अगर आप किसी भी परीक्षा की तैयारी करते हैं एवं आपके सिलेबस में हिंदी विषय है तो आज की इस पोस्ट में हम आपके लिए हिंदी ग्रामर का एक महत्वपूर्ण टॉपिक Hindi Grammer ( संधि ) Notes in Hindi | संधि के प्रकार एवं परिभाषा ( Part 2 ) के बारे में शॉर्ट नोट्स उपलब्ध करवा रहे हैं ताकि आप कम समय में अपनी तैयारी को अच्छे से कर सके इन नोट्स को पढ़कर आपको यह टॉपिक अच्छे से क्लियर हो जाएगा इसमें आपको संधि क्या है ? संधि की परिभाषा एवं उदाहरण सहित समझाया गया है |
Hindi Grammer Sandhi Notes in Hindi एक ऐसा विषय है जिसमें विद्यार्थी परीक्षा में बहुत अच्छा स्कोर प्राप्त कर सकता है इसलिए हिंदी ग्रामर के इस Hindi Grammer ( संधि ) Notes टॉपिक को अच्छे से क्लियर कर ले ताकि भविष्य में होने वाले एग्जाम में आप इससे संबंधित आने वाले प्रश्नों को अच्छे से कर सके
Hindi Grammer ( संधि ) Notes in Hindi | संधि के प्रकार एवं परिभाषा
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Hindi Grammer ( संधि ) Notes in Hindi
संधि के प्रकार
4. यण् स्वर संधि–
• इ/ई/उ/ऊ/ऋ + असमान स्वर = य्, व्, र्
यदि ‘इ/ई/उ/ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद कोई असमान स्वर आ जाए तो ‘इ/ई’ का ‘य्’, ‘उ/ऊ’ का ‘व्’ और ‘ऋ’ का ‘र्’ हो जाता है; जैसे–
• इ/ई + असमान स्वर = य्
अति + अंत = अत्यंत
परि + अवसान = पर्यवसान
ध्वनि + आलोक = ध्वन्यालोक
अति + आवश्यक = अत्यावश्यक
अति + उत्तम = अत्युत्तम
नारी + आदेश = नार्यादेश
प्रति + उत्पन्नमति = प्रत्युत्पन्नमति
प्रति + आघात = प्रत्याघात
परि + आवरण = पर्यावरण
अभि + अर्थी = अभ्यर्थी
स्त्री + उचित = स्त्र्युचित
नारी + आगमन = नार्यागमन
सुधि + उपास्य = सुध्युपास्य
नि + आय = न्याय
• उ/ऊ + असमान स्वर = व्
अनु + अय = अन्वय
मधु + अरि = मध्वरि
गुरु + औदार्य = गुर्वौदार्य
ऋतु + अन्त = ऋत्वन्त
मधु + आलय = मध्वालय
सु + अच्छ = स्वच्छ
वधू + आगमन = वध्वागमन
सु + आगत = स्वागत
अनु + एषण = अन्वेषण
सु + अस्ति + अयन = स्वस्त्ययन
साधु + आचरण = साध्वाचरण
गुरु + ऋण = गुर्वृण
• ऋ + असमान स्वर = र्
पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
मातृ + आदेश = मात्रादेश
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
मातृ + अनुमति = मात्रनुमति
5. अयादि स्वर संधि–
(एचोऽयवायाव्)
एच् + असमान स्वर
• ए/ऐ/ओ/औ + असमान स्वर = अय्, आय्, अव्, आव्
यदि ‘ए/ऐ/ओ/औ’ के बाद कोई असमान स्वर आ जाए तो ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’ और ‘औ’ का ‘आव्’ हो जाता है।
• ए + असमान स्वर = अय्
ने + अन = नयन
चे + अन = चयन
शे + अन = शयन
कवे + ए = कवये
हरे + ए = हरये
• ऐ + असमान स्वर = आय्
नै + अक = नायक
गै + इका = गायिका
शै + अक = शायक
दै + अक = दायक
विनै + अक = विनायक
विधै + अक = विधायक
• ओ + असमान स्वर = अव्
हो + अन = हवन
भो + अन = भवन
प्रसो + अ = प्रसव
श्रो + अन = श्रवण
पो + अन = पवन
• औ + असमान स्वर = आव्
पौ + अक = पावक
शौ + अक = शावक
धौ + अक = धावक
श्रौ + अन = श्रावण
प्रसौ + इका = प्रसाविका
• स्वर संधि के अपवाद–
(i) स्व + ईर = स्वैर
(ii) स्व + ईरिणी = स्वैरिणी
(iii) प्र + ऊढ़ = प्रौढ़
(iv) प्र + ऊह = प्रौह
(v) अक्ष + ऊहिनी = अक्षौहिणी
(vi) दन्त + ओष्ठ = दन्तोष्ठ
(vii) अधर + ओष्ठ = अधरोष्ठ
(viii) सुख + ऋत = सुखार्त
(ix) दश + ऋण = दशार्ण
• स्वर संधि के अन्य अपवाद–
1. ह्रस्वीकरण के अनुसार–
(i) अप + अंग = अपंग
(ii) सार + अंग = सारंग
(iii) मार्त + अण्ड = मार्तण्ड
(iv) कुल + अटा = कुलटा
(v) सीम + अंत = सीमंत
2. दीर्घीकरण के अनुसार–
(i) उत्तर + खण्ड = उत्तराखण्ड
(ii) मार + मारी = मारामारी
(iii) काय + कल्प = कायाकल्प
(iv) मूसल + धार = मूसलाधार
(v) धड़ + धड़ = धड़ाधड़
(vi) दीन + नाथ = दीनानाथ
(vii) विश्व + मित्र = विश्वामित्र
(viii) प्रति + कार = प्रतीकार
(ix) प्रति + हार = प्रतीहार
(x) प्रति + हारी = प्रतीहारी
3. गुणादेश के अनुसार–
प्र + एषण = प्रेषण
प्र + एषक = प्रेषक
प्र + एषिति = प्रेषिति
शुक + ओदन = शुकोदन
बिम्ब + ओष्ठ = बिम्बोष्ठ
शुद्ध + ओदन = शुद्धोदन
मिष्ठ + ओदन = मिष्ठोदन
दुग्ध + ओदन = दुग्धोदन
2. व्यंजन संधि–
• स्वर + व्यंजन, व्यंजन + स्वर, व्यंजन + व्यंजन
• यदि किसी स्वर के बाद व्यंजन आ जाए या व्यंजन के बाद स्वर आ जाए अथवा व्यंजन के बाद व्यंजन ही आ जाए तो, व्यंजन के उच्चारण और लेखन में जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं; जैसे–
तरु + छाया = तरुच्छाया
वाक् + ईश = वागीश
उत् + घोष = उद्घोष
1. जशत्व व्यंजन संधि–
• क्/च्/ट्/त्/प् + घोष वर्ण (पंचम वर्ण को छोड़कर) = ग्/ज्/ड्/द्/ब्
यदि वर्ग के प्रथम वर्ण ‘क्/च्/ट्/त्/प्’ के बाद कोई घोष वर्ण आ जाए, (लेकिन पंचम वर्ण को छोड़कर) तो ‘क्/च्/ट्/त्/प्’ का अपने ही वर्ग का तीसरा अर्थात् ‘ग्/ज्/ड्/द्/ब्’ हो जाता है; जैसे–
वाक् + यंत्र = वाग्यंत्र
वाक् + देवी = वाग्देवी
ऋक् + वेद = ऋग्वेद
वाक् + हरि = वाग्घरि
दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम
दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन
प्राक् + ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक
सम्यक् + ज्ञान = सम्यग्ज्ञान
दिक् + विजय = दिग्विजय
वाक् + दत्ता = वाग्दत्ता
वाक् + दान = वाग्दान
अच् + अन्त = अजन्त
अच् + आदि = अजादि
चित् + रूप = चिद्रूप
उत् + हार = उद्धा
सत् + गुण =सद्गुण
भवत् + ईय = भवदीय
जगत् + ईश = जगदीश
वृहत् + आकार = वृहदाकार
भगवत् + गीता = भगवद्गीता
भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
उत् + हरण = उद्धरण
पत् + हति = पद्धति
षट् + आनन = षडानन
षट् + ऋतु = षड्ऋतु/षडृतु
षट् + रूप = षड्रूप/षड्रूप
अप् + ज = अब्ज
अप् + द = अब्द
सुप् + अन्त = सुबन्त
तिप् + आदि = तिबादि
सुप् + आदि = सुबादि
• क्/च्/ट्/त्/प् + पंचम वर्ण = ङ्, ञ्, ण्, न्, म्
यदि वर्ग के प्रथम वर्ण ‘क्/च्/ट्/त्/प्’ के बाद कोई पंचम वर्ण आ जाए तो ‘क्/च्/ट्/त्/प्’ का अपने ही वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है; जैसे–
वाक् + मय = वाङ्मय
दिक् + नाग = दिङ्नाग
वाक् + मंत्र = वाङ्मंत्र
दिक् + मंडल = दिङ्मंडल
षट् + मास = षण्मास
षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
षट् + मुख = षण्मुख
सत् + नारी = सन्नारी
उत् + नति = उन्नति
उत् + माद = उन्माद
पत् + नग = पन्नग
जगत् + नाथ = जगन्नाथ
सत् + मार्ग = सन्मार्ग
तत् + मय = तन्मय
एतत् + मुरारि = एतन्मुरारि
अप् + मय = अम्मय
उप् + मय = उम्मय
मृत् + मय = मृण्मय
2. चर्त्व व्यंजन संधि–
• द् + क/ख/त/थ/प/फ/स = त्
यदि ‘द्’ के बाद ‘क,ख,त,थ,प,फ और स’ वर्ण आ जाए तो ‘द्‘ का ‘त्’ हो जाता है; जैसे–
उद् + कर्ष = उत्कर्ष
शरद् + काल = शरत्काल
विपद् + काल = विपत्काल
उद् + कोच = उत्कोच
उद् + खनन = उत्खनन
उद् + कीर्ण = उत्कीर्ण
उद् + तर = उत्तर
आपद् + ति = आपत्ति
उद् + पत्ति = उत्पत्ति
उद् + थान = उत्थान
उद् + पन्न = उत्पन्न
शरद् + पूर्णिमा = शरत्पूर्णिमा
संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
उद् + साह = उत्साह
3. अनुनासिक व्यंजन संधि–
(i) म् + क से भ तक (पंचम वर्ण को छोड़कर) = /पंचम वर्ण
यदि ‘म्’ के बाद ‘क से लेकर भ’ तक का कोई वर्ण आ जाए (लेकिन पंचम वर्ण को छोड़कर) तो ‘म्’ का अनुस्वार और पंचम वर्ण दोनों हो जाता है, पंचम वर्ण बनता तो ‘म्’ का ही है, लेकिन अगले वर्ण के वर्ग का बनता है; जैसे–
अलम् + कार = अलंकार/अलङ्कार
भयम् + कर = भयंकर/भयङ्कर
अहम् + कार = अहंकार/अहङ्कार
सम् + कर = संकर/सङ्कर
शम् + कर = शंकर/शङ्कर
सम् + कल्प = संकल्प/सङ्कल्प
सम् + क्षिप्त = संक्षिप्त/सङ्क्षिप्त
सम् + कीर्ण = संकीर्ण/सङ्कीर्ण
सम् + गठन = संगठन/सङ्गठन
सम् + घटन = संघटन/सङ्घटन
सम् + चार = संचार/सञ्चार
सम् + जीवनी = संजीवनी /सञ्जीवनी
मृत्युम् + जय = मृत्युंजय/मृत्युञ्जय
सम् + ताप = संताप/सन्ताप
सम् + तोष = संतोष/सन्तोष
सम् + ज्ञान = संज्ञान/सञ्ज्ञान
सम् + देह = संदेह/सन्देह
सम् + पूर्ण = संपूर्ण/सम्पूर्ण
सम् + भव = संभव/सम्भव
अपवाद–
(i) सम् उपसर्ग + कृ धातु = स् का आगम तथा ‘म्’ का अनुस्वार
यदि ‘सम्’ उपसर्ग के बाद ‘कृ’ धातु से बनने वाले शब्द आ जाए तो ‘सम्’ उपसर्ग और कृ धातु के बीच ‘स्’ का आगम हो जाता है तथा ‘म्’ का अनुस्वार हो जाता है; जैसे–
सम् + कृत = संस्कृत
सम् + करण = संस्करण
सम् + कृति = संस्कृति
सम् + कार = संस्कार
सम् + कर्ता = संस्कर्ता
सम् + कार्य = संस्कार्य
(ii) परि उपसर्ग + कृ धातु = ष् का आगम
परि + कृत = परिष्कृत
परि + करण = परिष्करण
परि + कृति = परिष्कृति
परि + कार = परिष्कार
परि + कर्ता = परिष्कर्ता
परि + कार्य = परिष्कार्य
(iii) म् + पंचम वर्ण = म् का अगले वर्ण जैसा ही रूप हो जाता है; जैसे–
सम् + न्यासी = सन्न्यासी
सम् + मोहन = सम्मोहन
सम् + मान = सम्मान
सम् + मिलित = सम्मिलित
सम् + निकट = सन्निकट
सम् + निहित = सन्निहित
(iii) म् + य/र/ल/व/श/ष/स/ह = अनुस्वार
यदि ‘म्’ के बाद ‘य,र,ल,व,श,ष,स,ह’ वर्ण आ जाए तो ‘म्’ का अनुस्वार () ही होता है; जैसे–
सम् + यम = संयम
सम् + योग = संयोग
सम् + रचना = संरचना
सम् + रूप = संरूप
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + लाप = संलाप
सम् + लिखित = संलिखित
सम् + लेख = संलेख
सम् + विधान = संविधान
स्वयम् + वर = स्वयंवर
सम् + शय = संशय
सम् + सार = संसार
सम् + हार = संहार
सम् + हृत = संहृत
4. मूर्द्धन्य व्यंजन संधि–
(i) ष् + त/थ = त का ट तथा थ का ठ
यदि ‘ष्’ के बाद ‘त/थ’ वर्ण आ जाए तो ‘त का ट’ और ‘थ का ठ’ हो जाता है; जैसे–
दृष् + ति = दृष्टि
सृष् + ति = सृष्टि
वृष् + ति = वृष्टि
उत्कृष् + त = उत्कृष्ट
आकृष् + त = आकृष्ट
पुष् + ति = पुष्टि
षष् + ति = षष्टि
षष् + थ = षष्ठ
(ii) इ/उ + स/थ = स का ष तथा थ का ठ
यदि ‘इ/उ’ के बाद ‘स/थ’ वर्ण आ जाए तो ‘स’ का ‘ष’ और ‘थ’ का ’ठ’ हो जाता है; जैसे–
वि + सम = विषम
वि + साद = विषाद
नि + संग = निषंग
नि + सिद्ध = निषिद्ध
अभि + सेक = अभिषेक
सु + समा = सुषमा
सु + स्मिता = सुष्मिता
वि + स्था = विष्ठा
प्रति + स्था = प्रतिष्ठा
अनु + स्थान = अनुष्ठान
प्रति + स्थान = प्रतिष्ठान
युधि + स्थिर = युधिष्ठिर
अपवाद–
वि + सर्ग = विसर्ग
अनु + सार = अनुसार
वि + स्थापन = विस्थापन
वि + स्मरण = विस्मरण
वि + स्थापित = विस्थापित
5. ‘च्’ आगम संधि–
• स्वर + छ = च् का आगम
• यदि किसी स्वर के बाद ‘छ’ वर्ण आ जाए तो स्वर और ‘छ’ के बीच ‘च्’ का आगम हो जाता है; जैसे–
आ + छादन = आच्छादन
वि + छेद = विच्छेद
प्रति + छाया = प्रतिच्छाया
मातृ + छाया = मातृच्छाया
पितृ + छाया = पितृच्छाया
शाला + छादन = शालाच्छादन
तरु + छाया = तरुच्छाया
अनु + छेद = अनुच्छेद
वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया
6. अहन् की संधि–
(i) अहन् + र = अहो
(ii) अहन् + र से भिन्न वर्ण = अहर्
• यदि अहन् के बाद ‘र’ वर्ण आ जाए तो अहन् का ‘अहो’ हो जाता है और यदि अहन् के बाद ‘र’ से भिन्न वर्ण आ जाए तो अहन् का ‘अहर्’ हो जाता है।
(i) अहन् + र = अहो
अहन् + रूप = अहोरूप
अहन् + रश्मि = अहोरश्मि
अहन् + रात्रि = अहोरात्र
(ii) अहन् + र से भिन्न वर्ण = अहर्
अहन् + मुख = अहर्मुख
अहन् + निशा = अहर्निशा
अहन् + अहन् = अहरह
7. ‘ण’ की संधि–
• ऋ/र/ष + न = ण
• यदि ‘ऋ/र/ष’ के बाद कहीं भी ‘न’ वर्ण आ जाए तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है; जैसे–
ऋ + न = ऋण
तृ + न = तृण
कृष् + ना = कृष्णा
तृष् + ना = तृष्णा
प्र + मान = प्रमाण
प्र + नाम = प्रणाम
परि + मान = परिमाण
परि + नाम = परिणाम
राम + अयन = रामायण्
• विशेष– ‘रामायण्’ शब्द में तीन संधि होती है।
(i) दीर्घ स्वर संधि – राम + अयन = रामायण् (अ + अ = आ)
(ii) व्यंजन संधि – राम + अयन = रामायण (न का ण)
(iii) अयादि स्वर संधि – रामै + अन = रामायण (ऐ का आय्)
8. त्/द् की संधि–
त्/द् + च/छ = च्
त्/द् + ज/झ = ज्
त्/द् + ट = ट्
त्/द् + ड = ड्
त्/द् + ल = ल्
त्/द् + श = च्छ
(i) त्/द् + च/छ = च्
• यदि ‘त्/द्’ के बाद ‘च/छ’ वर्ण आ जाए तो ‘त्/द्’ का ‘च्’ हो जाता है; जैसे–
उत् + चाटन = उच्चाटन
उत् + चारण = उच्चारण
शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
उत् + छिन्न = उच्छिन्न
(ii) त्/द् + ज/झ = ज्
• यदि ‘त्/द्’ के बाद ‘ज/झ’ वर्ण आ जाए तो ‘त्/द्’ का ‘ज्’ हो जाता है; जैसे–
सत् + जन = सज्जन
उत् + ज्वल = उज्ज्वल
विपत् + जाल = विपज्जाल
वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
(iii) त्/द् + ट = ट्
• यदि ‘त्/द्’ के बाद ‘ट’ वर्ण आ जाए तो ‘त्/द्’ का ‘ट्’ हो जाता है; जैसे–
तत् + टीका = तट्टीका/तट्टीका
वृहत् + टीका = वृहट्टीका /वृहट्टीका
वृहत् + टंकार = वृहट्टंकार/वृहट्टंकार
(iv) त्/द् + ड = ड्
• यदि ‘त्/द्’ के बाद ‘ड’ वर्ण आ जाए तो ‘त्/द्’ का ‘ड्’ हो जाता है; जैसे–
उत् + डीन = उड्डीन
उत् + डयन = उड्डयन
वृहत् + डमरू = वृहड्डमरू
(v) त्/द् + ल = ल्
• यदि ‘त्/द्’ के बाद ‘ल’ वर्ण आ जाए तो ‘त्/द्’ का भी ‘ल्’ हो जाता है; जैसे–
उत् + लास = उल्लास
उत् + लेख = उल्लेख
उत् + लंघन = उल्लंघन
उत् + लिखित = उल्लिखित
विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
(vi) त्/द् + श = च्छ
• यदि ‘त्/द्’ के बाद ‘श’ वर्ण आ जाए तो ‘त्/द्’ का ‘च्’ और ‘श’ का ‘छ’ हो जाता है; जैसे–
उत् + शासन = उच्छासन
उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
उत् + शृंखला = उच्छृंखला
शरद् + शशि = शरच्छशि
मृत् + शकटिकम् = मृच्छकटिकम्
श्रीमत् + शरत् + चन्द्र = श्रीमच्छरच्चन्द्र
• व्यंजन लोप/विशिष्ट संधि–
मंत्रिन् + परिषद् = मंत्रिपरिषद्
पितृन् + हन्ता = पितृहन्ता
युवन् + राज = युवराज
पक्षिन् + राज = पक्षिराज
पतत् + अंजलि = पतंजलि
अब + ही = अभी
तब + ही = तभी
सब + ही = सभी
कब + ही = कभी
मनस् + ईष = मनीष
मनस् + ईषा = मनीषा
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