना।

  • note- राष्ट्रपति क्षमादान शक्ति का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सलाह पर करता है। राष्ट्रपति की यह शक्ति न्यायिक पुनरावलोकन के अधीन है।

वित्तीय शक्तियाँ

  • राष्ट्रपति वार्षिक वित्तीय विवरण संसद के समक्ष रखता है।
  • अनुच्छेद-280 के अंतर्गत राज्य व केंद्र के मध्य राजस्व बँटवारे के लिए वित्त आयोग का गठन करता है।

उच्चतम न्यायालय से परामर्श की शक्तियाँ –

  • अनुच्छेद-143 के अनुसार राष्ट्रपति को दो श्रेणियों के मामले में उच्चतम न्यायालय से परामर्श लेने की शक्ति प्रदान की गई है।
  • यदि राष्ट्रपति को यह प्रतीत होता है कि

1. विधि या तथ्यों का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ या होने की सम्भावना है,
2. ऐसी प्रकृति का और ऐसे सार्वजनिक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय लेना आवश्यक है तो वह उस प्रश्न को विचारार्थ भेज सकता है।

  • दूसरी श्रेणी में संविधान के प्रारम्भ में पहले अर्थात् 26 जनवरी, 1950 से पूर्व की गई सन्धियाँ, करारों, समझौतों आदि किसी विषयों से संबंधित विवाद आते हैं।             

वीटो शक्ति

  • अनुच्छेद-111 के अनुसार कोई विधेयक पारित किये जाने पर राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए भेजा जाता है, संसद द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति प्रदान करने संबंधी शक्ति को ही राष्ट्रपति की वीटो शक्ति कहा जाता है। यह राष्ट्रपति की विधायी शक्ति का अंग है।
  • संसद द्वारा पारित किसी विधेयक पर अनुमति रोकता है अथवा उसे संसद के दोनों सदनों या विधानमंडलों को पुनर्विचार के लिए लौटाता है तो उसे वीटो कहा जाता है।
  • 24वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 के माध्यम से राष्ट्रपति को संविधान संशोधन विधेयक पर सहमति देने के लिए बाध्य कर दिया गया।

राष्ट्रपति की आपातकालिन शक्तियाँ

  • संविधान के भाग-18 में राष्ट्रपति को संकटकालीन अधिकार प्रदान किये गये हैं। जो निम्न हैं-             

अनुच्छेद-352

  • यह एक राष्ट्रीय आपात है जिसका प्रयोग राष्ट्रपति युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के दौरान करता है। राष्ट्रीय आपात की उद् घोषणा के लिए राष्ट्रपति को मंत्रिमण्डल की लिखित सहमति आवश्यक है व इसको एक माह के भीतर संसद द्वारा अनुमोदन किया जाना आवश्यक है।
  • अब तक भारत में अनुच्छेद-352 का प्रयोग 3 बार किया गया है। राष्ट्रीय आपात का पहली बार प्रयोग 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान, दूसरी बार प्रयोग 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, तीसरी और अंतिम बार प्रयोग 1975 में किया था।
  •  44वें संशोधन अधिनियम द्वारा 1978 में आंतरिक अशांति के स्थान पर अनुच्छेद-352 में सशस्त्र विद्रोह नामक शब्द प्रतिस्थापित किया गया था।              

अनुच्छेद-356

  • यह एक राज्यीय आपात जिसे राष्ट्रपति शासन भी कहा जाता है। इसका प्रयोग किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के बाद किया जाता है।
  • इसका प्रयोग राष्ट्रपति सम्बन्धित राज्य के राज्यपाल के प्रतिवेदन के बाद करता है। ऐसी उद् घोषणा की स्वीकृति संसद से दो माह के भीतर लेना आवश्यक है। इसका अधिकतम प्रयोग 3 वर्ष की अवधि तक किया जा सकता है।

अनुच्छेद-360

  • यह एक वित्तीय आपात जिसका प्रयोग आर्थिक संकट के दौरान किया जाता है।
  • इसका अभी तक भारत में प्रयोग नहीं हुआ है।

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