Rajasthan Gk Notes in Hindi आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए राजस्थान के एक महत्वपूर्ण टॉपिक के क्लास नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं राजस्थान की प्रमुख लोकदेवियाँ ( 2 ) | Rajasthan General Knowledge Best Notes अगर आप राजस्थान कि किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो राजस्थान की लोक देविया के बारे में आपको जरूर पढ़ने को मिलेगा उसी से संबंधित आज की यह पोस्ट है जिसमें आपको कंप्लीट शॉर्ट नोट्स पढ़ने को मिलेंगे जिससे यह टॉपिक आपको अच्छे से क्लियर हो जाएगा ऐसे नोट्स शायद ही आपको कहीं अन्य प्लेटफार्म पर देखने को मिलेंगे
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राजस्थान की प्रमुख लोकदेवियाँ ( 2 ) | Rajasthan General Knowledge Best Notes
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शीला देवी
- – मन्दिर – आमेर (जयपुर)
- – आराध्य देवी – कच्छवाहा वंश
- – अष्टभुजी काले पत्थर की मूर्ति 16 वीं सदी में मिर्जाराजा मानसिंह-प्रथम ने पूर्वी बंगाल (जैस्सोर) के राजा केदार से युद्ध में जीतकर लाए।
कैवाय माता
- – स्थान- किणसरिया गाँव, नागौर।
- – किणसरिया गाँव का पुराना नाम सिणहाड़िया था।
- – कुल देवी – दहिया राजपूत
- – कैवायमाता मन्दिर के सभामण्डप की बाहरी दीवार पर विक्रम संवत् 1056 (999 ई.) का एक शिलालेख उत्कीर्ण है जिससे ज्ञात होता है कि इस मंदिर का निर्माण सांभर के चौहान शासक दुर्लभराज के सामंत चच्चदेव ने करवाया।
जमुवाय माता
- – स्थान – जयपुर
- – पौराणिक नाम – जामवंती
- – कच्छवाह शासक दूलहराय (तेजकरण) ने देवी माँ के आशीर्वाद से शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और विजय प्राप्ति के बाद जमुवाय माता मन्दिर बनाया।
- आवड़ माता या स्वांगिया माता
- – स्वांगिया का अर्थ – मुड़ा हुआ भाला
- – प्रमुख मंदिर – तेमड़ा भाखर, जैसलमेर
- – कुलदेवी – जैसलमेर के भाटी वंश
- – इनका प्रमुख स्थान तेमड़ा भाखर पर स्थित होने के कारण इन्हें ‘तेमड़ाताई’ भी कहते हैं।
- – जैसलमेर के भाटी राजवंश के राज्य चिह्न में सबसे ऊपर पालम चिड़िया (शगुन) तथा स्वांग (भाला) को मुड़ा हुआ देवी के हाथ में दिखाया गया है।
- – सुगनचिड़ी को आवड़ माता का स्वरूप माना जाता है।
- – इनके सात देवियों के सम्मिलित प्रतिमा स्वरूप को ‘ठाला’ कहा जाता है।
- महोदरा माता या आशापुरी माता
- – स्थान – जालोर
- – कुलदेवी – सोनगरा चौहान
- – चारण कुल में उत्पन्न बरबड़ी देवी का नाम भी आशापुरी है।
- – आराध्य देवी – बिस्सा जाति
राणी सती
- – स्थान – झुन्झुनूँ
- – उपनाम – दादीजी
- – वास्तविक नाम – नारायणी बाई
- – पति का नाम – तनधन दास
- – अपने पति की मृत्यु के पश्चात् ये अपनी पति की चिता के साथ सती हो गई।
- – मेला – भाद्रपद कृष्ण अमावस्या
- शाकम्भरी या सकराय माता
- – प्रमुख स्थान – मलयकेतु पर्वत, उदयपुरवाटी (झुंझुनूँ)
- – कुलदेवी – खण्डेलवालों की।
- – अन्य मन्दिर – सांभर (जयपुर) तथा सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)
- – महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा स्थापित।
- – अकाल पीड़ित लोगों को बचाने के लिए उन्होंने फल, सब्जियाँ, कन्दमूल उत्पन्न किए थे, इसी कारण यह देवी शाकम्भरी कहलाई।
- सच्चियाय या सच्चिका माता
- – स्थान – ओसियां (जोधपुर)
- – कुलदेवी – ओसवालों की
- – निर्माण – आठवीं सदी में परमार राजकुमार उपलदेव
- – इस मन्दिर में काले प्रस्तर की महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा स्थापित है।
पथवारी माता
- – लोकदेवी के रूप में इनकी पूजा तीर्थयात्रा की सफलता की कामना हेतु की जाती है।
- – पथवारी माता, गाँव के बाहर स्थापित की जाती है।
- – इनके चित्रों में नीचे काला-गौरा भैरु तथा ऊपर कावड़िया वीर एवं गंगोज का कलश बनाया जाता है।
ब्राह्मणी माता
- – प्रमुख स्थान – सोरसन गाँव (बाराँ)
- – मेला – माघ शुक्ल सप्तमी
- – यह एकमात्र देवी जिसकी पीठ की पूजा होती है।
हर्षद माता
- – प्रमुख मंदिर – आभानेरी, दौसा
- – यह मंदिर मूल रूप से भगवान विष्णु का मंदिर था।
- – 8वीं व 9वीं सदी में गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा निर्माण करवाया गया था।
- – इस मंदिर के गर्भगृह में देवी हर्षद माता की प्रतिमा प्रतिष्ठित होने के कारण इसका नामकरण हर्षद माता मंदिर किया गया परन्तु मूलत: यह मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है।
- – इस मंदिर की प्रमुख ताकों (आलों) में वासुदेव विष्णु प्रद्युम्न और बलराम की प्रतिमाओं के प्रतिष्ठित होने से इसका मूलत: विष्णु मंदिर होना संभावित है।
- त्रिपुरासुंदरी माता (तरतई माता)
- – प्रमुख स्थान – तलवाड़ा, बाँसवाड़ा
- – कुलदेवी – पांचाल जाति
- – तरतई शब्द त्रितयी का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है- त्रित्व (तीन) से युक्त है।
- – शंकराचार्य के प्रयत्नों से भारतवर्ष में शक्ति उपासना की जो लहर उठी, उसी के परिणामस्वरूप देश में शक्ति पूजा का महत्त्व बढ़ा।
- – इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप देने का कार्य वर्ष 1977 में प्रारम्भ किया गया। इससे पूर्व यह देवी तीर्थ उमराई गाँव के पास बीहड़ वन्य प्रदेश में झोपड़ीनुमा मंदिर के रूप में अवस्थित था।
- – इस मंदिर में माता की काले पत्थर की अष्टादश भुजा वाली भव्य प्रतिमा प्रतिष्ठित है।
- – शाक्त ग्रंथों में श्री महात्रिपुरसुन्दरी को जगत का बीज और परम शिव का दर्पण कहा गया है।
- – कालिका पुराण के अनुसार त्रिपुरा शिव की भार्या होने के कारण इन्हें त्रिपुरा कहा गया।
नारायणी माता
- – प्रमुख स्थान – राजगढ़ तहसील (अलवर)
- – कुलदेवी – नाई जाति
- – इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में गुर्जर प्रतिहार शैली में करवाया गया था।
आशापुरी माता
- – प्रमुख स्थान – नाडोल (पाली) तथा मोदरा (जालोर)
- – कुलदेवी – सोनगरा चौहानों व बिस्सा ब्राह्मणों की।
लटियाल माता
- – प्रमुख स्थान – फलोदी, जोधपुर
- – कुलदेवी – कल्ला ब्राह्मण
- – उपनाम – खेजड़ बेरी राय भवानी
घेवर माता
- – प्रमुख मंदिर – राजसमंद झील, रामसमंद
- – घेवर माता द्वारा राजसमंद झील की नींव रखी गई है।
सुंधा माता
- – प्रमुख मंदिर – जसवंतपुरा की पहाड़ियाँ, जालोर
- – यहाँ पर भालू संरक्षण के लिए सुंधा माता अभयारण्य स्थित है।
- – यहाँ पर राजस्थान का ‘प्रथम रोप वे’ स्थापित किया गया है।
अम्बिका माता
- – प्रमुख मंदिर – जगत, उदयपुर
- – जगत (उदयपुर) में इनके मंदिर का निर्माण 10वीं सदी में राजा अल्लट ने महामारु शैली में करवाया।
- – इस मंदिर को ‘मेवाड़ का खजुराहो’ कहते हैं।
Note
- – खजुराहो के मंदिर चन्देल वंश के राजाओं द्वारा मध्यप्रदेश में बनवाए गए थे।
- – राजस्थान के खजुराहो किराडू के सोमेश्वर मंदिर, बाड़मेर में स्थित है।
- – हाड़ौती के खजुराहो भण्डदेवरा मंदिर, अटरू, बाराँ में स्थित है।
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अंतिम शब्द :
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