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Ancient history notes pdf in hindi – दिल्ली सल्तनत
- दिल्ली से होने वाले तुर्कों के शासन को दिल्ली सल्तनत की संज्ञा दी गयी और 13-16वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत के इतिहास को साधारणतया इसी नाम से पुकारा जाता है।
- 1206 से 1290 तक उत्तरी भारत के कुछ भागों पर जिन तुर्कों शासकों ने शासन किया उन्हें फारसी इतिहासकारों ने मुइज्जी, कुत्वी, शम्सी तथा बल्बनी वर्गों में बांटा है।
- शम्सीउद्दीन इल्तुतमिश इल्बारी तुर्क था, जबकि कुतुबुद्दीन ऐबक इल्बारी तुर्क नहीं था।
- बलबल ने स्वयं को इल्बारी तुर्क कहा है।
- हबीबुल्लाह ने आरम्भिक तुर्क शासन को ‘मामूलक’ शासन कहा है।
कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210) :
- 1206 में तुर्की गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक, मुहम्मद गोरी का उत्तराधिकारी बना।
- उसने सुल्तान का पद धारण न कर ‘मलिक’ तथा ‘सिपहसालार’ के पद से शासन किया।
- उसका राज्याभिषेक लाहौर में हुआ।
- उसे भारत का प्रथम मुस्लिम शासक भी माना जाता है।
- अपनी उदारता तथा दानी स्वभाव के कारण वह लाखबख्श तथा ‘हातिम द्वितीय’ के नाम से भी जाना जाता है।
- उसके दरबार में अदब-उल हर्ष के लेखक फख-ए-मुदब्बिर तथा ताज-उस-मासिर के लेखक हसन निजामी रहते थे।
- ‘कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद’ तथा ‘अढाई दिन का झोपड़ा’ के निर्माण का श्रेय ऐबक को है।
- शेख ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुबमीनार का निर्माण कार्य इसी समय आरम्भ हुआ लेकिन इल्तुतमिश के समय पूरा हुआ।
- 1210 में ‘चौगान’ (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गई।
- ऐबक का मकबरा लाहौर में है।
आरामशाह (1210-1211) :
- ऐबक की मृत्यु के बाद आरामशाह शासक बना।
- इल्तुतमिश ने दिल्ली के समीप ‘जूद’ में आरामशाह को पराजित किया।
शम्सुद्दीन इल्तुतमिश :
- वह पहले बदायूं का अमीर था।
- पहला मकबरा निर्मित करने का श्रेय इल्तुतमिश को दिया जाता है।
- उसे तुर्कों द्वारा उत्तर भारत की विजयों का वास्तविक संगठनकर्ता माना जाता है।
- वह इल्बारी जनजाति का तुर्क था।
- तराईन के मैदान में इल्तुतमिश ने एल्दौज को पराजित किया।
- 1221 में मंगोल आक्रमणकारी चंगेज खां द्वारा मंगबरनी का पीछा करते हुए सिंध को जीतकर लाहौर तक पहुंच जाने पर इल्तुतमिश ने अपनी वास्तविक स्थिति का आकलन करते हुए मंगोल खतरे को टालने हेतु मंगबरनी को दिल्ली में शरण नहीं दी।
- उसने 1226 में रणथम्भौर, 1227 में मन्दौर, 1231 में ग्वालियर, 1234-35 में उज्जैन तथा भिलसा के शासकों को पराजित किया।
- ‘बनियान’ आक्रमण उसका अंतिम सैन्य अभियान था।
- उसने 40 दासों का एक नया विश्वसनीय दल गठित किया जो तुर्कान-ए- चिहालगानी के नाम से जाना जाता है।
- इक्तादारी, मुद्रा प्रणाली तथा सैन्य संगठन में उसने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उसने अरबी प्रथा के आधार पर मुद्रा प्रणाली चलायी।
- जीतल तथा टंका क्रमशः तांबे एवं चांदी के सिक्के थे।
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