राजस्थान से संबंधित अगर आप किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो राजस्थान का इतिहास में आपको Rajasthan History Notes in Hindi : Aahad Sabhyta जरूर पढ़ने को मिलेंगी और इस पोस्ट में हम आपको राजस्थान का इतिहास ( प्राचीन सभ्यताएं ) : आहड़ सभ्यता के बारे में संपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाने वाले हैं
आहड़ सभ्यता | Rajasthan ki Sabhytaye : Aahad Sabhyta से संबंधित शार्ट नोट्स आपको यहां पढ़ने को मिलेंगे जिसे आप आपकी आगामी परीक्षा के लिए राजस्थान की प्राचीन सभ्यताओं के इस टॉपिक को अच्छे से पढ़ सकते हैं एवं इन से बनने वाली सभी महत्वपूर्ण प्रश्नों के बारे में जान सकते हैं
राजस्थान का इतिहास ( प्राचीन सभ्यताएं ) : आहड़ सभ्यता
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● स्थित – आयड़ या बेड़च नदी के किनारे
● जिला – उदयपुर
– समय – लगभग 4 हजार वर्ष प्राचीन।
– डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने आहड़ सभ्यता का समृद्ध काल 1900 ई. पू. से 1200 ई.पू. तक माना है।
● उपनाम – 1. आघाटपुर या आघट दुर्ग (दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में)
2. ताम्रवती नगरी
3. बनास घाटी सभ्यता
4. धूलकोट
● उत्खनन – 1. सर्वप्रथम वर्ष 1953 में अक्षयकीर्ति व्यास
2. आर. सी. अग्रवाल द्वारा वर्ष 1953-56 में
3. वर्ष 1961-62 में एच. डी. सांकलिया एवं वी. एन. मिश्रा
– डॉ. सांकलिया ने इसे ‘ताम्रकाल’ की संज्ञा दी है।
● बस्ती – उत्खनन से बस्तियों के 8 स्तर मिले
1. प्रथम स्तर – मिट्टी की दीवारें, मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े तथा पत्थर के ढेर प्राप्त।
2. द्वितीय स्तर – कूटकर तैयार की गई दीवारें और मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े मिले।
3. तृतीय स्तर – कुछ चित्रित बर्तन और उनका घरों में प्रयोग होना प्रमाणित।
4. चतुर्थ स्तर – एक बर्तन से दो ताँबे की कुल्हाड़ियाँ मिलीं।
– यह एक ग्रामीण सभ्यता थी।
● आवास – मकान पत्थरों की नींव डालकर जबकि दीवारें मिट्टी से बनी ईंटों की होती थीं।
– छतों पर बाँस बिछाकर मिट्टी का लेप किया जाता था।
– मकानों का फर्श काली मिट्टी के साथ नदी की बालू मिलाकर बनाया जाता था।
– मकानों से गंदा पानी निकालने की नालियों का भी प्रमाण।
– एक मकान में 4 से 6 बड़े चूल्हों का होना संयुक्त परिवार की व्यवस्था का प्रमाण है।
● मृद्भांड – लाल, भूरी व काली मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग।
– घरेलू बर्तन – घड़े, कटोरियाँ, रकाबियाँ, प्याले, मटके, कुंडे, भंडार के कलश आदि प्राप्त।
– पशुपालन अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था और कृषि से परिचित थे।
– ‘गोरे’ या ‘कोठे’ – अनाज रखने के मृद्भाण्डों का स्थानीय नाम।
● मुद्राएँ एवं मुहरें – तृतीय ईसा पूर्व से प्रथम ईसा पूर्व की यूनानी ताँबे की 6 मुद्राएँ व 3 मुहरें प्राप्त।
– एक मुद्रा पर एक ओर त्रिशूल तथा दूसरी ओर अपोलोदेवता अंकित हैं जो तीर एवं तरकस से युक्त हैं।
● उद्योग – पत्थरों की उपलब्धता से अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ पत्थरों के शस्त्र बनाने का बहुत बड़ा केंद्र रहा होगा।
– मध्य पाषाण कालीन उपकरण के तुल्य ‘रामसैकाश्म व स्फटिक’ उपकरण प्राप्त।
● प्रमुख व्यवसाय – ताँबा गलाना तथा उससे उपकरण बनाना।
– उत्खनन से प्राप्त ठप्पों से रंगाई-छपाई व्यवसाय के उन्नत होने का अनुमान।
– तौल के बाट व माप प्राप्त।
– ताँबे की 6 कुल्हाड़ियाँ, अंगूठियाँ, चूड़ियाँ मिली हैं।
– 79 लोहे के उपकरण भी मिले हैं।
– मूल्यवान पत्थरों जैसे गोमेद, स्फटिक आदि का प्रयोग आभूषण तथा ताबीज के रूप में किया जाता था।
– शवों को गाड़ा जाता था।
– खुदाई में पूजा-पात्र भी प्राप्त हुए हैं।
– टेराकोटा वृषभ आकृतियाँ मिलीं जिन्हें ‘बनासियन बुल’ कहा गया है।
– आहड़ से नारी की खण्डित मृण्मूर्ति मिली है जो कमर के नीचे लहँगा धारण किए हुए है।
– आहड़ से मृण्मूर्तियों में क्रिस्टल, फेन्यास, जैस्पर, सेलखड़ी तथा लेपीस लाजूली जैसे कीमती उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
– गिलूण्ड (राजसमन्द) से आहड़ के समान-धर्म संस्कृति मिली है।
– आहड़ सभ्यता के लोग मिट्टी के बर्तन पकाने की उल्टी तपाई विधि से परिचित थे।
अंतिम शब्द :
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राजस्थान का इतिहास से संबंधित राजस्थान का इतिहास ( प्राचीन सभ्यताएं ) : आहड़ सभ्यता को हमें ऊपर आसान एवं सरल भाषा में उपलब्ध करवा दिया है आप इसे परीक्षा की दृष्टि से एक बार इसे जरूर पढ़ ले