Indian history ( भारतीय इतिहास ) notes pdf – सामाजिक और धार्मिक आंदोलन

Indian history ( भारतीय इतिहास ) notes pdf - सामाजिक और धार्मिक आंदोलन
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Indian history ( भारतीय इतिहास ) notes pdf – सामाजिक और धार्मिक आंदोलन

– प्रारंभ से ही भारतीय समाज और संस्कृति परिवर्तन और निरंतरता की प्रक्रिया से गुज़रती रही है। (19वीं शताब्दी के दौरान भारत सामाजिक-धार्मिक सुधारों और सांस्कृतिक पुनरुद्धार के एक और चरण से गुज़रा। इस समय तक भारतीय यूरोपियों और उनके माध्यम से उनकी संस्कृति के संपर्क में आ चुके थे।

– भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा के प्रवेश ने भी पश्चिमी विज्ञान, दर्शन, साहित्य और चिंतन से भारतीयों का परिचय कराया। इसने उन बंधनों को तोड़ दिया जिन्होंने पश्चिमी दुनिया के दरवाज़े भारत के लिए बंद किए हुए थे।

– ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों, विशेष रूप से शिक्षा और धर्म प्रचार ने भी ईसाई धर्म के आंतरिक सिद्धांतों की ओर बहुत से भारतीयों को आकर्षित किया। इससे भारतीय लोगों का जीवन और चिंतन धीरे-धीरे पश्चिमी संस्कृति और विचारों से प्रभावित हुआ। इसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव प्रचलित भारतीय परंपराओं, विश्वासों और रिवाजों में देखा जा सकता है।

– भारतीय इतिहास में 19वीं शताब्दी महान मानसिक चिंतन का युग माना जाता है। इसने अनेक सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों को जन्म दिया, जिन्होंने नए भारत के उदय को संभव बनाया।

संस्थासंस्थापकस्थापना वर्ष स्थान
ब्रह्म समाजराजाराममोहन राय1828बंगाल
आत्मीय सभाराजा राम मोहन राय, ज्योतिबा फूले1814बंगाल
राम कृष्ण मठस्वामी विवेकानंद1897कोलकाता
हिंदू कॉलेजडेविड हेअर1817कोलकाता
प्रार्थना समाजमहादेव गोविंद रानाडे1867महाराष्ट्र
आर्य समाजस्वामी दयानंद सरस्वती1875मुम्बई
दयानंद एंग्लो वैदिक कालेजहंसराज एवं लाला लाजपत राय  
तत्वबोधिनी सभादेवेन्द्र नाथ टैगोर1843बंगाल
थियोसोफिकल सोसायटीमैडम ब्लाव ट्स्की1875अमेरिका
यंग बंगाल आंदोलनहेनरी विवियन डेरोजियो1826बंगाल
भारतीय महिला विश्वविद्यालयप्रा.डी. के. कर्वे1899पूना
वायकोम सत्याग्रहनारायण गुरू, एन. कुमारन. टी. के . माधवन1906केरल

राजा राममोहन राय

– राजा राम मोहन राय ही पहले भारतीय थे, जिन्होंने भारतीय समाज को मध्ययुगीन जकड़न से मुक्त कराने का प्रयास किया। 19वीं शताब्दी के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन के अग्रदूत राजा राममोहन राय थे। उनका जन्म 1772 ई. में बंगाल के हुगली जिले में एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

– उनका बालपन एक रूढ़िवादी वातावरण में बीता। लेकिन बचपन से ही उन्हें बहुत अच्छी शिक्षा मिली। उन्होंने पटना में फारसी और अरबी का अध्ययन किया। इससे उन्हें इस्लाम के दर्शन की जानकारी मिली। तत्पश्चात उन्होंने वाराणसी में संस्कृत का अध्ययन किया। इससे उन्हें हिंदू दर्शन का गहरा ज्ञान प्राप्त हुआ।

– अतृप्त ज्ञान की खोज उन्हें तिब्बत तक ले गई, जहाँ वे बौद्ध धर्म की तत्कालीन स्थिति से अवगत हुए। कलकत्ता वापस आने पर वे ईसाई मिशनरियों और पाश्चात्य विद्वानों के संपर्क में आए। थोड़े ही समय में वे अंग्रेज़ी भाषा से परिचित हो गए और उन्होंने लैटिन, ग्रीक और हिब्रू भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।

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अंतिम शब्द

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