भारत में गरीबी और बेरोजगारी अगर आप सिविल सर्विस परीक्षा या स्टेट पीसीएस की तैयारी करते हैं तो आज हम आपके लिए गरीबी एवं बेरोजगारी से संबंधित महत्वपूर्ण पॉइंट लेकर आए हैं जिन्हें पढ़ना आपके लिए अत्यंत आवश्यक है poverty and unemployment in India : गरीबी और बेरोजगारी सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए यह टॉपिक बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि अधिकांश बार भारत में गरीबी एवं बेरोजगारी पर निबंध भी पेपर में लिखवाया जाता है इसके लिए आपको संपूर्ण जानकारी आज के इस टॉपिक में विस्तार पूर्वक मिलेगी
भारत में बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी के कारण सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थी ( UPSC, STATE PCS, RPSC, BPSC, SSC, NDA ) एवं अगर आप अन्य किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी कर रहे हैं तो भारत में गरीबी एवं बेरोजगारी से संबंधित महत्वपूर्ण पॉइंट्स आपको पढ़ने चाहिए जिससे आपको देश की आर्थिक स्थिति के बारे में कुछ जानकारी मिल सके
poverty and unemployment in India : गरीबी और बेरोजगारी
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गरीबी और बेरोजगारी क्या है ? परिभाषा
गरीबी :
- जीवन की वह अवस्था जिसमें व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम नहीं होता है अर्थात् मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाता है तो वह अवस्था गरीबी कहलाती है।
- प्रोफेसर अमर्त्य सेन के अनुसार गरीबी क्षमताओं का अभाव हैं।
- नीति आयोग अनुसार जीवित रहने, स्वस्थ्य रहने एवं दक्षता के लिए आवश्यकताओं को पूर्ण करने का अभाव ही गरीबी है।
गरीबी मापन हेतु विभिन्न संगठन
- नीति आयोग ने न्यूनतम दैनिक कैलोरी उपभोग को आधार माना
- कैलोरी उपभोग आधार पर
- ग्रामीण क्षेत्र में – 2400 कैलोरी प्रतिदिन
- शहरी क्षेत्र में – 2100 कैलोरी प्रतिदिन
N.S.S.O.
- 23 मई, 2019 को NSSO को NSO (National Statistical Organization) में परिवर्तन कर दिया गया।
- इसका आधार – परिवार उपभोग खर्च तथा प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन उपभोग खर्च रखा है।
अब तक की गई समितियाँ:
- रथ तथा दाण्डेकर आयोग – 1971 – रिपोर्ट -1973
- Y.K. अलघ समिति – 1977 – रिपोर्ट 1979 में
- डी.डी. . लकड़ावाला आयोग – 1989–रिपोर्ट–1993 में
- सुरेश तेन्दुलकर समिति 2004-05-रिपोर्ट-2009 में
- सुरेश तेंदुलकर समिति (2004 – 05) ने नए मापक किये जिसके अनुसार गरीबी गणना का आधार MRP को माना गया है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में – प्रतिदिन 27 रु. प्रतिमाह 816 रु.
- शहरी क्षेत्रों में – प्रतिदिन 33 रु. प्रतिमाह -1000 रु.
(इस मानक के अनुसार गरीबी लेखा वाली आबादी में 22 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। यह काफी विवादस्पद रहा क्योंकि संख्यों को वास्तविकता से परे माना गया) - वर्ष 2011-12 के अनुसार
भारत में गरीबी –21.9%
- सी. रंगराजन समिति – 2012 रिपोर्ट – 2014 में
- इन्होंनें गरीबी गणना का आधार MMRP (संशोधित मिश्रित संदर्भ अवधि)को माना
कैलोरी आधार :
- ग्रामीण – 2155 कैलोरी
- शहरी – 2090 कैलोरी
खर्च आधार :
- ग्रामीण – प्रतिदिन 32 रु. एवं प्रतिमाह 972 रु.
- शहरी – प्रतिदिन 47 रु. एवं प्रतिमाह 1407 रु.
- भारत में गरीबी –29.5%
- सक्सेना समिति (2009) व हासिम समिति – (2013)
- ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 2009 में सक्सेना समिति की स्थापना की।
- उसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में BPL जनगणना के संचालन के लिए कार्य प्रणाली की समीक्षा करना।
- हसिम समिति केवल शहरी गरीबी की गणना करने के लिए 2013 में इसकी स्थापना की गई। यह शहरी क्षेत्रों में BPL परिवारों के आकलन के लिए कार्य प्रणाली का अध्ययन करेगी।
- केवल शहरी गरीबी की गणना करने के लिए।
- अरविन्द पनगड़िया आयोग– 2015:
- नीति आयोग के उपाध्यक्ष की नियुक्ति भारत के प्रधानमंत्री करते हैं। 2015 में अरविन्द पनगड़िया को उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था,जिन्होंने अगस्त, 2017 तक इसके उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
गरीबी रेखा:
- नीति आयोग हर वर्ष के लिए समय-समय पर गरीबी रेखा और गरीबी अनुपात का सर्वेक्षण करता है।
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के अंतर्गत राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण बड़े पैमाने पर घरेलू उपभोक्ता व्यय के सेम्पल सर्वे लेकर कार्यान्वित करता है।
- गरीबी रेखा द्वारा प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय को दर्शाया जाता है।
- गरीबी रेखा के आंकलन का पुराना फॉर्मूला वांछित कैलोरी आवश्यकता पर आधारित है।
- कैलोरी की जरूरत उम्र लिंग और कार्य पर निर्भर करती है जो एक व्यक्ति करता है।
- ग्रामीण क्षेत्र में 2400 व शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी।
- चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग स्वयं को ज्यादा शारीरिक कार्यों में व्यस्थ रखते हैं। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में कैलोरी की आवश्यकताओं और शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक रखा गया है।
- BPL जनसंख्या में भारतीय राज्यों की स्थिति NSSO वर्ष 2011-12
गरीबी रेखा क्या है एवं गरीबी रेखा के प्रकार
गरीबी के प्रकार (Type of Poverty)
समय के आधार पर
- दीर्घकालिक-सदैव गरीब और सामान्य गरीब
- अल्पकालिक –चक्रीय गरीब और अनियमित गरीब
- गैरनिर्धन-जो कभी गरीब न हो
गणना प्रक्रिया के आधार पर सापेक्ष गरीबी
- जब अर्थव्यवस्था में एक निश्चित जीवन स्तर को प्राप्त कर लिया जाता है तो उस जीवन स्तर को आधार मानकर तुलनात्मक रूप से प्राप्त होने वाली गरीबी सापेक्ष गरीबी कहलाती है।
- सापेक्ष गरीबी की गणना लॉरेन्ज वक्र तथा गिन्नी गुणांक के माध्यम से की जाती है।
निरपेक्ष गरीबी
- संसाधनों की कम उपलब्धता की स्थिति में मूल भूत आवश्यकता की पूर्ति होने या ना होने के आधार पर की गई गरीबी की गणना निरपेक्ष गरीबी कहलाती है अर्थात् गणना स्वतंत्र आधार पर की जाती है
- गणना – Head Count Method के आधार पर प्रतिव्यक्ति गणना की जाती है
- वर्ष 2015 में नीति आयोग द्वारा गरीबी गणना का आधार – निरपेक्ष गरीबी को स्वीकार किया गया
गरीबी के कारण :
(i) सामाजिक कारण
- सामाजिक रीतिरिवाज व परम्पराएँ
- सामाजिक अन्धविश्वास व कुप्रथाएँ
- सामाजिक – बहिष्कार
- सामाजिक ऋणग्रस्तता
(ii) आर्थिक कारण
- उत्पादन का निम्न स्तर
- अर्थव्यवस्था में व्याप्त मुद्रास्फीति
- शिक्षा व स्वास्थ्य का निम्न स्तर
जनसंख्या वृद्धि
- आधारभूत अवसंरचना का अभाव
- वित्तीय संगठनों की कमजोर स्थिति
- सरकारी योजनाओं का पूर्ण क्रियान्वयन नही होना
- आय हेतु कृषि पर निर्भरता तथा कृषि की निम्न उत्पादकता
- अर्थव्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार व लालफीता शाही
लॉरेंज वक्र (Lorenz curve)
- इस वक्र को वर्ष 1905 में मैक्स ओ लॉरेंज ने विकसित किया था।
- लॉरेन्ज द्वारा जनसंख्या तथा आय वितरण के मध्य असमान सम्बन्ध प्रस्तुत किया गया है।
- इस वर्ग का प्रत्येक बिन्दु उन व्यक्तियों को प्रदर्शित करता है जो एक निश्चित आय के प्रतिशत के नीचे होते हैं।
- इसे पूर्ण समता रेखा या निरपेक्ष समता रेखा भी कहते हैं।
- लॉरेंज वक्र का गणितीय प्रदर्शन गिनी-गुणांक कहलाता है।
गरीबी मापन का प्रमुख आधार
- 0-1 तक विचलन होता है
- 0 पर पूर्ण समानता तथा 1 पर पूर्ण असमानता
गिन्नी गुणांक = लॉरेंज वक्र द्वारा प्रदर्शित आर्थिक विषमता के गणितीय मान को गिन्नी गुणांक कहा जाता है।
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Admin : Mission Upsc & Education
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अंतिम शब्द :
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